Shrimad Bhagwat Geeta: अध्याय 5 कर्म संन्यास योग गीता के अनमोल उपदेश जो आपका जीवन बदल सकते हैं! Bhagwat Geeta Adhyay 5 Karm Sanyas Yog in Hindi

 जय श्री कृष्ण! मित्रों श्रीमद् भागवत गीता (श्रीमद् भगवद्गीता) विश्व के महानतम धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में से एक है। यह महाभारत के भीष्म पर्व में संलग्न है और भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद का वर्णन करती है। यह ग्रंथ हमें जीवन के गहरे रहस्यों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है।
 भगवत गीता के 18 अध्यायों में से पाँचवाँ अध्याय 'कर्म संन्यास योग' के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कर्म, ज्ञान, और संन्यास के विभिन्न पहलुओं पर अर्जुन को शिक्षा देते हैं। गीता के पांचवे अध्याय यानी "Bhagwat Geeta Adhyay 5 in Hindiके लेख का मुख्य विषय यह है कि किस प्रकार एक व्यक्ति कर्म करते हुए भी अपने मन को संन्यास की अवस्था में रख सकता है।

Bhagwat Geeta Adhyay 5 in Hindi | Bhagwat Geeta Chapter 5 | Bhagwat Geeta Karm Sanyas Yog | भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग

Bhagwat Geeta Adhyay 5 in Hindi | भगवत गीता अध्याय 5 संस्कृत में

 भगवत गीता के पाँचवें अध्याय 'कर्म संन्यास योग' में भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग और संन्यासयोग के बीच की तुलना करते हुए बताते हैं कि दोनों ही मार्ग उत्तम हैं, लेकिन जो व्यक्ति कर्मयोग का पालन करते हुए अपने सभी कार्यों को भगवान को अर्पित कर देता है, वह सच्चे अर्थों में संन्यासी है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि कर्म संन्यास योग का पालन करने वाला व्यक्ति वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है और उसे संसार के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।
 अध्याय 5 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाते हैं कि कर्म करते हुए भी आंतरिक शांति और मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यह अध्याय बताता है कि कैसे एक व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता हुआ भी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। 

Karm Sanyas Yog in Hindi | भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी में !

Karm Sanyas Yog in Hindi | भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी में !

 श्रीमद् भागवत गीता का पांचवां अध्याय कर्म संन्यास योग एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो जीवन के गूढ़ रहस्यों और धर्म के मार्ग को स्पष्ट करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म, संन्यास और योग के बारे में बताते हैं। इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य कर्म और संन्यास के बीच के भेद को समझाना है, जिससे व्यक्ति सही मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त कर सके।

 कर्म संन्यास योग वह अध्याय है जो हमें सिखाता है कि किस प्रकार कर्म करते हुए भी हम संन्यास के मार्ग पर चल सकते हैं। यह अध्याय जीवन के उन पहलुओं को उजागर करता है जो हमें आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाते हैं। इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए। वे बताते हैं कि सच्चा योगी वही है जो कर्म के फल की इच्छा नहीं करता, बल्कि उसे भगवान को अर्पित कर देता है।

Importance of Karma Sanyas Yoga | कर्म संन्यास योग का महत्व

 What is Karma Sanyas Yog? | कर्म संन्यास योग क्या है?

कर्म संन्यास योग: इस योग के दो मुख्य तत्व हैं- कर्म और संन्यास। कर्म का अर्थ है कार्य या कर्तव्य, और संन्यास का अर्थ है त्याग। लेकिन यह त्याग बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होता है। इसका अर्थ है मन और बुद्धि का त्याग करना, और कार्य करते हुए भी उससे आसक्ति न रखना।कर्म संन्यास योग का तात्पर्य उस योग से है जिसमें व्यक्ति कर्म तो करता है, लेकिन उनमें आसक्ति नहीं रखता। यह योग हमें यह सिखाता है कि कर्म का त्याग नहीं बल्कि कर्म में आसक्ति का त्याग महत्वपूर्ण है। 
 भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, कर्म संन्यास का मतलब है सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर देना और उनके फल की चिंता न करना। यह योग व्यक्ति को सच्ची शांति और मुक्ति की ओर ले जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में कहते हैं कि एक सच्चा योगी वही है, जो कर्म करते हुए भी अपने मन को शांत और स्थिर रख सकता है। संन्यास का वास्तविक अर्थ यह नहीं है कि हम अपने कर्तव्यों को छोड़ दें, बल्कि यह है कि हम अपने कर्तव्यों को निष्काम भाव से करें। 

What is Karma Sanyas Yog? | कर्म संन्यास योग क्या है?

