Bhagwat Geeta Adhyay 1: जानें भगवद गीता के प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग का वास्तविक अर्थ और उसके महत्वपूर्ण सिद्धांत एवं संदेश | Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog

  जय श्री कृष्ण! साथियों भारत की सबसे महान एवं सबसे अनमोल धरोहरों में प्रसिद्ध 'श्रीमद्भागवद गीता' एक ऐसी दिव्य ग्रंथ है, जिसमें सभी जीवों एवं लोगों के जीवन के गूढ़ रहस्यों को अत्यंत सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है। 'श्रीमद भगवद गीता' का पहला अध्याय 'अर्जुन विषाद योग' हमें महाभारत के युद्ध के उस प्रारंभिक क्षणों में ले जाता है, जहाँ अर्जुन अपने धर्म और कर्तव्य के बीच उलझन में पड़ जाते हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के माध्यम से हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की शक्ति और धैर्य की शिक्षा मिलती है। गीता का पहला अध्याय 'अर्जुन विषाद योग' व "Bhagwat Geeta Adhyay 1" का यह गीतादर्शन संवाद हमें यह सिखाता है किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में भी हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और ईश्वर पर अटूट विश्वास रखना चाहिए।

Bhagwat  Geeta Adhyay 1 | भगवत गीता का पहला अध्याय | Bhagwat Geeta chapter 1 | Shrimad Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog

 Bhagwat Geet Adhyay 1 | भगवत गीता अर्जुन विषाद योग का संपूर्ण सार

 भारतीय साहित्य का महाकाव्य, श्रीमद् भगवद् गीता, जिसे संसार का अत्यंत अतुलनीय ग्रंथ माना जाता है, उसका पहला अध्याय 'अर्जुन विषाद योग' है, जो "सैन्य निरीक्षण" के नाम से भी विख्यात है। यह अध्याय गीता के प्रारंभिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है और महाभारत युद्ध के आरम्भिक परिस्थितियों को उजागर करता है। आइए फिर आज हम सब इस लेख के माध्यम से महाभारत के उस क्षणों में प्रवेश करने का प्रयास करेंगे, जहां महाभारत का भीषण युद्ध हो रहा था। जिस युद्ध में कौरवों की सेना और पांडवों की सेना एक - दूसरे के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन जब अर्जुन ने युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में जिधर भी देखा तो दोनों पक्षों की सेनाओं में हर तरफ उसने अपने ही स्वजनों को देखा। इस प्रकार से अर्जुन ने अपनी पांडव सेना के विपक्षी सेनाओं में अपने ही परिवार के सदस्यों, अपने ही गुरुजनों एवं अपने ही मित्रों एवं शुभचिंतकों को देखा, जिसको देखने के पश्चात वह विषाद में डूबे जाता है और उसका मन दुःख, चिंता से भर जाता है। उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं और उसका मन उदास हो जाता है। फलस्वरूप अर्जुन युद्ध करने से मना करता है और भगवान श्रीकृष्ण से कहता है कि मैं ये युद्ध नहीं करूंगा। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन की इसी दुःख, दुविधा और शंखा को दूर करने के उद्देश्य से संसार का सबसे बड़ा ज्ञान "भगवत गीता का उपदेश" अर्जुन को देते हैं। जिसको सुनकर अर्जुन की सारे दुःख, सारी शंखा समाप्त हो जाती है और वह युद्ध करने के लिए तैयार हो जाता है। हम सब भी इस गीता ज्ञान को ग्रहण कर अपने आप को अर्जुन की तरह ही इस प्रकार तैयार कर सकें कि हम अपने जीवन की सभी चुनौतियों,  मुश्किलों एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना कर सकें। आइए अब इस अध्याय से गीता उपदेश ज्ञान को ग्रहण कर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

What is Arjun Vishad Yog | अर्जुन विषाद योग क्या है?

 श्रीमद् भगवद् गीता का पहला अध्याय अर्जुन विषाद योग, जिसे "सेना का सैन्य निरीक्षण या सैन्य निरीक्षण" के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अध्याय है। इस अध्याय में महाभारत के युद्ध के प्रारंभिक क्षणों का वर्णन किया गया है, जहाँ अर्जुन, कौरवों और पांडवों के बीच होने वाले भीषण युद्ध के मैदान में खड़े होकर गहरे मानसिक संघर्ष और द्वंद्व का सामना करते हैं। अर्जुन का यह आत्मसंघर्ष और उनके मन में उठने वाले संदेह और कर्तव्य के प्रश्न, गीता के अन्य सभी अध्यायों के लिए आधार प्रदान करते हैं। इस अध्याय में अर्जुन अपने धर्म, कर्तव्य और जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाता है और युद्ध करने से मना करता है। अर्जुन के इन्हीं विषाद व दुविधाओं को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण "गीता का उपदेश" अर्जुन को देते हैं। जिसके बाद ही अर्जुन का मनोबल वापस आता है और युद्ध करने के लिए तैयार हो जाता है।

