Shrimad Bhagwat Geeta के दूसरे अध्याय सांख्य योग में छुपे हैं जीवन जीने के अद्भुत रहस्य | Bhagwat Geeta Adhyay 2
जय श्री कृष्ण! मित्रों आज हम श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 2 का अध्ययन करने वाले हैं जिसका नाम 'सांख्य योग' है, जो जीवन के रहस्यों और धर्म के गूढ़ सिद्धांतों को समझने में मदद करता है। अगर आप भगवत गीता के सम्पूर्ण अध्याय को जानना चाहते हैं, तो आप हमारे द्वारा दिए गए लिंक पर क्लिक करके भगवत गीता के प्रथम अध्याय Arjun Vishad Yog से अध्ययन करना आरंभ करें। अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने कर्तव्यों और आत्मा की अमरता के बारे में ज्ञान देते हैं। अर्जुन की दुविधाओं और मानसिक संघर्षों को दूर करते हुए, श्रीकृष्ण उसे धर्म, कर्म और योग के महत्वपूर्ण संदेशों से परिचित कराते हैं। अध्याय 2 को गीता के सबसे महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद अध्यायों में से एक माना जाता है, जिसमें जीवन के मूलभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है। यह अध्याय न केवल युद्ध के मैदान में अर्जुन को सही मार्ग दिखाने के लिए है, बल्कि यह आज के जीवन में भी हमें सही दिशा प्रदान करता है। आइए फिर Bhagwat Geeta Adhyay 2 यानी भगवत गीता के दूसरे अध्याय सांख्य योग को जानने का प्रयास करें।
Bhagwat Geeta Adhyay 2 | भगवद गीता अध्याय 2 हिंदी में!
श्रीमद भगवद गीता का दूसरा अध्याय, 'सांख्य योग', हमें जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों और मार्गदर्शन से अवगत कराता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण, अर्जुन को कर्तव्य, धर्म, और आत्मा के सत्य स्वरूप के बारे में शिक्षित करते हैं। यह अध्याय युद्ध के मैदान में अर्जुन की मानसिक द्वंद्व और कर्तव्य के प्रति उसकी शंका को दूर करते हुए, हमें आत्मज्ञान और कर्मयोग के महत्व का बोध कराता है। इस अध्याय 2 में भगवान कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इस अध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मा अजर-अमर है और शरीर नाशवान है, जिससे हमें यह समझ में आता है कि मृत्यु केवल शरीर का नाश है, आत्मा का नहीं। इसके अलावा, श्रीकृष्ण ने कर्मयोग की शिक्षा दी, जिसमें व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने पर बल दिया गया है। यह सिद्धांत जीवन में तनाव को कम करने और मनोवैज्ञानिक शांति प्राप्त करने में बहुत ही सहायक सिद्ध होता है।
What is Sankhya Yoga? | सांख्य योग का अर्थ क्या है?
भगवद गीता के दूसरे अध्याय को सांख्य योग कहा जाता है। सांख्य योग का मुख्य उद्देश्य जीवन और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझना है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा, शरीर, और कर्म के बीच के अंतर को समझाते हैं। सांख्य योग के अनुसार, आत्मा अजर-अमर है और नाशवान नहीं होती। शरीर का नाश होता है, लेकिन आत्मा शाश्वत और अनन्त है। श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। आत्मा न कटती है, न जलती है, न सूखती है और न गलती है।
सांख्य योग में कर्म और ज्ञान का भी महत्व बताया गया है। श्रीकृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्मयोग का पाठ पढ़ाते हैं, जिसमें कर्म करते समय फल की इच्छा न करने की बात कही गई है। अर्जुन को यह सिखाया जाता है कि उसे अपने धर्म का पालन करना चाहिए और युद्ध से पीछे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि यह उसका कर्तव्य है।
इस प्रकार, सांख्य योग हमें आत्मा की अमरता, शरीर की नश्वरता, और निष्काम कर्मयोग के महत्व को समझाता है, जिससे हम जीवन के सही अर्थ को पहचान सकते हैं और सही मार्ग पर चल सकते हैं।
Importance of Bhagwat Geeta Chapter 2 Sankhya Yog | सांख्य योग का महत्व
श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा अध्याय भारतीय संस्कृति और धर्म के अनमोल रत्नों में से एक है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, धर्म और जीवन के मर्म की गूढ़ बातें समझाई हैं। यहां हम इस अध्याय के पाँच महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जो हमारे जीवन को सार्थक बना सकते हैं। आइए अब उन पांच महत्वपूर्ण बिंदुओं या महत्व पर विचार विमर्श करेंगे:-
1. कर्मयोग का महत्व: गीता के इस दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का ज्ञान दिया। कर्मयोग का अर्थ है, कर्म करते समय फल की चिंता न करना। यह शिक्षा हमें यह समझाती है कि हमें अपने कर्तव्यों को निष्पक्षता और समर्पण के साथ निभाना चाहिए, परिणाम की चिंता किए बिना। |
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2. आत्मा के अमरत्व का महत्व: इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने आत्मा के अमरत्व का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि आत्मा न तो मरती है और न ही जन्म लेती है, वह शाश्वत है। यह ज्ञान हमें जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है और मृत्यु के भय से मुक्त करता है। |
3. स्थितप्रज्ञता के आदर्शों का महत्व: श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में स्थितप्रज्ञ व्यक्ति का वर्णन किया गया है। स्थितप्रज्ञ वह होता है जो सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय में समान रहता है। इस आदर्श को अपनाकर हम मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त कर सकते हैं । |
4. धर्म और अधर्म को पहचानने का महत्व: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म और अधर्म के भेद को विस्तारपूर्वक समझाया है। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्म का पालन करना और अधर्म से दूर रहना ही हर मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए। यही शिक्षा हमें सही और गलत के बीच भेद यानी कि अच्छाई और बुराई के अंतर को समझने की शिक्षा एवं शक्ति देती है और हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाती है। |
5. सही निर्णय लेने की क्षमता का महत्व: इस दूसरे अध्याय में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने जीवन में सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की। जब अर्जुन संशय में थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें सत्य और कर्तव्य का मार्ग दिखाया। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना धैर्य और विवेक से करना चाहिए। |
श्रीमद्भगवद्गीता का ये दूसरा अध्याय सांख्य योग हमारे जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है। इसमें निहित ज्ञान और शिक्षाएं हमें जीवन की कठिनाइयों से निपटने और एक सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। हमें इन महत्वपूर्ण शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और दूसरों को भी इसके महत्व से अवगत कराना चाहिए।
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 1-10 | भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक १-१०
सञ्जय उवाच:- तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- संजय कहते हैं - इस तरह करुणा से भरे शोकयुक्त, चिंतित मन और आंखों में आसूं लिए अर्जुन को देखकर मधुसूदन भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए ये अर्जुन से ये वचन कहते हैं। (प्रथम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
