Shrimad Bhagwat Geeta: एक आध्यात्मिक यात्रा की अद्भुत शुरुआत | Shrimad Bhagwat Geeta in Hindi
जय श्रीकृष्ण! आज से हजारों साल पहले धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन जीने के लिए के बहुत ही अनमोल उपदेश दिए थे। जिसके बाद ही अर्जुन का विषाद दूर हुआ था और आगे चलकर युद्ध के अंत में विजय को प्राप्त हुआ। हम भी अपने जीवन में संघर्ष पर विजय यात्रा को लेकर चिंतित रहते हैं। उन सभी परेशानियों, चिंताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए तैयार हो जाएं और आज से ही गीता पाठ का अध्ययन आरंभ कर दें। मित्रों, आज से हम गीता के सभी 18 अध्याय और 700 श्लोकों का सार को जानेंगे और अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर अपने जीवन को सार्थक बनाए। मित्रों, श्रीमद्भगवद्गीता इस संसार की सबसे पवित्र एवं सबसे अनमोल सनातन धर्म ग्रंथों में से एक है। श्रीमद्भागवत गीता को सामान्य रूप में गीता के नाम से भी जाना जाता है, जो भारतीय धर्म और दर्शन का एक अनमोल ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है और संपूर्ण मानवता के लिए जीवन का मार्गदर्शन प्रदान करता है। गीता का सार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में निहित है, जिसमें जीवन के गूढ़ रहस्यों, कर्तव्य, धर्म और आत्मा के बारे में महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी गई हैं। इस लेख में केवल श्रीमद्भागवत गीता परिचय दिया गया है, जिसमें श्रीमद्भागवत गीता से सम्बंधित सभी प्रश्नों का उत्तर दिया गया है! ताकि अगर आप भी गीता का अध्ययन शुरु करें तो आपके मन में श्रीमद्भागवत गीता को लेकर किसी प्रकार का संशय उत्पन्न न हो। आइए फिर "Shrimad Bhagwat Geeta in Hindi" के इस लेख के माध्यम से समस्त श्रीमद्भागवत गीता का परिचय देखें।
Shrimad Bhagwat Geeta in Hindi | श्रीमद्भागवत गीता का सार हिंदी में जानिये आसान शब्दों में!
What is Bhagwat Geeta? | भगवत गीता क्या है?
Historical and Religious Importance of Gita | गीता का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
गीता को धर्म, कर्म, योग, भक्ति और ज्ञान के अद्भुत संगम के रूप में देखा जाता है। इसमें जीवन की जटिलताओं और समस्याओं का समाधान देने वाले अनेक सिद्धांत और उपदेश निहित हैं। गीता का पाठ हर व्यक्ति को जीवन में सही दिशा और उद्देश्य प्राप्त करने में मदद करता है।
आधुनिक जीवन की चुनौतियों और तनावों के बीच, गीता की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हजारों वर्ष पहले थीं। यह ग्रंथ हमें मानसिक शांति, आत्म-विश्वास, और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। गीता का संदेश है कि जीवन के हर क्षण को पूर्णता और समर्पण के साथ जीना चाहिए, और किसी भी स्थिति में अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए। श्रीमद्भागवत गीता न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय स्थान रखती है। आइए, गीता के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के उन पांच मुख्य बिंदुओं को समझने का प्रयास करेंगे:
1. धर्म और कर्तव्य का सिद्धांत एवं महत्व: गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्यों की याद दिलाते हुए धर्म के महत्व को बताया। अर्जुन के मानसिक द्वंद्व के समय, श्रीकृष्ण ने उन्हें सिखाया कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह सिद्धांत आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक है और यह गीता का प्रमुख धार्मिक महत्व है। |
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2. भक्ति का महत्व: भगवत गीता में भक्ति योग का विशेष महत्व है, जिसमे भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम और समर्पण के माध्यम से ईश्वर को पाने की विधि बताई है। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति और निस्वार्थ प्रेम के द्वारा ही व्यक्ति ईश्वर को पा सकता है। यह संदेश विश्वभर में भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत है। |
3. योग और आत्मा की शांति: गीता में कई प्रकार के योग की चर्चा की गई है लेकिन फिर भी भगवान श्रीकृष्ण ने चार प्रमुख योगों पर अधिक बल दिया है - कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और राज योग । इन योगों के माध्यम से उन्होंने आत्मा की शांति और ईश्वर के साथ एकात्मता प्राप्त करने के मार्ग बताए हैं। योग के ये मार्ग आज भी दुनिया भर में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। |