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Importance of Arjun Vishad Yog | अर्जुन विषाद योग का महत्व

 श्रीमद भगवद गीता, भारतीय दर्शन और धर्म का एक अनमोल ग्रंथ है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इसके प्रत्येक अध्याय का बहुत महत्व है उनमें से ही एक भगवत गीता का पहला अध्याय है "अर्जुन विषाद योग" जिसमें महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन के मन की स्थिति को दर्शाया गया है। इस अध्याय के छह महत्वपूर्ण पहलू एवं उनका महत्व निम्नलिखित हैं:-
 
1. अर्जुन के मानसिक संघर्ष का महत्व: अर्जुन विषाद योग में अर्जुन का मानसिक संघर्ष स्पष्ट रूप से सामने आता है। वह अपने सगे संबंधियों, गुरुजनों और मित्रों के खिलाफ युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हो रहा होता है। यह स्थिति मानव जीवन के उन क्षणों को दर्शाती है जब हम नैतिक और भावनात्मक द्वंद्व का सामना करते हैं। 
2. धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष का महत्व: इस अध्याय में धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष को उजागर किया गया है। अर्जुन को समझ नहीं आता कि उसके लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना धर्म है या अपने प्रियजनों की हत्या करना अधर्म। यह संघर्ष हमें हमारे जीवन में सही और गलत के बीच संतुलन बनाने की प्रेरणा देता है।
3. भगवान कृष्ण के मार्गदर्शन का उचित महत्व: इस अध्याय में भगवान कृष्ण का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है। अर्जुन के प्रश्नों और संदेहों का समाधान करने के लिए, कृष्ण ने उसे सही मार्ग दिखाया। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि एक सच्चे गुरु का मार्गदर्शन कितना महत्वपूर्ण होता है और कैसे यह हमारे जीवन की दिशा को बदल सकता है।
4. आत्मज्ञान के प्रारंभिक दृष्टिकोण का महत्व: अर्जुन के विषाद के कारण भगवान कृष्ण उसे आत्मज्ञान का उपदेश देने के लिए प्रेरित होते हैं। यह अध्याय हमें आत्मज्ञान के मार्ग की शुरुआत की ओर ले जाता है, जहां अर्जुन अपने वास्तविक स्वरूप और कर्तव्यों को समझने की कोशिश करता है। 
5. मानवीय कमजोरियों के प्रदर्शन का महत्वअर्जुन विषाद योग में अर्जुन की कमजोरियों को दिखाया गया है। यह अध्याय हमें यह समझने में मदद करता है कि कोई भी व्यक्ति कितना भी महान योद्धा या बुद्धिजीवी ही क्यों न हो लेकिन फिर भी उसमें कोई न कोई कमजोरी जरूर होती। उसके भी जीवन में ऐसे क्षण अवश्य आते हैं, जब परिस्थितियां उसके प्रतिकुल बन जाता है और वह कोई निश्चित निर्णय नहीं ले पाता। 
 यह अध्याय हमें अपने खुद के जीवन में हमारे सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करने और उनसे निपटने की शक्ति एवं उसका उपाय प्रदान करता है।  

  Arjun Vishad Yog - All 46 Shlokas | अर्जुन विषाद योग-संपूर्ण श्लोक 

 श्रीमद भगवद गीता का पहला अध्याय "अर्जुन विषाद योग (Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog)" हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उनके साथ सही तरीके से निपटने की प्रेरणा देता है। अर्जुन की यात्रा और भगवान कृष्ण के उपदेश हमें आत्मज्ञान, कर्म योग, और नैतिकता के महत्व को समझने में मदद करते हैं। इस अध्याय का अध्ययन हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने और उन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की शक्ति प्रदान करता है।

  भगवद गीता का यह अध्याय हमें सिखाता है कि जीवन में संघर्ष और द्वंद्व जरूर आते हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन और आत्मविश्वास के साथ हम उनका सामना कर सकते हैं और सही निर्णय ले सकते हैं।

Bhagwat  Geeta Adhyay 1 Shlok | Bhagwat Geeta chapter 1 | Shrimad Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog

 Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक १-१०  

 धृतराष्ट्र उवाच:- 
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सुवः ।
 मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥१॥ 
 भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- धृतराष्ट्र संजय से कहते हैं - हे संजय! इस धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे पुत्रों कौरवों की कुरुसेना और मेरे भाई पाण्डु पुत्रों की पांडव सेना ने क्या किया? (प्रथम श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सञ्जय उवाच:-
 दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गमय राजा वचनमब्रवीत् ॥२॥ 
 भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- संजय ने धृतराष्ट्र से कहा हैं:- हे महाराज! पांडुपत्रों के द्वारा रचित पांडव सेना की व्यूहरचना को देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जा कर के ये शब्द बोले। (द्वितीय श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
 व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे आचार्य! आप पांडुपत्रों की विशाल पांडव सेना के सुव्यवस्थित व्यूहरचना को देखिए, जिसे आपके ही बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने इतने कौशल से सुव्यवस्थित तरीके से संचारित व निर्मित किया है। (तृतीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥४॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- इस पांडवों की सेना में भीम तथा अर्जुन के जैसे ही युद्ध करने वाले अनेक महान वीर योद्धा हैं - जिसमें महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद आदि जैसे योद्धा सम्मिलित हैं। (चतुर्थ श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
  धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥५॥ 
भागवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- यही नहीं इनके अलावा वीर दृष्टकेतु, चेकितान, काशीराज, पुरुजित, कुंतीभोज तथा मनुष्यों में सबसे शक्तिशाली योद्धा शैब्य भी है। (पंचम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
  युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
 सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- उन महावीरों में महापराक्रमी वीर युधामन्यु, महाबलशाली उत्तमौजा, सुभद्रा नंदन अभिमन्यु तथा द्रौपदी के सभी पाँच वीर पुत्र शामिल हैं। (षष्ठम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥७॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- किन्तु हे आचार्य! आपकी जानकारी के लिए मैं अब आपको अपनी कौरव सेना के उन महान प्रतिभाशाली शूरवीर योद्धाओं के विषय में बताने जा रहा हूं, जो मेरी कौरव सेना को संचालित करने में विशेष रूप से हर तरह से सक्षम तथा निपुण हैं। (सप्तम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Shrimad Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog - Shlok (1.8) 
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥८॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- मेरी कुरुसेना में स्वयं आप, पितामह भीष्म, अंगराज कर्ण, कुल गुरु कृपाचार्य, आपका वीर पुत्र अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं, जो युद्ध संग्राम में सदैव ही विजयी रहे हैं। (अष्टम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥९॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- मेरी सेना में ऐसे अनेकों वीर योद्धा हैं, जो मेरे लिए अपने जीवन तक त्याग करने के लिए तत्पर हैं। ये महान वीर योद्धा अनेकों प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों व हर तरह के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्ध विद्या में पूरी तरह से पारंगत हैं। (नवम श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
  अपर्याप्तं तदस्मांक बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥१०॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हमारी शक्ति अपरिमेय व अजेय है, जिसकी शक्ति असीमित है। क्योंकि हमारी सेना पितामह भीष्म के द्वारा भली-भांति संरक्षित है अर्थात कौरव सेना पितामह भीष्म के संरक्षण में पूरी तरह सुरक्षित है। वहीं दूसरी ओर हमारे विपक्षी पांडवों की सेना भीम द्वारा संरक्षित होकर भी उनकी शक्ति सीमित मात्र है। (दशम श्लोक)   
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog in Hindi| भगवत गीता श्लोक हिंदी में

  Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 11-20 | भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक ११-२० 

 अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥११॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- इसलिए हम सभी योद्धाओं को सैन्य व्यूह में अपने-अपने स्थानों पर खड़े रहकर भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता प्रदान करानी चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। (11वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥१२॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- तभी कुरुवंशियों के पक्ष की ओर से सबसे वृद्ध एवं परम प्रतापी वीरयोद्धा भीष्म पितामह ने सिंह-गर्जना अर्थात् शेर की दहाड़ जैसी ध्वनि करने वाले अपने शंख को बहुत ऊँचे स्वर में बजाया, जिसको सुनकर दुर्योधन हर्ष से प्रसन्न हो उठा। (12वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त से शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- उसके बाद ही शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एक साथ बज उठे। जिसके ध्वनि स्वर से युद्धभूमि का महौल अत्यंत कोलाहलपूर्ण हो गया था अर्थात् कुरूक्षेत्र रणभूमि का दृश्य भयानक महौल में बदल गया था। (13वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 ततः श्वेतैर्हयैयुक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
 माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ॥१४॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- वहीं दूसरी ओर पांडवों की सेना की ओर से सफेद घोड़ों के विशाल रथ पर सवार सारथी भगवान श्रीकृष्ण तथा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ने भी अपने-अपने दिव्य अलौकिक शंख बजाये। (14वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 पाञ्चजन्यं हृषीकशो देवदत्तं धनञ्जयः।
 पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥१५॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- जहाँ, भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पांचजन्य नामक शंख बजाया और अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया तो अतिमानवीय कार्य करने वाले महाबलशाली भीम ने भी अपना पौण्ड्रक नामक शंख बजाया। (15वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुरत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्कौ ॥१६॥
काश्यश्च प्रमेष्वास शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
 सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् ॥१८॥
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे महाराज! क्रमशः इसी क्रम में कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंतविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल एवं सहदेव ने भी क्रमशः सुघोष एवं मणिपुष्पक नामक शंख बजाये । उसके साथ ही महान धनुर्धर काशीराज, परम् योद्धा शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यिक, द्रुपद, द्रौपदी के सभी पुत्र तथा सुभद्रा नंदन महान भुजाओं वाले वीर अभिमन्यु आदि सभी योद्धाओं ने अपने-अपने शंख बजाये। (16वें-18वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् ।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥१९॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- पांडव सेना की इन शंखों की कोलाहलपूर्ण ध्वनि की गूंज से आकाश और समस्त पृथ्वी सहित धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को भी विदीर्ण  कर उठी अर्थात पांडव सेना की शंखों की आवाज से सभी कौरव सेनाओं एवं धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों के हृदय में भय व डर उत्पन्न हुआ। (19वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥२०॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- उस समय महाबली हनुमान से अंकित ध्वजा व झंडा लगे रथ पर आसीन पांडुपुत्र अर्जुन अपने धनुष को उठा कर तीर चलाने के लिए तैयार खड़ा है। हे राजन्! धृतराष्ट्र आपके पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से वचन कहते हैं। (20वें श्लोक)   
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Bhagwat Gita Arjun Vishad Yog Shlok in Hindi| भगवत गीता का श्लोक हिंदी में

 Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 21-30 |भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक २१-३०  

 अर्जुन उवाच:-
  सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।
 यादवेतिन्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ॥२१॥
 कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे ॥२२॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा - हे अच्युत! श्रीकृष्ण का एक नाम अच्युत भी है, जिसका अर्थ होता जो हमेशा से अटल है! इसलिए इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण को अच्युत नाम से संबोधित करते हुए कहता है। हे अच्युत कृपा करके आप मेरे रथ को पांडवों और कौरवों दोनों सेनाओं के बीच में ले चलिए ताकि मैं यहां पर युद्ध की अभिलाषा से उपस्थित सभी योद्धाओं और उनके अस्त्र-शस्त्रों को देख सकूँ, जिनसे मुझे संघर्ष व युद्ध करना है। (21वें-22वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
  
 योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एत्रेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवृः ॥२३॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- मुझे उन लोगों को देखने दीजिए, जो इस रणभूमि कुरूक्षेत्र में धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि अर्थात् नासमझ व कम अक्ल पुत्र दुर्योधन को प्रसन्न करने की इच्छा से युद्ध करने आये हुए हैं। (23वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
  सञ्जय उवाच:-
एवमुक्त्वो हृषीकशो गुडाकेशेन भारत।
 सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥२४॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं - हे भरतवंशी, महाराज धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किये जाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों पक्षों के सेनाओं बीच में अपने उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया। (24वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वषां च महीक्षिताम् ।
 उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥२५॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य तथा कुरू सेना में सम्मिलित विश्व भर के अन्य समस्त वीर योद्धाओं के सामने भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पार्थ, हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यहाँ पर उपस्थित सभी कुरु सेनाओं को देखो। (25वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
  तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ।
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ॥२६॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच में अपने ही सभी सगे संबंधियों को देखा। जिसमें अर्जुन ने अपने चाचा-ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, भाईयों, पुत्रों, पौत्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को देखा। (26वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥२७॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- जब अर्जुन ने अपने ही मित्रों और रिश्तेदारों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार श्री कृष्ण से कहा। (27वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अर्जुन उवाच:-
द्वष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥२८॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - हे वासुदेव, हे श्रीकृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों को अपने सामने उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुँह भी सूखा जा रहा है। (28वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।
गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥२९॥   
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी सस्करण:- मेरा पूरा शरीर कांप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष भी मेरे हाथ से सरक रहा है, मैं शक्तिहीन, बलहीन हो रहा हूँ और मेरी त्वचा भी जल रही है। (29वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ।
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥३०॥  
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- मैं यहाँ अब और अधिक समय तक खड़ा नहीं रह पाऊँगा। मैं स्वयं को ही भूल रहा हूं और मेरा सिर भी चकरा रहा है। हे केशव, हे श्रीकृष्ण! मुझे तो चारों ओर अमंगल संकेत व अशुभ होने के लक्षण के कारण ही दिखाई दे रहे हैं। (30वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक ३१-४०

 Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक ३१-४० 

 न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।
 न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न‌‌‌ च राज्यं सुखानि च ॥३१॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे श्रीकृष्ण! इस युद्ध में अपने ही स्वजनों यानी अपने ही परिवार के सदस्यों, मित्रों तथा सगे संबंधियों का वध करने से एवं युद्ध में उनको मारने से न तो मुझे कुछ अच्छाई दिखाई दे रही है और न ही उनको हराकर किसी प्रकार के विजय, राज्य और सुख की अभिलाषा रखता हूँ। (31वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।
 येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च ॥३२॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे गोविन्द! हमें राज्य, सुख अथवा ऐसे जीवन से क्या लाभ है? क्योंकि हम अपने जिन लोगों के लिए जीते हैं, जिनको हम चाहते हैं वे लोग ही इस युद्धभूमि में मेरे सामने युद्ध करने के लिए तैयार खड़े हैं। (32वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ।
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः ॥३३॥
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धितस्तथा ।
 एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ॥३४॥
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ॥३५॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे मधुसूदन! जब इस युद्ध में अपने ही गुरुजन, पितृगण, पुत्रगण व पितामहा भीष्म, मामा, ससुर, पौत्रगण, साले तथा अन्य सभी सगे संबंधी अपना-अपना धन संपत्ति एवं प्राण तक न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं और युद्ध में मेरे सामने खड़े हैं तो फिर ऐसे में मैं उन्हें क्यों मारना चाहूंगा, चाहे मुझ निहत्थे को धृतराष्ट्र के शस्त्रधारी पुत्र वध भी कर दे। फिर भी हे जीवों के पालनहार! मैं इन सबसे युद्ध नहीं करूंगा, बदले में मुझे तीनों लोकों का राज्य भी क्यों न मिले। ऐसे में इस पृथ्वी की बात तो छोड़ ही दें। भला धृतराष्ट्र के पुत्रों व अपने ही भाईयों को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता होगी? (33वें-35वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः ।
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्सबान्धवान् ।
 स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥३६॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं तो हम पर ही पाप चढ़ेगा, अतः हमारे लिए यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वैध करें। हे माधव! इससे हमें क्या लाभ होगा? तथा अपने ही परिवार के सदस्यों को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता होगी?  यहां पर आततायियों का सम्बन्ध अधर्म करने वाले लोगों एवं उसका साथ देने वाले लोगों तथा दुष्कर्म करने वाले दुष्टों व दुराचारी व्यक्तियों से है। अर्जुन ने इस श्लोक में ऐसे लोगों के लिए के लिए आततायी शब्दों का प्रयोग किया है, एक तरफ ऐसे लोग जो अधर्मी व दुराचारी होते हैं तथा दूसरी ओर वे लोग होते हैं, जो इनके अधर्म कर्मों में इनका साथ देते हैं। (36वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः ।
कुलक्षकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥३७॥
  कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् ।
कुलक्षयकृत दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥३८॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे जनार्दन! भले ही लालच में आकर ये लोग अपने ही परिवार के सदस्यों को मारने एवं मित्रों से लड़ने में भी कुछ दोष नहीं देखते, लेकिन हमारे जैसे सुविचार रखने वाले बुद्धिमान लोग, जो परिवार को नाश करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों को करने से हमें बचना चाहिए। (37वें-38वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥३९॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- वैसे भी कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म कर्मों में लिप्त हो जाती है अर्थात् जब घर की सनातन कुल-परंपरा यानी सत्कर्म नष्ट हो जाती है, तो बाकी या आने वाली पीढ़ी भी अधर्म के मार्ग पर चल पड़ते हैं और बुरे कर्मों को करने लग जाते हैं। (39वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दृष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः ॥४०॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे कृष्ण! जब कुल में ही अधर्म कर्म बहुत अधिक बढ़ जाता है तो कुल की स्त्रियां दूषित व अपवित्र हो जाती हैं। हे वृष्णिवंशी, श्रीकृष्ण! और स्त्रीत्व के पतन से अवांछित संतानें उत्पन्न होती हैं। (40वें श्लोक)   
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog ka Saar | भगवत गीता अर्जुन विषाद योग का सार

 Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog Shlok 41-46 | भगवत गीता अध्याय 1 श्लोक ४१-४६ 

 सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्योषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥४१॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- ऐसे अवांछित संतानों की उत्पत्ति और वृद्धि होने से परिवार तथा समाज के लिए निश्चित तौर पर नरक जैसा जीवन होगा‌। ऐसी ही अवांछित संतानें पारिवारिक परंपरा को नष्ट करती हैं। ऐसे में उनके पतित कुल के पुरखे भी गिर जाते हैं अर्थात् जिनके पूर्वज मृत्यु को प्राप्त होकर पितर लोक में प्रवेश कर जाते हैं, तो वहां पर उनको मोक्ष व शान्ति प्राप्त नहीं हो पाती क्योंकि उनको जल तथा पिण्ड दान करने की प्रक्रियाएं ही समाप्त हो जाती हैं, जो उनके ही परिवार वाले अपने पूर्वजों के लिए जल तथा पिण्डदान जैसे कर्म नहीं करते। (41वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥४२॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- जो लोग अपने ही कुल-परम्परा को नष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते हैं उनके दुष्कर्मों से समस्त मानव जाति के कल्याण कार्य एवं सामूदायिक योजनाएं तथा पारिवारिक कल्याण कार्य का नाश हो जाता है। (42वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
 नरके नियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥४३॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- हे समस्त जगत के पालनहार! मैंने तो गुरु-परंपरा से ऐसा भी सुना है कि जो लोग अपने ही कुल धर्म का विनाश करते हैं, वे हमेशा के लिए नरक वासी बनते हैं और सदैव नरक में ही वास करते हैं। (43वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
 यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥४४॥  
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- ओह, दुःख भरे स्वर में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहता है! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सब यहां राज्य और सुख के लालच में आकर बहुत बड़े पाप कर्म करने के लिए भी तैयार हैं। राज्यसुख की भोग प्राप्ति की अभिलाषा से प्रेरित होकर हम अपने ही स्वजनों व सगे संबंधियों, मित्रों तथा शुभचिंतक प्रिय बन्धुओं को मारने पर तुले हुए हैं। (44वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः ।
 धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥४५॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- यदि धृतराष्ट्र के शस्त्रधारी पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध व विरोध न करने वाले का वध भी कर दें तो मेरे लिए श्रेयस्कर यानी बहुत अच्छा व अति उत्तम होगा। (45वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सञ्जय उवाच:-
एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥४६॥ 
भगवत गीता अध्याय 1 अर्जुन विषाद योग हिंदी संस्करण:- संजय ने धृतराष्ट्र से कहा कि हे राजन! इस युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने श्रीकृष्ण को कहा कि मैं युद्ध नहीं करूँगा। यह कहकर अर्जुन ने अपना धनुष और बाण एक ओर रख दिया और शोकयुक्त यानी कि दुःख, चिंता और दुविधाओं से व्याप्त होकर अपने रथ के पिछले भाग में बैठ गया। (46वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  

 इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय समाप्त हो जाता है, जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करता है। धर्म और कर्तव्य, आत्मा की अमरता, संशय का निवारण, सही मार्गदर्शन और निर्णय लेने की क्षमता ये सभी शिक्षाएँ हमारे जीवन को एक नई दिशा देने में सहायक होती हैं। इन शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाकर हम एक सफल और संतुलित जीवन जी सकते हैं। गीता के उपदेश न केवल अर्जुन के लिए थे बल्कि यह आज के मानव जीवन के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इसलिए, गीता का अध्ययन और उसकी शिक्षाओं का पालन करना हम सभी के लिए लाभकारी हो सकता है।

Bhagwat  Geeta Arjun Vishad Yog | Bhagwat Geeta chapter 1 | Arjun Vishad Yog Kya Hai?

 5 Most Important Learnings of Arjun Vishad Yog | अर्जुन विषाद योग की पाँच महत्वपूर्ण शिक्षाएं

 श्रीमद्भगवद्गीता, जिसे संक्षेप में गीता कहा जाता है, हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संग्रह है। गीता के पहले अध्याय में कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि का वर्णन है, जहाँ अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों और धर्म के प्रति संशय में होते हैं। इस लेख में हम गीता के पहले अध्याय से पाँच महत्वपूर्ण शिक्षाओं पर चर्चा करेंगे:-
1. धर्म और कर्तव्य का शिक्षा: गीता के पहले अध्याय में अर्जुन अपने कर्तव्यों को लेकर संशय में होते हैं। उन्हें अपने स्वजनों के साथ युद्ध करने में कठिनाई होती है। यहाँ पर हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में किसी भी स्थिति में अपने धर्म और कर्तव्यों को निभाना आवश्यक है, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो। धर्म और कर्तव्य के पालन में हमें व्यक्तिगत भावनाओं को एक तरफ रखना चाहिए।
2. आत्मा की अमरता की शिक्षा: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा अजर-अमर है। यह न तो मरती है और न ही इसे मारा जा सकता है। यह ज्ञान हमें सिखाता है कि शरीर की मृत्यु के बाद भी आत्मा जीवित रहती है। इसलिए हमें अपने शारीरिक अस्तित्व से अधिक आत्मा के महत्व को समझना चाहिए।
3. संशय का निवारण करने की शिक्षा: अर्जुन के मन में अनेक संशय होते हैं और वे युद्ध करने से पीछे हटना चाहते हैं। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि संशय मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है। हमें अपने मन में उठने वाले संशयों को दूर कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
4. सही मार्गदर्शन के महत्व की शिक्षा: अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होता है। यह हमें सिखाता है कि सही मार्गदर्शन और ज्ञान प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है। हमें जीवन के कठिन मोड़ों पर सही सलाहकार की आवश्यकता होती है जो हमें सही दिशा दिखा सके।
5. जीवन में सही निर्णय लेने की शिक्षा: पहले अध्याय में अर्जुन की दुविधा को देखते हुए हमें यह समझ में आता है कि जीवन में सही निर्णय लेना कितना महत्वपूर्ण होता है। सही निर्णय लेने के लिए हमें धैर्य और विवेक का सहारा लेना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए और ठंडे दिमाग से सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए।
  