श्रीभगवान उवाच:- कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥२॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- श्रीभगवान ने कहा - हे अर्जुन! ऐसे समय में तुम्हारे मन में यह विचार भी कैसे एवं क्यों आया कि अब यह युद्ध नहीं करोगे? तुम्हारे जैसे वीर क्षत्रिय योद्धा एवं बुद्धिजीवी पुरुष को ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे तो तुम अन्य दूसरे लोगों की नज़रों में एक वीर योद्धा नहीं कहलाओगे, बल्कि एक कायर कहे जाओगे। लोग तुम्हारी बड़ी निंदा करेंगे और तुम्हारा उपहास करेंगे कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होते हुए भी अर्जुन युद्ध भूमि में अपने विपक्षियों को देख घबरा कर डर गया और अर्जुन तुम्हारे जैसे क्षत्रिय वीर पुरुष के लिए तो ऐसी अपकीर्ति व अपमान जनक बातें किसी मृत्यु से कम नहीं होती। (द्वितीय श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
क्लैब्यमं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥३॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे पार्थ, हे अर्जुन! तुम ऐसे नपुंसक अर्थात् ऐसे कायर मत बनो। तुम्हारे जैसे वीर पुरुष एवं क्षत्रिय योद्धा के मुख से ऐसी बातें करना शोभा नहीं देता। हे शत्रुओं का नाश करने वाले परन्तप अर्जुन! अपने हृदय की इस दुर्बलता का त्याग करके तुम निश्चित होकर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ एवं युद्ध करो। (तृतीय श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अर्जुन उवाच:- कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन । इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥४॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - हे मधुसूदन, हे शत्रुओं के विनाशक! मैं इस युद्धभूमि में किस तरह से अपने ही पितामह अर्थात् दादाश्री भीष्म और अपने ही गुरु द्रोणाचार्य पर उनके बाणों के जवाब में उलट कर बाण कैसे चलाऊंगा। उनपर मैं अपना बाण कैसे चला सकता हूं, जो लोग मेरे लिए हमेशा से ही पूज्यनीय रहे हैं। (चतुर्थ श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके । हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् ॥५॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- ऐसे महापुरुषोंं को जो मेरे गुरु हैं, जिनसे ही मैंने बहुत कुछ सीखा है। मैं उन महान पुरुषों को मारना नहीं चाहता हूं, उन्हें मारकर जीने से तो अच्छा है कि इस संसार में भिक्षा व भीख मांग कर अन्न को ग्रहण कर लूं। भले ही वे संसारिक लाभ के इच्छुक हैं, लेकिन फिर भी वे हैं तो मेरे ही गुरुजन! यदि उनकी मृत्यु से हमें हमको राज्य, सुख-भोग की प्राप्ति भी होगी तो हमारे द्वारा भोग्य प्रत्येक वस्तु उनके रक्त से सनी हुई मिलेगी। (पंचम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः । यानेव हत्वा न जिजीविषाम - स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥६॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हम तो यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या करना श्रेष्ठ व कल्याणकारी है - उनसे जीतना या हारना। यदि हम अपने ही ताऊ धृतराष्ट्र के पुत्रों का वध भी कर देते हैं, तो भी हमें जीवित रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वे सभी धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे ही भाई हैं, जो इस युद्ध में हमारे सामने खड़े हैं। (षष्ठम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः । यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥७॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- अब तो मैं अपनी कृपण-दुर्बलता अर्थात् मोह के कारण अपना कर्तव्य गया हूं और सारा धैर्य भी खो चुका हूं। ऐसी अवस्था में मैं आपसे उचित मार्गदर्शन चाहता अतः आप मझे सही मार्गदर्शन प्रदान करें कि अब मुझे क्या करना चाहिए, जो मेरे लिए श्रेयस्कर यानी उचित अथवा सही तथा कल्याणकारी हो। मैं अब आपका शिष्य हूं और आपका शरणागत हूं। कृपया आप मुझे उपदेश दीजिए, मुझे ज्ञान दीजिए, मुझे सही मार्ग बताइए। (सप्तम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् - यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् । अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधित्यम् ॥८॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- मुझे तो ऐसा कोई भी साधन दिखाई नहीं दे रहा है, जो मेरी इंद्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके। स्वर्ग पर देवताओं के आधिपत्य स्वर्गलोक की तरह इस धन-धान्य से सम्पन्न समस्त पृथ्वी पर निष्कंटक राज्य अर्थात् पूरी तरह से अपने अधिकार में प्राप्त करके भी मैं अपने इस शोक व दुःख को दूर नहीं कर पाऊंगा। (अष्टम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
सञ्जय उवाच:- एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश परन्तप । न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तृष्णीं बभूव ह ॥९॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- संजय ने कहा - इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का नाश करने वाला अर्जुन श्री कृष्ण से बोला, "हे गोविन्द श्रीकृष्ण! मैं यह युद्ध नहीं करूंगा" और ऐसा कहकर वह चुप हो गया। (नवम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
तमुवाच हृषकेशः प्रहसन्निव भारत । सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥१०॥ |
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भागवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे भरतवंशी महाराज धृतराष्ट्र! उस समय दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में शोकमग्न अर्जुन से श्रीकृष्ण ने मानो हंसते-मुस्कुराते हुए ये शब्द कहते हैं। (दशम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 11-20 | भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक ११-२०
श्रीभगवानुवाच:- अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे। गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ॥११॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - तुम तो पाण्डित्यपूर्ण अर्थात् बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों एवं ज्ञानियों की तरह बातें कर रहे हो एवं ऐसे कहते हुए उनके उनके लिए शोक व्यक्त कर रहे हो, जो बिल्कुल शोक करने योग्य नहीं है। वैसे भी जो पंडित, विद्वान व ज्ञानी पुरुष होते हैं, वे न तो किसी जीवित प्राणी या जीवित व्यक्ति के लिए और न ही किसी मृत प्राणी व मृत व्यक्ति के लिए शोक व्यक्त करते हैं। (11वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥१२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं नहीं था या तुम नहीं थे अथवा ये समस्त राजा नहीं थे और न ही कभी ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे। (12वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवन जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥१३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस वर्तमान शरीर में बाल्यावस्था से युवावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता है, ठीक उसी प्रकार मृत्यु होने के पश्चात् आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है। धीर व्यक्ति व स्थिरबुद्धि वाला पुरुष ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता। (13वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः । आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥१४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! सुख तथा दुःख का क्षणिक उदय अर्थात् कम समय के लिए सुख-दुःख का आना-जाना तो इस कालक्रम में लगा ही रहता है, जैसे मौसम बदलता रहता है। सर्दी के बाद गर्मी आती ही है उसी तरह सुख के बाद दुःख और फिर दुःख के बाद सुख फिर से आता ही है। इसलिए हे अर्जुन! ये सुख-दुःख तो इंद्रियों के बोध से उत्पन्न होते हैं अतः मनुष्य को चाहिए कि वह अविचल भाव अर्थात एक समान भाव से सुख अथवा दुःख को अपनाना सीखे। (14वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ । समदुःखसुखं धीरं सोऽमृत्वाय कल्पते ॥१५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे पुरुषों में श्रेष्ठ अर्जुन! जो पुरुष सुख तथा दुःख में विचलित नहीं होता और इन दोनों परिस्थितियों में समभाव रखता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है। (15वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥१६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- तत्वदर्शियों अर्थात् तत्वों व भौतिक विज्ञान को जानने वालों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इस असत्य शरीर व भौतिक शरीर का कोई निश्चित रूप एवं स्थायित्व नहीं होता है, जबकि सत् हमारी आत्मा का स्थायित्व निश्चित होता है अर्थात् आत्मा स्थायी होता है, जो कभी नहीं बदलता। उन्होंने इन दोनों की प्रकृति के अध्ययन द्वारा ही यह निष्कर्ष निकाला है। (16वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥१७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो सारे शरीर में व्याप्त आत्मा है उसे ही तुम अविनाशी समझो। क्योंकि उस अव्यय आत्मा अर्थात् कभी भी समाप्त व नष्ट न होने वाले आत्मा को कोई भी नष्ट करने में सक्षम व समर्थ नहीं है। (17वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणषः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥१८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- यह आत्मा तो अविनाशी, अप्रमेय तथा शाश्वत है जिसका कोई अंत नहीं है जबकि भौतिक शरीर का अंत एक दिन जरूर होता है। इसलिए हे अर्जुन! तुम जीवन-मरण के विचार का त्याग कर युद्ध करो। (18वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
य एनं वेत्ति यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥१९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो कोई भी इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी व बुद्धिहीन हैं, क्योंकि आत्मा न तो कभी मरता है और न ही मारा जाता है। आत्मा किसी को नहीं मरता और न ही कोई आत्मा को मार सकता है। (19वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
न जायते म्रियते वा कदाचि-न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥२०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- किसी भी काल में आत्मा का न जन्म हुआ है और न ही वो मृत्यु को प्राप्त कर सकता है, वो तो हमेशा से ही रहा है और आगे भी रहेगा। आत्मा का न कभी जन्म हुआ था, न कभी जन्म हुआ है और न ही कभी जन्म होगा। आत्मा तो अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने के बाद भी आत्मा नहीं मरता। (20वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 21-30 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक २१-३०
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥२१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे पार्थ, हे पृथापुत्र अर्जुन! जो व्यक्ति यह जानता है कि आत्मा तो अविनाशी, अजन्मा, शाश्वत तथा अव्यय है, वह भला कैसे किसी को कैसे मार सकता है या कैसे किसी को मरवा सकता है? (21वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥२२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने तथा व्यर्थ व खराब वस्त्रों का त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है। ठीक उसी प्रकार जब शरीर व्यर्थ हो जाता है और आत्मा के रहने लायक नहीं रहता, तब वो आत्मा भी अपने पुराने तथा व्यर्थ शरीरों का त्याग कर नया भौतिक शरीर धारण करता है। (22वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥२३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस आत्मा को न तो किसी शस्त्र द्वारा खंडित किया जा सकता है, न ही इसे अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न इसे जल द्वारा भिगोया जा सकता है और न ही इसे वायु द्वारा सुखाया जा सकता है। (23वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥२४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है, जिसे खंडित या थोड़ा नहीं जा सकता और न ही इसे जल में डूबोया जा सकता है। इसे न आग में जलाया जा सकता है और न ही इसे हवा में सुखाया जा सकता है। यह आत्मा तो शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाला है। (24वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥२५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस आत्मा को अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है, जिसको कोई व्यक्त नहीं कर सकता और न ही कोई इसकी कल्पना कर सकता है। यह आत्मा अपरिवर्तनशील है, जो कभी नहीं बदलता। यह जानकर तुम्हें शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए। (25वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् । तथापि त्वं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि ॥२६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- लेकिन फिर भी यदि तुम अगर ऐसा सोचते हो कि आत्मा भी हमेशा जन्म लेता है तथा मरता है, तो भी हे महाबाहु अर्जुन! तुम्हें ऐसे में भी शोक करने की कोई आवश्यकता नहीं है। (26वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥२७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- वैसे भी इस सृष्टि में प्रकृति का यही नियम है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है। ऐसे में तुम्हें अपने कर्तव्य व परमधर्म का त्याग कर शोक नहीं करना चाहिए। (27वें श्लोक ) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥२८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- सभी जीव प्रारंभ में अप्रकट व अदृश्य रहते हैं, मध्य अवस्था में प्रकट होते हैं और मृत्यु को प्राप्त होने पर पुनः अप्रकट व अदृश्य हो जाते हैं। अतः इसमें शोक करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है? (28वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन - माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः । आश्चर्यवच्चैनमन्य: शुणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥२९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- कोई ज्ञानी पुरुष आत्मा को आश्चर्य से देखता है, कोई अन्य ज्ञानी पुरुष इसे आश्चर्य की तरह बताता है तथा कोई अन्य ज्ञानी पुरुष इसे आश्चर्य की तरह सुनता है, लेकिन कोई-कोई अल्पज्ञानी पुरुष इसके विषय में बार-बार सुनकर भी आत्मा के बारे में कुछ भी समझ नहीं पाते। (29वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥३०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे भरतवंशी अर्जुन! इस देह व शरीर में रहने वाले देही अर्थात् आत्मा का कभी भी वध नहीं किया जा सकता। अतः तुम्हें किसी भी जीव व मनुष्य के लिए शोक व्यक्त करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। (30वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक ३१-४०