4. अध्यात्म और मोक्ष की प्राप्ति: गीता में अध्यात्म और मोक्ष का विस्तृत वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण ने बताया कि आत्मा अजर-अमर है और मोक्ष ही उसका अंतिम लक्ष्य है। यह शिक्षा व्यक्ति को जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के मार्ग दिखाती है, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। |
5 सार्वभौमिक संदेश: गीता का संदेश केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सार्वभौमिक सत्य और मानवता के लिए है। इसमें दिए गए सिद्धांत और उपदेश किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय के व्यक्ति के लिए प्रासंगिक हैं। यह गीता को एक अद्वितीय धार्मिक ग्रंथ बनाता है, जो विश्वभर में सम्मानित है। |
Main Teachings of Bhagwat Geeta | गीता की 5 प्रमुख शिक्षाएं
1. कर्म करने की शिक्षा व कर्म योग: भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग के महत्त्व को समझाते है और निःस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा है, "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।" इसका अर्थ है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए, बिना उसके परिणाम की चिंता किए। इस शिक्षा से यह सिखने को मिलता है कि निःस्वार्थ सेवा और कर्म ही सच्चा धर्म है। |
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2. आत्मसंयम का भाव व इंद्रियों पर नियंत्रण: भगवद गीता में आत्मसंयम पर भी विशेष जोर दिया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि इंद्रियों पर नियंत्रण पाना आवश्यक है, ताकि हम जीवन के भौतिक सुखों से प्रभावित न हों। यह शिक्षा हमें बताती है कि आत्मसंयम के माध्यम से ही हम सच्ची आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में शांति और संतोष पा सकते हैं। |
3. ज्ञान योग व सही ज्ञान की प्राप्ति: भगवद गीता में ज्ञान योग का भी वर्णन किया गया है। सही ज्ञान के माध्यम से हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं। ज्ञान हमें अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालता है और हमें सच्चाई की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। यह शिक्षा हमें बताती है कि जीवन में सही और सच्चे ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है। |
4. भक्ति योग व ईश्वर की भक्ति का मार्ग: भगवद गीता में भक्ति योग का भी विशेष महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से मेरी भक्ति करता है, वह मुझ तक पहुंचता है। भक्ति योग हमें ईश्वर की भक्ति और समर्पण का मार्ग दिखाता है। इस शिक्षा से हमें यह सीखने को मिलता है कि ईश्वर में अटूट विश्वास और समर्पण ही हमें जीवन की कठिनाइयों से पार पाने में सहायक होते हैं। |
5 संन्यास, त्याग और वैराग्य का महत्व: भगवद गीता में संन्यास और वैराग्य की महत्ता भी बताई गई है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि त्याग और वैराग्य ही सच्चे सुख और शांति का मार्ग है। इसका अर्थ है कि हमें अपने जीवन में भौतिक वस्तुओं का मोह छोड़कर आध्यात्मिकता की ओर बढ़ना चाहिए। यह शिक्षा हमें यह बताती है कि सच्चा सुख और शांति बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और आत्मिक संतोष में है। |
Bhagwat Geeta All Chapters | श्रीमद्भगवत गीता 18 अध्याय
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अर्जुन विषाद योग अध्याय 1 :- भगवत गीता के प्रथम अध्याय का नाम अर्जुन विषाद योग है। इसी अध्याय के साथ दुनिया के सबसे पवित्र एवं महान महाकाव्य श्रीमद्भगवद्गीता की शुरुआत हुई थी। गीता की रचना इस लिए हुई महाभारत युद्ध के मैदान में अर्जुन की व्याकुलता और विषाक्त मनो:स्थिति को दूर कर दिया जाए, क्योंकि अर्जुन अपने प्रियजनों, गुरुओं और मित्रों को युद्ध में देखकर मोह और शोक, तथा मानसिक रूप से तनाव में पड़ जाता है और युद्ध करने में असमर्थ हो जाता है। यह अध्याय मानव मन की दुविधाओं और नैतिक संकट को दर्शाता है। अर्जुन के सभी संशय तथा दुःख तथा दुविधाओं को दूर करने के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से गीता उपदेश दिया तथा इस प्रकार गीता का आरंभ अर्जुन के विषाद से शुरू होता है। |
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सांख्य योग अध्याय 2:- इस अध्याय में, श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता, कर्मयोग और ज्ञानयोग का उपदेश देते हैं। वे अर्जुन को उसके क्षत्रिय धर्म और कर्म के महत्व को समझाते हैं। यहाँ कर्मयोग का सिद्धांत भी प्रस्तुत किया गया है, जो निष्काम कर्म की शिक्षा देता है। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन बिना फल की चिंता किए करना चाहिए। |