 Importance of Karma Sanyas Yoga | कर्म संन्यास योग का महत्व 

 श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं और कर्तव्यों के बारे में ज्ञान दिया है। गीता के प्रत्येक अध्याय में जीवन के लिए महत्वपूर्ण शिक्षाएँ निहित हैं। अब हम गीता के पांचवें अध्याय कर्म संन्यास योग के महत्व  को समझते हैं:

1. कर्म और संन्यास में तुलनात्मक महत्व: इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग (कर्तव्यों का पालन करते हुए) और संन्यास (सभी कर्मों का त्याग) के बीच तुलना की है। उन्होंने बताया कि केवल कर्मों का त्याग ही मोक्ष का मार्ग नहीं है, बल्कि कर्मयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
2. कर्मयोग का महत्त्व: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि कर्मयोग, जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है और फल की चिंता किए बिना काम करता है, सबसे उत्तम मार्ग है। यह मार्ग आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।
3. मन की स्थिरता का महत्व: श्रीकृष्ण ने बताया कि व्यक्ति को अपने मन को स्थिर और शांत रखना चाहिए। चाहे वह कर्मयोग का पालन करे या संन्यास का, मन की स्थिरता और आत्मा की शांति अत्यंत आवश्यक है। 
4. आत्मानुभूति का महत्व: इस अध्याय में आत्मानुभूति के महत्व पर जोर दिया गया है। आत्मानुभूति से व्यक्ति को अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होता है और वह समझता है कि वह शाश्वत आत्मा है, जो जन्म और मृत्यु से परे है। 
5. समता भाव का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने यह भी सिखाया कि व्यक्ति को समता भाव रखना चाहिए। उसे सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय सभी में समान रहना चाहिए। इस समता भाव से व्यक्ति को सच्ची शांति प्राप्त होती है।  

Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक १-१०

Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक १-१०

 अर्जुन उवाच :-
 सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
 यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥१॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - हे श्रीकृष्ण! पहले आप मुझसे कर्म को त्यागने की बात करते हैं और फिर मुझे भक्तिपूर्वक कर्म करने के लिए आदेश देते हैं। कृपया करके अब आप निश्चित रूप मुझे यह बताएं कि इन दोनों में से मेरे लिए क्या लाभदायक तथा उचित है? (प्रथम श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 श्रीभगवानुवाच :-
सन्न्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥२॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - मुक्ति की प्राप्ति के लिए तो कर्म (सकाम कर्मों का त्याग) का परित्याग तथा भक्तिमय-कर्म (कर्मयोग व निष्ठायुक्त कर्म अर्थात् फलरहितकर्म) दोनों ही उत्तम हैं। किन्तु इन दोनों में से कर्म के परित्याग से भक्तियुक्त (भक्तिमय-कर्म व निष्काम कर्म) श्रेष्ठ है। (द्वितीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 ज्ञेय: स नित्यसन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति ।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥३॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो पुरुष न तो कर्मफलों से घृणा (नफरत, द्वेष) करता है और न ही कर्मफल की इच्छा (लाभ व सुख-समृद्धि की अभिलाषा) रखता है, वह नित्य संन्यासी के रूप से जाना जाता है। हे महाबाहो अर्जुन! ऐसा मनुष्य समस्त द्वन्द्वों से रहित होकर अर्थात् सुख-दुःख व लाभ-हानि की चिंता से मुक्त होकर भवबंधन (सांसारिक मोह-माया) को पार कर पूर्णतया मुक्त हो जाता है। (तृतीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 सांख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: ।
 एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥४॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- कोई अज्ञानी मनुष्य ही भक्तिपूर्ण कर्म (कर्मयोग) को भौतिक जगत के विश्लेषणात्मक अध्ययन (सांख्य) से भिन्न कहते हैं। लेकिन वास्तविकता में जो ज्ञानी होते हैं, वे कहते हैं कि जो मनुष्य इनमें से किसी एक भी मार्ग का अनुसरण करता है, वह दोनों के फल प्राप्त करता है। (चतुर्थ श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यत्सांख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते ।
 एकं सांख्यं च य: पश्यति स पश्यति ॥५॥  
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो भी व्यक्ति यह जानता है कि विश्लेषणात्मक अध्ययन अर्थात् सांख्य योग द्वारा प्राप्य (प्राप्त किया जाने वाला अर्थात अपना गंतव्य स्थान व मोक्ष का द्वार) स्थान भक्ति द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है, और इस तरह जो सांख्ययोग तथा भक्तियोग को एक समान देखता है, वही वस्तुओं को यथारूप (वास्तविकता) में देखता है। (पंचम श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म न चिरेणाधिगच्छति ॥६॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- हे महाबाहो अर्जुन! भक्ति में लगे बिना समस्त कर्मों के परित्याग से कोई सुखी नहीं बन सकता। परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। (षष्ठम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: ।
 सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥७॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो व्यक्ति अपने कर्म को भक्तिभाव से करता है, जिसकी आत्मा विशुद्ध होती है और जो अपने मन तथा इन्द्रियों को वश में रखता है, वह मुझ परब्रह्म सहित सभी को प्रिय होता है और सभी लोग उसे प्रिय होते हैं। ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कर्मबन्धनों जैसे सुख-दुःख, लाभ-हानि, घृणा-प्रेम जैसे मोह-माया के बंधनों में नहीं बंधता। (सप्तम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
 पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्नन्नश्नन्गच्छन्स्वपन्श्वसन् ॥८॥
 प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।
 इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥९॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:-  दिव्य भावनामृत युक्त (परमात्मा व सत्य को जानने तथा उसमें आस्था व विश्वास में लीन व्यक्ति) पुरुष देखते, सुनते, स्पर्श करते, सूंघते, चलते-फिरते, सोते तथा श्वास (सांस) लेते हुए भी अपने अन्तर (अपने अंतर्मन व हृदय) में सदैव यही जानता रहता है कि वास्तव में कुछ नहीं करता। बोलते, त्यागते, ग्रहण करते या आंखें खोलते-बंद करते हुए भी वह यह जानता रहता है कि भौतिक इंद्रियां अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त हैं और वह (उसकी आत्मा) इन सबसे पृथक् (भिन्न व अलग) है । (अष्टम-नवम श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य: ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥१०॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो व्यक्ति अपने कर्मफलों को परमेश्वर यानी परमात्मा को समर्पित करके आसक्तिरहित (जीवन के मोह-माया जैसे सुख-दु:ख, लाभ-हानि द्वेष-प्रेम आदि से मुक्त) होकर अपना कर्म करता है। वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिस कमल का पत्र (पत्ता) जल से अस्पृश्य (जल में नहीं भींगता) रहता है। (10वां श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 11-20 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक ११-२०

      Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 11-20 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक ११-२०

 कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥११॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- योगीजन (परमात्मा व सत्य को जानने वाले लोग) आसक्तिरहित (किसी भी प्रकार की मोह-माया से मोहित हुए बिना) होकर अपने शरीर, मन, बुद्धि तथा इन्द्रियों के द्वारा भी केवल शुद्धि के लिए कर्म करते हैं। (11वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।
 अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥१२॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- निश्चल भक्त व परमात्मा में विश्वास रखने वाला व्यक्ति अपने इसी जीवन में शुद्ध शान्ति को प्राप्त करता है क्योंकि वह अपने समस्त कर्मफल मुझे अर्पित कर देता है अर्थात् अपने सारे कर्म निष्काम भाव से तथा खुद को अकर्ता और मुझ परमेश्वर को कर्ता मानते हुए करता है। लेकिन जो व्यक्ति भक्तियुक्त नहीं है अर्थात् भगवान में आस्था व विश्वास नहीं रखता और जो अपने कर्मफलों की कामना रखता है, वह उसी कर्मफलों के बन्धनों में बंद जाता है। (12वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 सर्वकर्माणि मनसा सन्न्यस्यास्ते सुखं वशी ।
 नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥१३॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जब देहधारी जीवात्मा (शरीरधारी आत्मा व मनुष्य) अपनी प्रकृति को वश में कर लेता है और समस्त कर्मों का परित्याग कर देता है, तब वह नौ द्वार वाले नगर यानी भौतिक शरीर (शरीर में 9 द्वार होते हैं जैसे दो आंखें, दो नाक के द्वार यानी छेद, दो कान के द्वार, एक मुंह एवं एक अग्रभाग का द्वार तथा एक पिछला द्वार) में कुछ किये बिना भी सुखपूर्वक रहता है। (13वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु: ।
 न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥१४॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- शरीर रूपी नगर का स्वामी देहधारी जीवात्मा (अर्थात् मनुष्य की आत्मा) न तो कर्म का सृजन करता है, न लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है, न ही कर्मफल की रचना करता है। यह सब तो प्रकृति के गुणों द्वारा ही किया जाता है। (14वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥१५॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- परमपिता परमात्मा परब्रह्म परमेश्वर न तो किसी के पापों व पापकर्मों को ग्रहण करता है और न ही पुण्यों व अच्छे कर्मों को ग्रहण करता है। किन्तु सभी देहधारी जीव उस अज्ञानता के कारण मोहग्रसत रहते हैं, जो उनके वास्तविक ज्ञान को आच्छादित किये रहता है यानी मनुष्य अज्ञानता के कारण अपने ही वास्तविक ज्ञान को ढक देता है।  (15वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: ।
 तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥१६॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- किन्तु जब कोई मनुष्य उस ज्ञान से प्रबुद्ध (परब्रह्म अर्थात् सत्य को जान लेता है) होता है, जिससे अविद्या (अज्ञानता) का विनाश होता है, तो उसके ज्ञान से सब कुछ उसी प्रकार प्रकट हो जाता है, जैसे दिन में सूर्य से सारी वस्तुएं प्रकाशित हो जाती हैं। (16वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: ।
 गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ॥१७॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जब मनुष्य की बुद्धि, मन, श्रद्धा, तथा शरण सब कुछ भगवान में ही स्थिर हो जाते हैं, तभी वह पूर्णज्ञान द्वारा समस्त कल्मष (पापकर्मों) से शुद्ध होता है और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है। (17वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ॥१८॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- विनम्र साधुपुरुष (ज्ञानी पुरुष व योगी पुरुष) अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता तथा चाण्डाल को समान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं। (18वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिता: ॥१९॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जिनके मन एकत्व तथा स्थित हैं उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बंधनों को पहले ही जीत लिया है। वे ब्रह्म के समान निर्दोष हैं और वे सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं। (19वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
 स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थित: ॥२०॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो व्यक्ति न तो प्रिय वस्तु को पाने पर हर्षित (खुश) होता है और न ही अप्रिय वस्तु को पाने पर विचलित होता है, जो स्थिरबुद्धि है, जो मोहरहित (संशयरहित) है और जो परब्रह्म को जान चुका है वह व्यक्ति पहले से ही ब्रह्म में स्थित रहता है। (20वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
गीता का मूल उपदेश क्या है? Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 21-29 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक २१-२९