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि । धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥३१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- एक क्षत्रिय होने के नाते अपने परम् धर्म का विचार करते हुए तुम्हें यह समझना कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य ही नहीं है। इसलिए तुमको संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है। (31वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥३२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे पार्थ अर्जुन! वे क्षत्रिय बहुत ही शौभाग्यशाली व सुखी होते हैं, जिनको उनके जीवन में ऐसे युद्ध करने के अवसर अपने आप ही प्राप्त होते हैं, जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के दरवाजे भी खुल जाते हैं। (32वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि । ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥३३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- किंतु फिर भी यदि तुम अपने स्वधर्म का पालन करने में असमर्थ होकर युद्ध नहीं करोगे तो निश्चित रूप से तुम पर अपने क्षत्रिय धर्म व कर्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम एक वीर योद्धा के रूप में भी अपना यश वैभव मान प्रतिष्ठा और अपनी इज्जत को खो दोगे। (33वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् । सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥३४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- लोग हमेशा तुम्हारी निंदा करते रहेंगे एवं तुम्हारा अपमान करेंगे और तुम्हारे जैसे सम्मानित वीर योद्धा व क्षत्रिय पुरुष के लिए तो इस प्रकार की निंदा व अपयश और बदनामी किसी मृत्यु से भी कम नहीं होती है। (34वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः । येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥३५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिन-जिन लोगों एवं महान योद्धाओं ने भी अब तक तुम्हारे नाम तथा तुम्हारे यश को सम्मान दिया है। वे सब यही सोचेंगे कि तुम ने डरकर युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे तुम्हें कायर एवं तुच्छ मानेंगे। (35वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः । निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥३६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- तुम्हारे शत्रु तो इसी बात का फायदा उठाकर तुम्हें अनेक प्रकार के कटु शब्द कहेंगे। कभी न कहे जाने वाले शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी वीरता एवं सामर्थ्य का मजाक उड़ायेंगे। (36वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् । तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥३७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! अगर तुम इस युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे तो तुम स्वर्ग को प्राप्त करोगे और यदि तुम इस युद्ध में विजय को प्राप्त करते हो, तो इसी पृथ्वी के साम्राज्य पर समस्त राज्य सुख का भोग प्राप्त करोगे। इसलिए तुम दृढ़ संकल्प के साथ खड़े हो जाओ और युद्ध करो। (37वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ । ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥३८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस युद्ध में तुम सुख-दुःख, लाभ-हानि या विजय-पराजय का विचार किये बिना युद्ध करो। ऐसा करने से तुम पर कोई भी पाप नहीं लगेगा। (38वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शुणु । बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥३९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- मैंने तुम्हारे लिए इस ज्ञान को सांख्य दर्शन व वैश्लेषिक अध्ययन के रूप में वर्णित किया है लेकिन अब मैं तुम्हें निष्काम भाव से कर्म करने की बात बता रहा हूं, उसे तुम ध्यान से सुनो। हे पार्थ अर्जुन! यदि तुम ऐसे ज्ञान को अपनाकर निष्काम भाव से कर्म करोगे, तो तुम सभी प्रकार के कर्मों के बन्धन से खुद को मुक्त कर सकते हो। (39वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते । स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥४०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस प्रकार निष्काम भाव के प्रयास में न तो कोई ह्रास होती है और न ही हानि होती है बल्कि इस पथ पर किया गया थोड़े समय का प्रयास भी बहुत बड़े-बड़े भय से रक्षा कर सकती है। (40वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 41-50 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक ४१-५०
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धायोऽव्यवसायिनाम् ॥४१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो कोई इस राह को अपनाते हैं या इस मार्ग पर चलते हैं, वे सदैव अपने प्रयोजन व योजना में दृढ़ रहते हैं और सफलता को प्राप्त करते हैं क्योंकि उनका लक्ष्य भी एक ही होता है। हे कुरुनन्दन अर्जुन! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं हैं उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है, जिस कारण वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। (41वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: ॥४२॥ कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥४३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- अल्पज्ञानी पुरुष, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे वंश एवं शक्ति इत्यादि के लिए आसक्त होकर वेदों में वर्णित ज्ञान से भगवान या ईश्वरीय शक्ति में आस्था रखते हैं। वे लोग स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे परिवार में जन्म, अच्छा शरीर व शक्ति आदि के लिए विभिन्न साकाम कर्म करते रहते हैं। शारीरिक सुख तथा खुशहाली जीवन की अभिलाषा के कारण वे मानते हैं कि इस जीवन से बढ़कर और कुछ नहीं है। (42वें - 43वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