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कर्म योग अध्याय 3 :- भगवत गीता के इस तीसरे अध्याय में, श्रीकृष्ण कर्मयोग की व्याख्या करते हैं और अर्जुन को बताते हैं कि कर्म करना ही मनुष्य का परम धर्म है, और फल की चिंता किए बिना कर्म करना ही सच्चा योग है। |
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ज्ञान कर्म संन्यास योग अध्याय 4:- इस अध्याय में, श्रीकृष्ण ज्ञान और कर्म के संन्यास का महत्व समझाते हैं। वे अर्जुन को बताते हैं कि सही ज्ञान के साथ किया गया कर्म ही सर्वोत्तम है और सही ज्ञान प्राप्त कर एवं सही से निष्काम भाव से कर्म करने से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। |
Karm Sanyaas Yog (Click Here) |
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कर्म संन्यास योग अध्याय 5:- इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्मसंन्यास और कर्मयोग के बीच अंतर समझाते हैं। इस पांचवें अध्याय में, कर्म और संन्यास की तुलना की जाती है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि निष्काम कर्मयोग और संन्यास दोनों ही मुक्ति के मार्ग हैं, लेकिन निष्काम कर्मयोग श्रेष्ठ है। |
Atmasanyam Yog (Click Here) आत्मसंयम योग अध्याय 6:- इस अध्याय को ध्यानयोग भी कहा जाता है, इस अध्याय में ध्यान योग और आत्मसंयम के माध्यम से आत्मा की शांति और स्थिरता प्राप्त करने की विधि बताई गई है, जिसमें श्रीकृष्ण आत्मसंयम व ध्यान की विधि और महत्व पर बल देते हैं। वे अर्जुन को ध्यान की शक्ति और स्थिरता की आवश्यकता को समझाते हैं। |
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Gyan VigyanYog (Click Here) |
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ज्ञान विज्ञान योग अध्याय 7:- इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान और विज्ञान की महिमा का वर्णन करते हैं तथा श्रीकृष्ण अर्जुन को आध्यात्मिक और भौतिक ज्ञान का उपदेश देते हैं। वे बताते हैं कि भगवान की कृपा से ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है। वे उसे अपनी भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूप की महिमा बताते हैं। |
Aksharbrahm Yog (Click Here) |
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अक्षर ब्रह्मयोग अध्याय 8:- इस अध्याय में, मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महत्ता और अक्षर ब्रह्म की व्याख्या की गई है। यह अध्याय मृत्यु के बाद की स्थिति और आत्मा की यात्रा का वर्णन करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण जीवन, मृत्यु और आत्मा के रहस्यों को उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि मृत्यु के समय ईश्वर का स्मरण करने से मोक्ष प्राप्त होता है। |
Rajvidhya Rajguhyam Yog (Click Here) |
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राजविद्या राजगुह्यं योग अध्याय 9:- इस अध्याय में, श्रीकृष्ण अर्जुन को सबसे गोपनीय ज्ञान देते हैं तथा उसका महत्व बताते हैं। भगवान श्रीकृष्ण भक्ति योग और उसकी महत्ता का वर्णन करते हुए बताते हैं कि भगवान की अनन्य भक्ति ही सबसे बड़ा रहस्य और राजविद्या है। वे कहते हैं कि भगवान की भक्ति और सेवा से सभी पापों का नाश होता है और अंत में मोक्ष प्राप्त होता है। |
Vibhuti Yog (Click Here) |
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विभूति योग अध्याय 10:- भगवत के इस दसवें अध्याय में, भगवान कृष्ण अपनी दिव्य विभूतियों और महिमाओं का वर्णन करते हैं। वे अर्जुन को बताते हैं कि सभी महान और अद्वितीय चीजें उनकी विभूतियाँ हैं तथा वे यह भी बताते हैं कि वे (परमात्मा श्रीकृष्ण) समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं एवं समस्त जीवों तथा हर सजीव एवं निर्जीव वस्तु में विद्यमान हैं। वे कहते हैं कि भगवान की विभूतियों को जानने से भक्ति और श्रद्धा बढ़ती है। |
Vishwa Darshan Yog (Click Here) |
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विश्वदर्शन योग अध्याय 11 :- इस अध्याय में, अर्जुन भगवान कृष्ण से उनकी विश्वरूप दर्शन की प्रार्थना करते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें अपना विराट रूप दिखाते हैं, जिससे अर्जुन की सभी शंकाएं दूर हो जाती हैं। इस ग्यारहवें अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने विश्वरूप का दर्शन कराते हैं, जो भगवान की सर्वव्यापकता और उनकी असीम शक्ति को दर्शाता है। |
Bhakti Yog (Click Here) |