Conclusion of Arjun Vishad Yog | अर्जुन विषाद योग अध्याय का सारांश 

  श्रीमद् भगवद् गीता का पहला अध्याय विशेष रूप से मन की भव्यता और धर्म के महत्व के प्रति जागरूक करता है। यहां पर अर्जुन के विचार और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का आत्मीय विवेचन होता है जो हमें अपने जीवन में सही दिशा दिखाते हैं।यह अध्याय धर्मयुद्ध के विषय में अर्जुन के सामाजिक और मानसिक संघर्ष को दर्शाता है और हमें अपने कर्तव्यों को समझने के लिए प्रेरित करता है। भगवत गीता का प्रथम अध्याय 'अर्जुन विषाद योग (Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog)' यानी "Bhagwat Geeta Adhyay 1"  के श्रीकृष्ण और अर्जुन का यह संवाद न केवल अर्जुन की मानसिक स्थिति का वर्णन करता है, बल्कि यह हमारे जीवन में भी कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करता है। 
 यह अध्याय हमें सिखाता है कि समस्याओं का सामना कैसे करना चाहिए और हमें अपने जीवन में सही निर्णय लेने के लिए किस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हमें यह समझने में मदद करते हैं कि संदेह और विषाद को कैसे दूर किया जा सकता है और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। 'श्रीमद भगवद गीता' के इस प्रथम अध्याय का अध्ययन हमें न केवल आध्यात्मिक, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी समृद्ध बनाता है। यह हमें सच्चे धर्म, कर्तव्य और आत्मा की अनंत शक्ति का ज्ञान कराता है, जो हमारे जीवन को एक नई दिशा देने में सक्षम है। आशा करते हैं कि इस अध्याय से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा, अब हमारी मुलाकात भगवत गीता के दूसरे अध्याय यानी "सांख्य योग" में होगी, तब तक के लिए आप हमें आज्ञा दीजिए जय श्री कृष्ण!

What is Bhagwat Geeta? | What is Arjun Vishad Yog| भगवत गीता क्या है? | श्रीमद् भागवत  गीता प्रश्नोत्तरी

FAQ:  Bhagwat Geeta Chapter 1 Arjun Vishad Yog | श्रीमद् भागवत गीता प्रश्नोत्तरी अर्जुन विषाद योग 