भोगैश्वर्यप्रक्तानां तयापहृतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥४४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो लोग इन्द्रियभोगों व शारीरिक सुख तथा भौतिक ऐश्वर्य अर्थात् इस पृथ्वी पर सुख की प्राप्ति के प्रतीक माने जाने वाले तत्व धन-दौलत, वैभव, काम-वासना आदि के प्रति बहुत अधिक मोहग्रसत हो जाते हैं, उनके मन में भगवान के प्रति कोई दृढ़ भक्ति निश्चय ही नहीं होता। (44वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जन । निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥४५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- वेदों में भी मुख्यतः प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन हुआ है- सत, रज और तम। हे अर्जुन! तुम प्रकृति के इन तीन गुणों से ऊपर उठो। समस्त द्वैतो अर्थात् सुख-दुःख, हार-जीत और लाभ-हानि तथा सुरक्षा की सारी चिंताओं से मुक्त होकर आत्म परायण बनो। (45वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके । तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत: ॥४६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- एक छोटे से कूप व कुएं का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तुरंत पूरा हो जाता है। इसी प्रकार वेदों के ज्ञान को सही से जानने वाले व्यक्ति को उसके सारे प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं अर्थात् उसके सभी योजनाएं एवं सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। (46वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
कर्मण्येवाधीकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥४७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- तुमको केवल अपने कर्म को करने का अधिकार प्राप्त है, किंतु उस कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। क्योंकि तुम सिर्फ अपना कर्म कर सकते हो उस कर्म का परिणाम तुम्हारे वश में नहीं है। इसलिए तुम अपने आप को कभी अपने कर्मों के फलों का कारण न मानो, न ही कभी कर्म न करने में आसक्त हो जाओ। भावार्थ:- यहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि मनुष्य को केवल अपना कर्म करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन उस कर्म फल का परिणाम केवल परमात्मा यानी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के वश में है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह कभी ऐसा न सोचे कि वो कोई भी कर्म स्वयं कर रहा है, बल्कि उसको यह सोचकर कोई भी कार्य करना चाहिए कि वो, जो भी कार्य कर रहा है वह कार्य स्वयं भगवान यानी परमात्मा ही उसको माध्यम बनाकर कर रहा है। (47वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्ग त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥४८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! तुम हार या जीत जैसे समस्त आसक्ति व मोह माया का त्याग कर समभाव होकर अपना कर्म करो। ऐसी समभाव भावना समता ही योग कहलाती है। (48वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय । बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: ॥४९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे धनंजय, अर्जुन! भक्ति के मार्ग पर आने वाले समस्त गर्हित व निंदनीय कर्मों से दूर रहो और उसी भाव से भगवान की शरण ग्रहण करो। ऐसे व्यक्ति जो अपने सकाम कर्म-फलों की आशा रखते हैं और उन फलों को को भोगना चाहते हैं, वे कृपण व कंजूस व्यक्ति होते हैं। अर्थात् किसी काम के बदले में उस कर्मफल की चाह रखना कंजूस एवं लालची व्यक्ति की पहचान होती है। (49वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् ॥५०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- भगवान की भक्ति में लीन व आसीत एवं संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कर्मों से अपने आप को मुक्त कर लेता है। अतः योग के लिए प्रयास करो क्योंकि योग से ही समस्त कार्यों को कौशलता पूर्वक किया जा सकता है। अर्थात् भगवान के भक्ति में आसक्त होकर किया जाने वाला कोई भी कार्य सफल जरूर होता है। (50वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 51-60 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक ५१-६०
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्या मनीषिणः । जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥५१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस तरह भगवान की भक्ति में लगे रहकर भी बड़े-बड़े ऋषि, मुनि अथवा भक्तगण इस भौतिक जगत में कर्म के फलों से अपने आप को मुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार वे जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्त हो जाते हैं और अंत में मृत्यु के पश्चात उनकी आत्माएं भगवान के पास जाकर उस परमपिता परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। अर्थात् इस मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर परमात्मा में समा जाते हैं। (51वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यंतितरिष्यति । तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥५२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी इस सघन वन अर्थात् काम, क्रोध और वासना से घिरे घने जंगल को पार कर जायेगी तो तुम सुने हुए तथा सुनने योग्य सब के प्रति अन्यमनस्क हो जाओगे। भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में कहना चाहते हैं मनुष्य जब सभी प्रकार के सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय तथा प्रेम एवं वासना आदि जैसे मोह-माया के बन्धनों से मुक्त हो जाता है, तब जाकर उसे किसी भी बात या समस्या के जड़ों को समझने में आसानी होती है तथा वह किसी भी मुश्किल परिस्थितियों में एक सही निर्णय कर पाता है, जो उसके तथा दूसरे लोगों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होता है। (52वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला । समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमविप्स्यसि ॥५३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जब तुम्हारा मन वेदों की अलंकारमयी भाषा से विचलित होकर आत्मसाक्षात्कार की समाधि में स्थिर जायेगा, तब तुम्हें दिव्य चेतना व परम ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी। भगवान कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपने मन को वेदों में बताये गये सभी प्रकार के उचित कर्मों व आचरण से प्रभावित होकर स्वयं के अस्तित्व को समझने के प्रयास में लग जाता है, तब उसे दिव्य चेतना की प्राप्ति होती है और वह परम सत्य एवं परम ज्ञान को प्राप्त होता है। (53वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अर्जुन उवाच:- स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव । स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥५४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन भगवान से पूछते हैं - हे केशव, हे कृष्ण! अध्यात्म में लीन तथा स्थिर चेतना वाले स्थितप्रज्ञ व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं, वह कैसे बोलता है तथा उसकी भाष्यशैली कैसी होती है? वह किस तरह बैठता है और किस तरह से चलता है। (54वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