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भक्ति योग अध्याय 12:- भक्तियोग के इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को भक्ति मार्ग के महत्व और उसके लाभों को समझाते हैं। वे अर्जुन को बताते हैं कि सच्ची भक्ति से भगवान तक पहुँचना संभव है। वे कहते हैं कि सच्ची भक्ति से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। यह अध्याय भगवान की भक्ति और उनकी कृपा की महत्ता पर जोर देता है। श्रीकृष्ण यहाँ अपने भक्तों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे हमेशा उनकी रक्षा करेंगे। |
Kshetra Kshetragya Vibhag Yog (Click Here) |
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क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग अध्याय 13:- इस अध्याय में, इस अध्याय में, क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के संबंध को समझाया गया है। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में आत्मा और परमात्मा के ज्ञान का वर्णन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के बीच के अंतर को समझाते हुए अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा अजर-अमर है, जो कभी नहीं मरता और शरीर नश्वर है, जो अपनी समयावधि पूर्ण होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है। |
Guntray Vibhagh Yog (Click Here) |
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गुणत्रय विभाग योग अध्याय 14:- इस गुणत्रय विभाग योग में, भगवान कृष्ण सत्त्व, रजस और तमस तीनों गुणों के बारे में विस्तार पूर्वक बताते हैं। वे अर्जुन को समझाते हैं कि इन गुणों का प्रभाव मनुष्य के जीवन और कर्मों पर पड़ता है। ये गुण किस प्रकार जीवन को प्रभावित करते हैं ये भी श्रीकृष्ण बताते हैं। |
Purushottam Yog (Click Here) |
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पुरूषोत्तम योग अध्याय 15:- इस पंद्रहवें अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण स्वयं को पुरुषोत्तम (सर्वोच्च पुरुष) के रूप में प्रस्तुत करते हैं और संसार के पेड़ का वर्णन करते हैं। श्रीकृष्ण संसार रूपी वृक्ष और उसकी जड़ों का वर्णन करते हुए अर्जुन को बताते हैं कि भगवान ही इस वृक्ष के मूल पुरुषोत्तम हैं। |
Daivasur Samdvibhag Yog (Click Here) |
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दैवासुर समद्विभाग योग अध्याय 16:- इस अध्याय में, दैवी और आसुरी संपदाओं का वर्णन किया गया है और यह बताया गया है कि दैवी गुणों का पालन करके ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, जबकि आसुरी गुणों से युक्त व्यक्ति मोह के ही बंधनों में रहता है। |
Shraddha tray Vibhag Yog (Click Here) |
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श्रद्धात्रय विभाग योग अध्याय 17:- भगवत गीता के इस सत्रहवें अध्याय में, श्रद्धा के तीन प्रकारों (सत्त्व, रजस, तमस) और उनके प्रभावों का वर्णन किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण इन तीन प्रकार (सत्त्वगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी) की श्रद्धाओं के बारे में बताते हुए अर्जुन को समझाते हैं कि व्यक्ति की श्रद्धा उसके कर्म और स्वभाव पर निर्भर करती है। |
Moksh Sanyas Yog (Click Here) |
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मोक्ष संन्यास योग अध्याय 18:- इस अंतिम अध्याय में, श्रीकृष्ण कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग की समापन करते हुए अर्जुन को अपना धर्म निभाने का उपदेश देते हैं। यह अध्याय मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक शिक्षा देता है। इस आखिरी अध्याय में, भगवान कृष्ण संन्यास और मोक्ष के महत्व को समझाते हुए भागवत गीता के सभी अध्यायों का सार पुनः बताते हैं। इस अंतिम अध्याय में श्रीकृष्ण ने संन्यास और त्याग के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को स्पष्ट किया है। यह अध्याय जीवन के अंतिम लक्ष्य और मुक्ति पर केंद्रित है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि सच्चे संन्यास और भक्ति से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। |
इस प्रकार हम श्रीमद् भागवत गीता के सभी अध्यायों का संक्षेप में परिचय दें रहे हैं मित्रों श्रीमद्भगवद्गीता, जीवन के हर पहलू पर गहन और मूल्यवान उपदेश प्रदान करती है। इसके अध्ययन से व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है और जीवन के सच्चे अर्थ को समझ सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता के हर अध्याय में छिपे गूढ़ रहस्यों और उपदेशों को समझने के लिए गीता का गहन अध्ययन आवश्यक है।
How to Read Bhagwat Geeta? | भगवत गीता कैसे पढ़ें?