Bhagwat Geeta Karm Sanyaas Yog Shlok 21-29 | भगवत गीता अध्याय 5 श्लोक २१-२९

 बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् ।
 स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥२१॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- ऐसी मोह-माया से मुक्त पुरुष संसार की भौतिक इन्द्रियसुख (बाहरी सुख) की ओर आकर्षित नहीं होता, अपितु वह सदैव समाधि में रहकर अपने अन्तर्मन में ही आनंद का अनुभव करता है। इस प्रकार आत्मज्ञानी पुरुष परब्रह्म में ही एकाग्रचित्त (ब्रह्म में लीन) होने के कारण असीम सुखों को भोगता है। (21वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते ।
आद्यान्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ॥२२॥ 
भगवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों में भाग नहीं लेता, जो कि इस संसार में भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग अर्थात् इन्द्रियसुख की अभिलाषा के संदर्भ से उत्पन्न होते हैं। हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है, अतः ज्ञानी पुरुष उनमें आनंद नहीं लेता। (22वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
 कामाक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ॥२३॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- यदि इस शरीर को त्यागने (मृत्यु को प्राप्त हो जाने से पहले ही) के पूर्व कोई मनुष्य इंद्रियों के वेगों सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोक पाने में समर्थ होता है, तो वह इस भौतिक जगत में सुखी से रह सकता है। (23वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥२४॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो अन्तःकरण में सुख का अनुभव करता है, जो कर्मठ है और अन्तःकरण में ही रमण करता है तथा जिसका लक्ष्य अन्तरमुखी होता है वही वास्तविकता में पूर्ण रूप से योगी (योगी पुरुष व सिद्ध पुरुष) है । वह परब्रह्म में मुक्ति पाता है और अन्ततोगत्वा (आखिर में) ब्रह्म (मोक्ष को प्राप्त कर परमात्मा में ही विलीन हो जाता है) को प्राप्त होता है। (24वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: ।
छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥२५॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो लोग संशय से उत्पन्न होने वाले द्वैत से परे हैं, जिनके मन आत्म-साक्षात्कार में रत हैं, जो समस्त जीवों के लिए कल्याणकारी कार्यों में सदैव व्यस्त रहते हैं, वे ब्रह्मनिर्वाण अर्थात मोक्ष को प्राप्त होते हैं। वे इस समस्त संसार के सभी मोह-माया के कर्म बन्धनों से मुक्ति को प्राप्त होते हैं। (25वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 कामाक्रोधविमुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।
 अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥२६॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- जो काम (काम वासना), क्रोध तथा समस्त भौतिक इन्द्रियसुख की इच्छाओं से रहित (मुक्त) हैं, जो सिद्ध पुरुष, आत्मसंयमी (अपने मन को भी नियंत्रित व संयमित रखने वाले) हैं और संसिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करते हैं, उनकी मुक्ति (मोक्ष की प्राप्ति) निकट भविष्य में सुनिश्चित है। (26वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: ।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥२७॥
 यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: ।
विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ॥२८॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- समस्त इन्द्रियविषयों यानी अपने इन्द्रियसुख के विषयों जैसे अत्यधिक लाभ की प्राप्ति, वासना की पूर्ति, सुखों की प्राप्ति जैसी इच्छाओं की अभिलाषा इत्यादि को बाहर करके, अपने दृष्टि को भौंहों के मध्य त्रिकुटी में केन्द्रित करके प्राण तथा अपान वायु को नथुनों के भीतर रोककर और इस तरह मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके, जो मोक्ष को ही अपना लक्ष्य बनाता है, वह योगी इच्छा, भय तथा क्रोध से मुक्त हो जाता है। साथ ही जो निरंतर इस अवस्था में रहता है, वह निश्चित ही मुक्त है। (27वें-28वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥२९॥ 
भागवत गीता अध्याय 5 कर्म संन्यास योग हिंदी संस्करण:- मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवी-देवताओं का परमेश्वर एवं समस्त जीवों का उपहारी एवं हितैषी मानने वाला और मुझ परमपिता परब्रह्म परमेश्वर में पूरी तरह से भक्तियुक्त व भावनामृत पुरुष भौतिक जगत के दुःखों, कष्टों एवं पीड़ा से शान्ति व परम लाभ-सुख को प्राप्त होता है। (29वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  