श्रीभगवानुवाच:- प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् । आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥५५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- भगवान ने कहा - हे पार्थ अर्जुन! जब मनुष्य अपने मन में उत्पन्न होने वाली इंद्रियतृप्ति की समस्त कामनाओं जैसे लालच, क्रोध एवं वासना आदि का परित्याग कर देता है। तब उसका मन विशुद्ध व पवित्र होकर सन्तोष को प्राप्त करता है और जब वह दिव्य चेतना को प्राप्त कर परम ज्ञान व परम शांति को भी प्राप्त करता है, तब वह स्थितप्रज्ञ व्यक्ति अर्थात् स्थिरबुद्धि वाला मनुष्य कहा जाता है। (55वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: । वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥५६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो कोई तीनों तापों यानी कि लोभ, क्रोध एवं वासना के होने पर भी अपने मन को विचलित नहीं होने देता अथवा न ही सुख में प्रसन्न होता है। जब वह आसक्ति व मोह, भय तथा क्रोध से पूर्णतया मुक्त हो जाता है, तब वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है। (56वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशभम् । नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥५७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस भौतिक जगत में जब कोई व्यक्ति शुभ अथवा अशुभ की स्थिति में समभाव रखता है। जिसको न ही सुख के मिलने से खुशी होती है और न ही दुःख के प्राप्त होने से उससे घृणा करता है, वह पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर स्थिरबुद्धि मनुष्य बन जाता है। (57वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वश: । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥५८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिस प्रकार एक कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके अपने खोल के भीतर समा यानी अपने आप में ही के समा लेता है, ठीक उसी तरह जो मनुष्य अपनी इंद्रियों को इंद्रियविषयों जैसे सुख, दुःख, लाभ-हानि, हार-जीत अथवा लालच एवं घृणा आदि से स्वयं को खींच लेता है, वह पूरी तरह चेतना में दृढ़तापूर्वक स्थिर होता है। (58वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन: । रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥५९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- देहधारी व शरीरधारी जीव कितने ही इन्द्रिय भोगों जैसे धन-दौलत , मान-प्रतिष्ठा और वासना की तृप्ति आदि को प्राप्त कर लें लेकिन फिर भी उसमें इन्द्रियभोगों की इच्छा बनी ही रहती है। लेकिन उत्तम रस भगवान की भक्ति के अनुभव होने से ऐसे कार्यों को बंद करने पर वह भक्ति में लीन होकर स्थिर हो जाता है। (59वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित: । इन्द्रियाणी प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन: ॥६०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! इन्द्रियां इतनी प्रबल व शक्तिशाली तथा तीव्रवान होती हैं कि वे विवेकी एवं ज्ञानी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो अपने इंद्रियों को वश में करने का प्रयत्न करता है। (60वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 61-70 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक ६१-७०
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः । वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥६१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो व्यक्ति अपने समस्त इंद्रियों को वश में रखते हुए इंद्रिय-संयमन करता है अर्थात् इंद्रियों को नियंत्रित करता है और अपनी चेतना को मुझमें स्थिर कर देता है, वह व्यक्ति निश्चित रूप से स्थिरबुद्धि कहलाता है। (61वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
ध्यायतो विसयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते । सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥६२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इंद्रियविषयों जैसे मोह, खुशी, वासना इत्यादि का चिंतन करते हुए मनुष्य में उसके प्रति और अधिक आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और आसक्ति से काम वासना उत्पन्न होता है और उस काम (लाभ, इच्छा, वासना) के पूरा न होने से उसमें क्रोध प्रकट होता है। (62वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धीनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥६३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाता है। जब स्मरण शक्ति ही भ्रमित हो जाती है तो बुद्धि व सोच-विचार की क्षमता भी नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य पुनः बुरे कर्मों में लिप्त हो जाता है। (63वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
रागद्वेषविमुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् । आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥६४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- किंतु समस्त राग-प्रेम तथा द्वेष व घृणा तथा नफरत से मुक्त एवं अपनी इंद्रियों को संयम द्वारा वश में करने में सक्षम एवं समर्थ व्यक्ति भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है। (64वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते । प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते ॥६५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इस प्रकार से भगवान या ईश्वरीय शक्ति में आसक्त व्यक्ति के लिए तीनों ताप (लोभ, क्रोध और वासना की आकांक्षा) नष्ट हो जाते हैं और परमात्मा में आस्था रखने वाले ऐसी तुष्ट चेतना को प्राप्त होने वाले व्यक्ति की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है। (65वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना । न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुछ: सुखम् ॥६६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो लोग भगवान, परमेश्वर या ईश्वरीय शक्ति में आसक्त नहीं रहते अर्थात् परमात्मा में विश्वास नहीं रखते और परमात्मा से सम्बंधित नहीं हैं उनकी बुद्धि न ही दिव्य होती है और न ही उनका मन स्थिर होता है। जिस स्थिर बुद्धि के बिना शांति की कोई संभावना नहीं नहीं होती। भला शांति व सत्य को प्राप्त किये बिना कोई व्यक्ति सुखी कैसे हो सकता है? (66वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते । तदस्य प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥६७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिस तरह पानी में तैरती हुई नाव को प्रचण्ड वायु दूर बहा ले जाती है उसी प्रकार विचारों से प्रभावित मन अर्थात् विचारणशील इंद्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरंतर लगा रहता है, ऐसे मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है। (67वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥६८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- इसलिए हे महाबाहु! जिस पुरुष की इंद्रियां अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरक्त व मुक्त होकर उस मनुष्य के वश में हैं, निसंदेह उसकी बुद्धि स्थिर होती है। (68वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: ॥६९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जब सब जीवों के लिए रात्रि होता है, तब उस स्थिर बुद्धि के लिए यह समय जागने का होता है और जब समस्त जीवों के जागने का समय होता है, तब ऐसे आत्मनिरिक्षक मुनि के लिए रात्रि के समान होता है। (69वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् । तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥७०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जो पुरुष, समुद्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के प्रवाह से विचलित यानी प्रभावित नहीं होता और जो हमेशा स्थिर रहता है, वही पुरुष शांति को प्राप्त कर सकता है, लेकिन ऐसा पुरुष शांति को प्राप्त नहीं कर सकता, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने की चेष्टा करते रहता है। (70वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Sankhya Yog Shlok 71-72 | भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक ७१-७२
विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: । निर्ममो निरहङ्कार: स शान्तिमधिगच्छति ॥७१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- जिस भी व्यक्ति ने अपने इंद्रियतृप्ति की समस्त कामनाओं जैसे मन में उत्पन्न होने वाली इच्छा जैसे लालच, क्रोध और वासना इत्यादि का परित्याग कर देता है, जो अभिलाषा रहित रहता है और जिसने सारी ममता और मोह का त्याग किया है तथा अहंकार से रहित है, वही व्यक्ति वास्तविक रूप में शांति को प्राप्त कर सकता है। (71वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति । स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥७२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 2 सांख्य योग हिंदी संस्करण:- यह स्थितप्रज्ञ बुद्धि का ज्ञान आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ या परमात्मा को प्राप्त कर पाने का उचित मार्ग है। जिसे प्राप्त करने से पश्चात मनुष्य इस संसार के किसी भी मोह-माया से मोहित नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति भले ही अपने जीवन के अंतिम समय में इस तरह स्थिर हो जाता है अर्थात् संसार के सभी प्रकार के भौतिक मोह-माया से मुक्त होकर निष्काम भाव से कर्म करने तथा परमात्मा में श्रद्धा एवं विश्वास रखकर कर्म करने से, वह व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है तथा भगवान के परम धाम में प्रवेश पाता है अर्थात् परमात्मा में ही सदा के लिए विलीन हो जाता है। (72वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
इस प्रकार से श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा अध्याय समाप्त होता है। यह अध्याय हमें यह भी सिखाता है कि किस प्रकार जीवन में आने वाले हर चुनौती का सामना धैर्य और आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए। श्रीमद भगवद गीता का यह अध्याय निस्संदेह जीवन की जटिलताओं और समस्याओं से निपटने के लिए प्रेरणादायक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
Five Most Important Teachings of Bhagavad Gita | भगवत गीता की 5 ज्ञान की बातें
श्रीमद्भगवद्गीता, जिसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संग्राहक ग्रंथ कहा जाता है, हमें जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाती है। इसके दूसरे अध्याय में, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जीवन, कर्म, और आत्मा के बारे में गहरी समझ प्रदान की है। यहाँ हम श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय से पांच प्रमुख शिक्षाओं पर चर्चा करेंगे।
1. स्थिरबुद्धि (स्थिरता का महत्व): भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि व्यक्ति को स्थिरबुद्धि होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि उसे सुख-दुःख, लाभ-हानि, और जय-पराजय में समान दृष्टि रखनी चाहिए। जीवन में स्थिरता बनाए रखने के लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि को स्थिर रखना अनिवार्य है। "मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय, शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥" (श्लोक 2.14) |
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2. आत्मा की अमरता: श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह अजर-अमर और अविनाशी है। यह शिक्षा हमें सिखाती है कि मृत्यु का भय छोड़कर अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। "न जायते म्रियते वा कदाचि-नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥" (श्लोक 2.20:) |
3. कर्मयोग: कर्मयोग का सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति को केवल अपने कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता करना उसका कर्तव्य नहीं है। यह हमें निःस्वार्थ भाव से काम करने की प्रेरणा देता है। "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥" (श्लोक 2.47) |
4. निर्णय लेने की शक्ति: श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि व्यक्ति को सही और गलत का निर्णय स्वयं लेना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। इससे हमें निर्णय लेने में आत्मनिर्भरता की शिक्षा मिलती है। "बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥" (श्लोक 2.50) |
5 आत्मसंयमता का ज्ञान: आत्मसंयम का अर्थ है इंद्रियों को वश में रखना। भगवान कृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि आत्मसंयम से मनुष्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पा सकता है और सच्चे आनंद की प्राप्ति कर सकता है। "तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः। वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥" (श्लोक 2.61) |
इस प्रकार से श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा अध्याय हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। स्थिरबुद्धि, आत्मा की अमरता, कर्मयोग, निर्णय लेने की शक्ति, और आत्मसंयम जैसी शिक्षाएं हमारे जीवन को सार्थक और सफल बना सकती हैं। इन शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन में शांति और संतोष पा सकते हैं।
Conclusion of Bhagwat Geeta Sankhya Yog | सांख्य योग का निष्कर्ष
भगवत गीता का 2 अध्याय 'सांख्य योग' हमें न केवल हमारे कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है, बल्कि हमें आत्मा की अमरता और जीवन के वास्तविक उद्देश्य का भी ज्ञान कराता है। श्रीकृष्ण के उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। इस अध्याय के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि जीवन में सही दृष्टिकोण और कर्तव्यों का पालन कैसे किया जाए। गीता के इस महत्वपूर्ण अध्याय को समझकर हम अपनी दैनिक चुनौतियों का सामना दृढ़ता और समर्पण के साथ कर सकते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता के ये अनमोल शब्द हमें आत्मा की शांति और सच्ची संतुष्टि की ओर मार्गदर्शन करते हैं, जो जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है। आपको Bhagwat Geeta Adhyay 2 की यह जानकारी कैसी लगी हमें अवश्य बताएं। अब हमारी मुलाकात भगवत गीता के अगले अध्याय में होगी, तब तक के लिए आपका हमारे ॐ Shrimad Bhagwat Geeta परिवार की ओर से बहुत-बहुत आभार। अब हमें आज्ञा दीजिए और हाँ हमारी भेंट गीता के तीसरे अध्याय कर्म योग में होगी, तब तक के लिए धन्यवाद एवं जय श्रीकृष्ण!