1. अर्जुन विषाद योग क्या है?
ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय हैं, जिसका पहला अध्याय ही "अर्जुन विषाद योग" के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में अर्जुन के मानसिक संघर्ष और उनके युद्ध न करने के निर्णय का वर्णन है।   
2. विषाद योग का अर्थ क्या है?
ॐ: अर्जुन विषाद योग का अर्थ है अर्जुन की विषाद अवस्था। इसमें अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने परिजनों को देखकर मोह और दुःख से ग्रस्त हो जाते हैं, जो उसके विषाद का प्रमुख कारण बन जाता है।   
3. अर्जुन ने युद्ध के मैदान में ऐसा क्या देखा कि उसका मन विचलित हो उठा?
ॐ: अर्जुन ने धर्मभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में जिधर भी देखा उसने अपने ही कुटुम्ब के लोगों को देखा, जिसमें उसने अपने गुरुओं, मित्रों, भाईयों, और अन्य परिजनों को देखा जो दोनों पक्षों में शामिल थे, जिससे वे युद्ध करने के प्रति संकोच और दुःख से भर गए।
4. भगवत गीता में कौन-कौन से योग प्रकट हैं?
ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों प्रकार के योगों कि जिक्र किया है। जैसे:- सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान योग, ध्यान योग, विज्ञान योग, कर्म वैराग्य योग, भक्ति योग, अक्षरब्रह्म योग एवं राजविद्या राजगुह्यं योग आदि। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने जिन योग पर अधिक महत्व दिया उनमें से प्रमुख योग निम्नप्रकार से हैं:- (१) कर्म योग, (२) ज्ञान योग, (३) ध्यान योग तथा (४) भक्ति योग। 
5. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पहले अध्याय में क्या शिक्षा दी?
ॐ: गीता के पहले अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ध्यानपूर्वक सुनते हुए उनके सभी सवालों को समझा और उनके मानसिक स्थिति को स्वीकार किया, ताकि वे आगे उन्हें उपदेश दे सकें। लेकिन श्रीकृष्ण ने गीता के प्रथम अध्याय में अर्जुन के किसी भी सवाल का उत्तर नहीं दिये, बल्कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना उपदेश गीता के दूसरे अध्याय से देना आरंभ करते हैं। 
6. गीता का पहला शब्द क्या है?
ॐ: गीता के पहले अध्याय में जो पहला शब्द या श्लोक बताया गया है वो राजा धृतराष्ट्र के मुख से निकले हुए श्लोक हैं, जो इस प्रकार हैं "धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सुवः । मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥१.१॥" इस  श्लोक के माध्यम से वे अपने सचीव संजय सवाल पूछते हैं कि हे संजय! युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के उद्देश्य से एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और मेरे भाई पांडु के पुत्रों की सेना क्या कर रहे हैं? 
7. अर्जुन ने अपने संदेह और दुःख को किस प्रकार व्यक्त किया?
ॐ: अर्जुन ने अपने संदेह और दुःख को अपने धनुष और बाण को नीचे रखकर, अपने अंगों में कम्पन और मन में अत्यधिक विषाद के रूप में व्यक्त किया।
8. कुरुक्षेत्र का युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन क्यों हिचकिचा रहे थे?
ॐ: अर्जुन इसलिए हिचकिचा रहे क्योंकि उन्हें लगा कि अपने ही परिजनों और गुरुजन के खिलाफ युद्ध करना अनैतिक और पापपूर्ण है, और इससे समाज में विनाश होगा।
9. सबसे बड़ा योग क्या है?
ॐ: भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कई योगों के बारे में उपदेश दिए हैं, जिनमें कर्म योग, ज्ञान योग, ध्यान योग तथा भक्ति योग आदि शामिल हैं। इन सभी योगों से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण फिर भी सबसे अधिक महत्व "कर्म योग" को दिया है। उन्होंने अर्जुन को उपदेश देते समय यह कहा कि मनुष्य के लिए कर्मयोग ही सबसे उत्तम योग है, शेष अन्य योगों की तुलना में। अतः मनुष्य के लिए कर्म योग ही श्रेष्ठ योग है।
10 अर्जुन का युद्ध न करने का निर्णय उनके व्यक्तिगत संघर्ष को कैसे प्रकट करता है? 
ॐ: अर्जुन का युद्ध न करने का निर्णय उनके व्यक्तिगत और नैतिक संघर्ष को प्रकट करता है, जो यह दर्शाता है कि वे अपने कर्तव्य और परिजनों के प्रति प्रेम के बीच फंसे हुए हैं।
11. अर्जुन विषाद योग गीता का कौन सा अध्याय है? 
ॐ: श्रीमद भगवद गीता का प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग है, जो सैन्य निरीक्षण के नाम से प्रसिद्ध है। इस अध्याय में अर्जुन के विषाद का वर्णन मिलता है। 
12. श्रीमद्भागवत के अनुसार सबसे बड़  योग कौन सा है?
ॐ: भगवत गीता के अनुसार सबसे बड़  योग "कर्म योग" है। अन्य सभी प्रमुख योग भी हैं, जो निम्नप्रकार से हैं:
  •  कर्म योग 
  • ज्ञान योग 
  • भक्ति योग 
  • वैराग्य (संन्यास) योग 
  • ध्यान योग 
13. गीता में कौन से कर्म श्रेष्ठ हैं? 
ॐ: गीता में भगवान श्रीकृष्ण निष्काम कर्मयोग को सबसे अधिक महत्व दिया और अर्जुन से कहा कि मनुष्य के द्वारा निष्काम भाव से किया गया कर्म ही सर्वोत्तम है।
14. गीता में कौन सा योग सबसे अच्छा है? 
ॐ: भगवत गीता के अनुसार मनुष्य के लिए कर्मयोग ही श्रेष्ठ है।
15. भाग्य के बारे में गीता में क्या लिखा है?
ॐ: भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भाग्य के बारे में अर्जुन से कहा है कि मैं किसी भी जीव व मनुष्य का भाग्य नहीं लिखता, बल्कि मनुष्य अपना भाग्य स्वयं ही निर्धारित करता है। वो अपने पिछले जन्मों और वर्तमान समय में किए गए अच्छे एवं बुरे कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त करता है और भविष्य में तथा अगले जन्म में उसको उसका फल प्राप्त होता है। 


🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩🚩🚩

Disclaimer: जरूरी सूचना यह है कि "श्रीमद् भगवद् गीता" एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जो भारतीय साहित्य और दार्शनिक विचारों का अमूल्य तथा अतुलनीय हिस्सा है। यह ग्रंथ धार्मिक और आध्यात्मिक सन्देशों का संग्रह है और इसे समझने और उस पर अमल करने के लिए गहरी अध्ययन और आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता होती है। हमारे इस ब्लॉग "Om- Shrimad-Bhagwat-Geeta (www.shrimadbhagwatgeeta.in)" पर प्रस्तुत सभी जानकारी और सामग्री केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की गई है। यहां दी गई जानकारी को सटीक और अद्यतित रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन हम किसी भी प्रकार की पूर्णता, सटीकता, विश्वसनीयता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देते हैं। किसी भी सूचना या व्याख्या की पुष्टि के लिए, यह वेबसाईट जिम्मेदारी नहीं है। इसके सही पुष्टि के लिए आपको विशेषज्ञ धार्मिक गुरु या सम्प्रदायिक आचार्यों से परामर्श लेना चाहिए। यहां प्रस्तुत की गई सभी सामग्री केवल सनातन जानकारी और सनातन संस्कृति को प्रेरित करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, इसका कोई अन्य उपयोग या उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए उपयोगकर्ता किसी भी जानकारी पर अपनी टिप्पणी करने से पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें।

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