    इस प्रकार भगवत गीता का अध्याय 5, कर्म संन्यास योग समाप्त होता है जो में सिखाता है जीवन में कर्म करते हुए भी हम आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मन और बुद्धि को शांत रखना चाहिए, और अपने कार्यों को भगवान को अर्पित करना चाहिए। यही सच्चा कर्मसंन्यासयोग है। कर्म संन्यास योग का मुख्य सारांश यह है कि जीवन में कर्तव्यों का पालन करते हुए भी हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि कर्म और संन्यास दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके सही अर्थ को समझना और उन पर चलना ही सच्ची योग की राह है।

इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए। वे बताते हैं कि सच्चा योगी वही है जो कर्म के फल की इच्छा नहीं करता, बल्कि उसे भगवान को अर्पित कर देता है।

Important Teachings of Karma Sanyas Yoga | कर्म संन्यास योग की 5 महत्वपूर्ण  शिक्षाएँ

 Important Teachings of Karma Sanyas Yoga | कर्म संन्यास योग की 5 महत्वपूर्ण  शिक्षाएँ

  श्रीमद्भगवद्गीता का पांचवां अध्याय, कर्म संन्यास योग, हमें यह सिखाता है कि कर्म करना हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है और इसके बिना मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। निष्काम कर्म, आत्मसंयम, समानता, और आत्मज्ञान के माध्यम से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। श्रीकृष्ण के इन उपदेशों को अपने जीवन में अपनाकर हम सच्ची शांति और मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। आइए अब इस अध्याय के पांच शिक्षाओं पर अमल करने का प्रयास करें।
1. कर्तव्य पालन की अनिवार्यता की शिक्षा: श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को बताया कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। चाहे वह गृहस्थ हो या संन्यासी, कर्म करना अनिवार्य है। बिना कर्म किए मोक्ष की प्राप्ति असंभव है।
2. निष्काम कर्म की शिक्षा: कर्म करते समय फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। निष्काम कर्म से व्यक्ति अपने कर्मों के बंधनों से मुक्त हो जाता है और सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त करता है।
3. आत्मसंयमता की शिक्षा: आत्मसंयम और इंद्रियों पर नियंत्रण व्यक्ति को आत्मा की शुद्धि की ओर ले जाता है। संयमित जीवन से व्यक्ति को आत्मज्ञान और आत्मानुभूति होती है। 
4. समानता और समता की शिक्षा: भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में शिक्षा दी है कि सभी जीवों के प्रति समानता और समता का भाव रखना चाहिए। इससे व्यक्ति को दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव विकसित होता है और समाज में शांति और सद्भावना बनी रहती है। 
5. ध्यान और आत्मज्ञान की शिक्षा: इस अध्याय में विशेष रूप से ध्यान और आत्मज्ञान की महत्ता बताई गई है। ध्यान से व्यक्ति अपने मन को स्थिर करता है और आत्मज्ञान प्राप्त करता है, जिससे उसे अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होता है।  

 इस प्रकार, श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 5 में वर्णित शिक्षाएँ हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। हमें इन शिक्षाओं को समझकर और अपने जीवन में लागू करके आत्म - साक्षात्कार और मोक्ष की प्राप्ति करनी चाहिए।