FAQ: About Bhagwat Geeta Chapter 2 Sankhya Yog | श्रीमद् भागवत गीता प्रश्नोत्तरी - सांख्य योग
1. श्रीमद् भगवद गीता के अध्याय 2 का मुख्य विषय क्या है? ॐ: श्रीमद् भगवद गीता के अध्याय 2 का मुख्य विषय "सांख्य योग" है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा के अमरत्व और धर्म के महत्व को समझाते हैं। |
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2. अर्जुन की क्या दुविधा थी जो अध्याय 2 में व्यक्त की गई है? ॐ: अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों को लेकर दुविधा में थे। वे अपने परिवारजनों और गुरुओं के खिलाफ युद्ध करने को तैयार नहीं थे। इस दुविधा को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण उन्हें ज्ञान का उपदेश देते हैं। |
3. अध्याय 2 में आत्मा का स्वरूप कैसे बताया गया है? ॐ: श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा अविनाशी, शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। आत्मा न तो मर सकती है और न ही उसे कोई मार सकता है। यह शाश्वत और अमर है। |
4. "कर्मण्येवाधीकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि" इस श्लोक का क्या महत्व है? ॐ: यह श्लोक कर्म योग का मूल सिद्धांत बताता है। इसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को केवल अपने कर्तव्य पर ध्यान देना चाहिए, परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। |
5. संन्यास और योग में क्या अंतर है? ॐ: संन्यास का अर्थ है संसार के सभी कर्तव्यों और इच्छाओं का त्याग, जबकि योग का अर्थ है समर्पण और संतुलन। सांख्य योग ज्ञान और विवेक का मार्ग है जबकि कर्म योग कर्मों को भगवान को समर्पित करने का मार्ग है। दोनों ही मोक्ष की ओर ले जाते हैं लेकिन उनका दृष्टिकोण भिन्न है। गीता के 2 अध्याय में श्रीकृष्ण योग का महत्व समझाते हैं, जिसमें व्यक्ति कर्म करते हुए भी निरासक्त रहता है यानी उस कर्म फल की ईच्छा नहीं रखता। |
6. अर्जुन को श्रीकृष्ण ने "कायर" क्यों कहा? ॐ: अर्जुन जब अपने कर्तव्यों से पीछे हटने लगे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें कायर कहा ताकि वे अपनी कर्तव्यनिष्ठा को समझ सकें और युद्ध के लिए तैयार हो सकें। |
7. "स्थिति प्रज्ञ" की अवधारणा क्या है? ॐ: "स्थिति प्रज्ञ" वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति स्थिर और समभाव में रहता है। यह आत्म-ज्ञान की अवस्था है जहां व्यक्ति दुख और सुख दोनों में समान भाव रखता है। |
8. आत्मा के बारे में श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण क्या है? ॐ: श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। आत्मा अजर-अमर, नित्य और अविनाशी है। यह शरीर के नाश होने पर भी नष्ट नहीं होती। |
9. "संन्यास" और "कर्मयोग" के बीच भगवान श्रीकृष्ण किसे श्रेष्ठ मानते हैं? ॐ: भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग को श्रेष्ठ मानते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर में समर्पित रहना चाहिए। |
10. अर्जुन की मनोदशा को सुधारने के लिए श्रीकृष्ण ने कौन-कौन से तर्क दिए? ॐ: श्रीकृष्ण ने आत्मा की अमरता, कर्तव्य का पालन, परिणाम की चिंता न करना, और "स्थिति प्रज्ञ" की अवस्था को अर्जुन के सामने रखा ताकि वे अपनी दुविधा से बाहर आ सकें और युद्ध के लिए प्रेरित हो सकें। |
11. भगवत गीता के अनुसार सांख्य योग क्या है? ॐ: सांख्य योग भगवद गीता के दूसरे अध्याय में वर्णित एक मार्ग है जो मनुष्य को ज्ञान और विवेक के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का सही रास्ता दिखाता है। इस अध्याय में आत्मा और शरीर के भेद की समझ को प्रमुखता दी जाती है। |
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12. गीता के द्वितीय अध्याय का क्या महत्व है? ॐ: गीता के दूसरे अध्याय में सांख्य योग विशेष महत्व है क्योंकि यह आत्मा की अमरता और स्थिरता पर प्रकाश डालता है, जिससे व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं से निर्भीक रहता है। |
13. कृष्ण ने अर्जुन को सांख्य योग क्यों सिखाया? ॐ: अर्जुन युद्ध के मैदान में मोह और शोक से ग्रस्त था। कृष्ण ने उसे आत्मा के ज्ञान और शरीर की नश्वरता का बोध कराकर कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा दी। |
14.भगवद गीता के दूसरे अध्याय में आत्मा की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं? ॐ: दूसरे अध्याय में आत्मा की विशेषता के बारे में बताया गया है कि आत्मा अजर, अमर, अविनाशी, और शाश्वत है। इसे न आग जला सकती है, न पानी गीला कर सकता है, न हवा सुखा सकती है, और न हथियार काट सकते हैं। आत्मा को कोई मार नहीं सकता और न ही किसी प्रकार से उसे नष्ट किया जा सकता है। |
15. सांख्य योग में आत्मा और शरीर के भेद को कैसे समझाया गया है? ॐ: सांख्य योग में आत्मा को अजर, अमर और स्थायी बताया गया है, जबकि शरीर को नाशवान। आत्मा शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है। |
🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩🚩🚩
Disclaimer: जरूरी सूचना यह है कि "श्रीमद् भगवद् गीता" एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जो भारतीय साहित्य और दार्शनिक विचारों का अमूल्य तथा अतुलनीय हिस्सा है। यह ग्रंथ धार्मिक और आध्यात्मिक सन्देशों का संग्रह है और इसे समझने और उस पर अमल करने के लिए गहरी अध्ययन और आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता होती है। हमारे इस ब्लॉग "Om- Shrimad-Bhagwat-Geeta (www.shrimadbhagwatgeeta.in)" पर प्रस्तुत सभी जानकारी और सामग्री केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की गई है। यहां दी गई जानकारी को सटीक और अद्यतित रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन हम किसी भी प्रकार की पूर्णता, सटीकता, विश्वसनीयता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देते हैं। किसी भी सूचना या व्याख्या की पुष्टि के लिए, यह वेबसाईट जिम्मेदारी नहीं है। इसके सही पुष्टि के लिए आपको सनातन धर्म के संस्कृत विशेषज्ञों, धार्मिक गुरुओं या सम्प्रदायिक आचार्यों से परामर्श लेना चाहिए। यहां प्रस्तुत की गई सभी सामग्री केवल सनातन जानकारी और सनातन संस्कृति को प्रेरित करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, इसका कोई अन्य उपयोग या उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए उपयोगकर्ता किसी भी जानकारी पर अपनी टिप्पणी करने से पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें।
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