Benefits of Karma Sanyasa Yoga |कर्म संन्यास योग के लाभ

Benefits of Karma Sanyasa Yoga |कर्म संन्यास योग के लाभ

 कर्म संन्यास योग का मुख्य सिद्धांत यह है कि व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए, लेकिन उनमें आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। यह योग व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और आत्म-स्वीकृति की ओर ले जाता है। इस योग के अभ्यास से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  •  आत्म-शांति: कर्मों को भगवान को समर्पित करने से मन में शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  •  स्वतंत्रता: कर्मों में आसक्ति न रखने से व्यक्ति बंधनों से मुक्त हो जाता है।
  •  परमात्मा की प्राप्ति: इस योग के माध्यम से व्यक्ति परमात्मा के निकट पहुंचता है और उन्हें प्राप्त करता है।
Conclusion of Geeta Chapter 5 | गीता अध्याय 5 का सारांश

Conclusion of Geeta Chapter 5 | गीता अध्याय 5 का सारांश 

 श्रीमद् भागवत गीता का पाँचवाँ अध्याय 'कर्म संन्यास योग' हमें यह सिखाता है कि कर्म करते हुए भी आंतरिक शांति और मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यह अध्याय व्यक्ति को सच्चे संन्यास का महत्व और उसकी सही परिभाषा समझाता है। भगवत गीता के इस अध्याय का अध्ययन और पालन करके हम सभी अपने जीवन में शांति, संतोष और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। कर्म संन्यास योग हमें यह सिखाता है कि कैसे हम अपने कर्मों को भगवान को समर्पित कर उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ कर सकते हैं। इस प्रकार, श्रीमद् भागवत गीता का पाँचवाँ अध्याय यानी Bhagwat Geeta Adhyay 5 in Hindi का यह लेख हमें जीवन के सच्चे रहस्यों और अर्थों की ओर ले जाता है और हमें आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर करता है।

What is Karma Sanyas Yog? | कर्म संन्यास योग क्या है? गीता का प्रसिद्ध मंत्र क्या है?

FAQs Of Bhagwat Geeta Chapter 5 | श्रीमद् भागवत गीता प्रश्नोत्तरी - कर्म संन्यास योग 

1. भगवद गीता का अध्याय 5 क्या समझाता है? 
ॐ: भगवद गीता का अध्याय 5, जिसे कर्म संन्यास योग कहा जाता है, यह समझाता है कि कर्म और संन्यास का सही अर्थ क्या है। यह अध्याय यह स्पष्ट करता है कि कर्म (कर्मयोग) और संन्यास (ज्ञानयोग) दोनों ही मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनमें कोई अंतर्निहित विरोधाभास नहीं है। यह हमें सिखाता है कि कैसे कर्म करते हुए भी व्यक्ति मानसिक रूप से संन्यास की स्थिति में रह सकता है।
2. गीता के 5 अध्याय में कितने श्लोक हैं ? 
ॐ: भगवद गीता के 5 अध्याय में कुल 29 श्लोक हैं। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म और संन्यास के विभिन्न पहलुओं को समझाया है और दोनों के महत्व को बताया है।
3. कर्म वैराग्य योग क्या है? 
ॐ: कर्म वैराग्य योग का अर्थ है कर्म करते हुए भी वैराग्य की स्थिति में रहना। इसका मतलब है कि व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी उनके फल की इच्छा नहीं रखता और अपने मन को भगवान में स्थिर रखता है। यह गीता के 5 अध्याय का मुख्य संदेश है।
4. गीता का मूल उपदेश क्या है? 
ॐ: भगवद गीता का मूल उपदेश है "निष्काम कर्म"। इसका मतलब है कि हमें अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए, लेकिन उनके फल की चिंता किए बिना। यह उपदेश हमें हमारे कर्मों को ईश्वर को समर्पित करने और उनके प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।
5. गीता का शक्तिशाली श्लोक कौन सा है? 
ॐ: गीता के 5 अध्याय का एक महत्वपूर्ण श्लोक है:
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जिसने मन से सभी कर्मों को त्याग दिया है और स्वयं को नियंत्रित कर लिया है, वह व्यक्ति नौ द्वारों वाले शरीर में सुखपूर्वक रहता है, बिना कुछ किए और कराए।
6. गीता में महिलाओं के बारे में क्या लिखा है? 
ॐ: भगवद गीता में महिलाओं का विशेष रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन गीता का संदेश सभी के लिए समान है। गीता के अनुसार, आत्मा अजर-अमर और शाश्वत है, और यह किसी भी लिंग, जाति या धर्म से परे है। सभी प्राणी समान हैं और मोक्ष के पात्र हैं।
7. गीता के अनुसार ईश्वर क्या है?  
ॐ: भगवद गीता के अनुसार, ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हैं। वे सभी प्राणियों के ह्रदय में निवास करते हैं और संपूर्ण सृष्टि के संचालक हैं। वे अनंत और अपरिवर्तनीय हैं और समस्त जगत का मूल कारण हैं।
8. गीता में कौन से कर्म श्रेष्ठ है?
ॐ: गीता में श्रेष्ठ कर्म उन कर्मों को कहा गया है जो निष्काम (फल की इच्छा रहित) कर्म होते हैं। ऐसे कर्म, जो भगवान को समर्पित होकर किए जाते हैं, श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह कर्म योग का महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जहां कर्म करते समय व्यक्ति स्वयं को उसके फल से अलग रखता है।
9.  गीता का प्रसिद्ध मंत्र क्या है? 
ॐ: गीता में कई अद्भुत एवं सबसे प्रसिद्ध मंत्र या श्लोक हैं उन्हीं में से एक सबसे प्रसिद्ध मंत्र है: 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
 मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
इस मंत्र का अर्थ है कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उनके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्मों के फल के कारण मत बनो और न ही कर्म न करने में रुचि रखो।
10. गीता के अनुसार समय क्या है? 
ॐ: भगवद गीता के अनुसार, समय अचल और निरंतर प्रवाहित होने वाला है। यह न किसी का इंतजार करता है और न ही किसी के लिए रुकता है। समय का प्रबंधन और उसका सही उपयोग करना व्यक्ति की जिम्मेदारी है। गीता में समय को महत्वपूर्ण संसाधन माना गया है और इसे भगवान का ही एक रूप माना गया है। 
11. श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवें अध्याय का मुख्य विषय क्या है? 
ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवें अध्याय का मुख्य विषय है कर्मयोग और सन्यास के बीच का अंतर और समानता। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि कर्मयोग और सन्यास दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं, लेकिन कर्मयोग को अधिक सरल और प्रभावी बताया गया है।
12. कर्म योग का मतलब क्या है? 
ॐ: गीता के अनुसार कर्मयोग का अर्थ है बिना किसी फल की आशा के अपने कर्तव्यों का पालन करना। इसे 'निष्काम कर्म' भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि अपने कर्मों को भगवान को समर्पित करके करना ही सही कर्मयोग है।
13. सन्यास क्या है? 
ॐ: सन्यास का अर्थ है सभी प्रकार के कर्मों का त्याग कर देना और साधना में लीन हो जाना। यह आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक मार्ग है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वास्तविक सन्यास वह है जो मन, वचन और कर्म से इच्छाओं का त्याग करता है।
14. क्या कर्मयोग और सन्यास में कोई अंतर है? 
ॐ: हां, कर्मयोग और सन्यास में अंतर है। कर्मयोग में व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, जबकि सन्यास में व्यक्ति सभी प्रकार के कर्मों का त्याग कर देता है। हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, कर्मयोग अधिक सरल और व्यावहारिक मार्ग है, क्योंकि इसे गृहस्थ जीवन में भी अपनाया जा सकता है।
15. भगवान श्रीकृष्ण ने किसे श्रेष्ठ बताया है - कर्मयोग या संन्यासयोग? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग को संन्यासयोग से श्रेष्ठ बताया है। उन्होंने कहा कि कर्मयोग के द्वारा व्यक्ति संसार में रहते हुए भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है। बिना फल की इच्छा के कर्म करना ही सही कर्मयोग है।
16. क्या कर्मयोग से आत्म-साक्षात्कार हो सकता है? 
ॐ: हां बिल्कुल, कर्मयोग से आत्म-साक्षात्कार हो सकता है। जब व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के अपने कर्तव्यों का पालन करता है और सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर देता है, तब वह आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है।
17. निष्काम कर्म क्या है? 
ॐ: निष्काम कर्म का अर्थ है बिना किसी फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करना। यह कर्मयोग का ही एक रूप है, जिसमें व्यक्ति सभी कर्म भगवान को समर्पित करके करता है।
18. श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवें अध्याय का मुख्य श्लोक कौन सा है? 
ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवें अध्याय का मुख्य श्लोक है:
"योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥" (5.7)
इसका अर्थ है: "जो योगयुक्त है, शुद्ध आत्मा है, विजित आत्मा है, जिसने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, वह सभी जीवों के आत्मा में आत्मा को देखता है और कर्म करते हुए भी उसमें लिप्त नहीं होता।"
19. पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने किसे 'सच्चा योगी' कहा है? 
ॐ: पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे 'सच्चा योगी' कहा है जो निष्काम कर्म करता है, सभी कर्मों को भगवान को समर्पित करता है, और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है।
20. पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कौन से गुणों को अपनाने की सलाह दी है? 
ॐ: पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निम्नलिखित गुणों को अपनाने की सलाह दी है:
  1. - निष्काम कर्म
  2. - ध्यान योग
  3. - आत्म-साक्षात्कार
  4. - इन्द्रियों पर नियंत्रण
  5. - अहंकार का त्याग।
21. क्या पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने किसी विशेष साधना का उल्लेख किया है? 
ॐ:  पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म, ध्यान योग और आत्म-साक्षात्कार की साधना का उल्लेख किया है। उन्होंने बताया कि इन साधनाओं के द्वारा व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
22. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को क्या सलाह दी? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को सलाह दी कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करें और निष्काम भाव से कर्म करें। उन्होंने अर्जुन को बताया कि कर्मयोग के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है और यह मार्ग संन्यास से अधिक सरल और प्रभावी है।
23. कर्मयोग के क्या लाभ हैं? 
ॐ:  गीता के अनुसार कर्मयोग के लाभ निम्नलिखित हैं:
  1. - मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  2. - व्यक्ति के अंदर से अहंकार और स्वार्थभाव समाप्त होता है।
  3. - समाज और परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन होता है।
  4. - मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
24. पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कौन सा मार्ग अपनाने को कहा? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग अपनाने को कहा। उन्होंने बताया कि कर्मयोग के द्वारा व्यक्ति संसार में रहते हुए भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है और यह मार्ग गृहस्थ जीवन में भी अपनाया जा सकता है।
25. क्या पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने ध्यान योग का भी उल्लेख किया है? 
ॐ:   हां, पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने ध्यान योग का भी उल्लेख किया है। उन्होंने बताया कि ध्यान योग के द्वारा भी व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है।
26. पांचवें अध्याय के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग कौन सा है? 
ॐ: पांचवें अध्याय के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग निष्काम कर्मयोग है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि बिना फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करना और सभी कर्म भगवान को समर्पित करना ही मोक्ष प्राप्ति का सबसे सही और सरल मार्ग है।
27. पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने किसे 'सच्चा संन्यासी' कहा है? 
ॐ: पांचवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने उसे 'सच्चा संन्यासी' कहा है जो मन, वचन और कर्म से इच्छाओं का त्याग करता है और निष्काम भाव से कर्म करता है।
28. कैसे जानें कि हम सही कर्मयोग का पालन कर रहे हैं? 
ॐ: सही कर्मयोग का पालन करने के लिए हमें अपने सभी कर्म भगवान को समर्पित करने चाहिए और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यदि हमें अपने कर्मों के प्रति शांति और संतोष महसूस होता है, तो हमें समझ लेना चाहिए कि हम सही मार्ग पर हैं।
29. क्या मोक्ष प्राप्ति के लिए संन्यास लेना आवश्यक है? 
ॐ: बिल्कुल नहीं, मोक्ष के लिए संन्यास लेना आवश्यक नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि कर्मयोग के द्वारा भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। संन्यास और कर्मयोग दोनों ही मार्ग हैं, लेकिन कर्मयोग को अधिक व्यावहारिक और सरल बताया गया है।
30. क्या गृहस्थ जीवन में कर्मयोग संभव है? 
ॐ: हां, गृहस्थ जीवन में भी कर्मयोग संभव है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को यही बताया है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, बिना फल की आशा के, कर्मयोग अपनाया जा सकता है, जो बिल्कुल संभव है।

🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः🚩🚩🚩

Disclaimer: जरूरी सूचना यह है कि "श्रीमद् भगवद् गीता" एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जो भारतीय साहित्य और दार्शनिक विचारों का अमूल्य तथा अतुलनीय हिस्सा है। यह ग्रंथ धार्मिक और आध्यात्मिक सन्देशों का संग्रह है और इसे समझने और उस पर अमल करने के लिए गहरी अध्ययन और आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता होती है। हमारे इस ब्लॉग "Om- Shrimad-Bhagwat-Geeta (www.shrimadbhagwatgeeta.in)" पर प्रस्तुत सभी जानकारी और सामग्री केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की गई है। यहां दी गई जानकारी को सटीक और अद्यतित रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन हम किसी भी प्रकार की पूर्णता, सटीकता, विश्वसनीयता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देते हैं। किसी भी सूचना या व्याख्या की पुष्टि के लिए, यह वेबसाईट जिम्मेदारी नहीं है। इसके सही पुष्टि के लिए आपको विशेषज्ञ धार्मिक गुरु या सम्प्रदायिक आचार्यों से परामर्श लेना चाहिए। यहां प्रस्तुत की गई सभी सामग्री केवल सनातन जानकारी और सनातन संस्कृति को प्रेरित करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, इसका कोई अन्य उपयोग या उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए उपयोगकर्ता किसी भी जानकारी पर अपनी टिप्पणी करने से पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें।

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