1. समय और स्थान का चयन: भगवद गीता को पढ़ने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें। ऐसा समय चुनें जब आपका मन शांत और एकाग्र हो, जैसे कि सुबह का समय। ध्यान और मेडिटेशन के बाद गीता का अध्ययन करने से समझ में आसानी होती है। |
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2. प्रारंभिक तैयारी: गीता का अध्ययन शुरू करने से पहले, इसके पृष्ठभूमि की जानकारी प्राप्त करें। महाभारत और उसके प्रमुख पात्रों के बारे में समझें, ताकि गीता के संदर्भ को सही से समझा जा सके। यह तैयारी आपको गीता की गहनता में प्रवेश करने में सहायता करेगी। |
3. एक अच्छे अनुवाद और टिप्पणी का चयन: भगवद गीता संस्कृत में लिखी गई है, इसलिए एक अच्छे अनुवाद और टिप्पणी का चयन महत्वपूर्ण है। स्वामी विवेकानंद, स्वामी प्रभुपादऔर अन्य विद्वानों द्वारा लिखी गई टिप्पणियाँ पढ़ सकते हैं। इससे आपको श्लोकों के सही अर्थ और संदर्भ को समझने में मदद मिलेगी। |
4. नियमित अध्ययन और मनन: गीता को पढ़ना एक निरंतर प्रक्रिया है। प्रतिदिन कुछ श्लोकों का अध्ययन करें और उन पर मनन करें। श्लोकों को बार-बार पढ़ने से उनकी गहराई को समझना आसान हो जाता है। ध्यान दें कि गीता केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में उतारने के लिए है। |
5 आध्यात्मिक मार्गदर्शन लें: यदि संभव हो तो किसी आध्यात्मिक गुरु या विद्वान से मार्गदर्शन लें। उनके अनुभव और ज्ञान से आपको गीता के कठिन श्लोकों और विचारों को समझने में मदद मिलेगी। सामूहिक चर्चा और सत्संग भी गीता के अध्ययन में सहायक हो सकते हैं। |
Benefits of Bhagwat Gita in Hindi| गीता को पढ़ने के लाभ
1. आध्यात्मिक ज्ञान: गीता का अध्ययन आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करता है। |
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2. मानसिक शांति: गीता के उपदेश मनुष्य जीवन के सभी प्रकार के तनाव और चिंताओं को दूर कर मानसिक शांति प्रदान करते हैं। |
3. नैतिकता और नैतिक मूल्यों का विकास: गीता के सिद्धांत नैतिकता और सदाचार को प्रोत्साहित करते हैं। जिससे मानवीय मूल्यों व नैतिक सदाचारी का विकास होता है, जिसको अपनाकर हम सभी जीवों के कल्याणकारी कार्यों को में सहयोगी बनते हैं। |
4. जीवन की दिशा: गीता का अध्ययन जीवन के उद्देश्य और दिशा को स्पष्ट करता है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में सही निर्णय ले सकता है। |
5. मोक्ष की प्राप्ति: गीता के सभी उपदेशों के जानने व उसमें बताये गये सभी करने योग्य कर्मों को निष्काम भाव से करने से हमें मोक्ष प्राप्त होता है। |
Disadvantages of Bhagavad Gita | भगवत गीता पढने के नुकसान
1. कर्म और धर्म के द्वंद्व में निष्काम कर्मयोग: गीता में कर्म और धर्म के विषय में विस्तृत चर्चा की गई है। श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म करने और अपने धर्म का पालन करने की सलाह देते हैं, चाहे परिणाम कुछ भी हो। कुछ आलोचक मानते हैं कि यह दृष्टिकोण लोगों को केवल अपने कर्तव्यों पर केंद्रित रखता है और परिणामों की चिंता न करने के लिए प्रेरित करता है। इससे व्यक्ति अपने कार्यों के परिणामों के प्रति उदासीन हो सकते हैं तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। |
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2. समाज में वर्ग विभाजन जैसी वर्ण व्यवस्था का दुरुपयोग: गीता में वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का समर्थन किया गया है। यह वर्ग विभाजन समाज में असमानता को बढ़ावा दे सकता है और लोगों को उनके जन्म के आधार पर सीमित कर सकता है। आधुनिक समाज में, जहां समानता और मानवाधिकारों का सम्मान किया जाता है, गीता की इस व्यवस्था की आलोचना की जा सकती है। हालांकि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिन वर्ण व्यवस्था की बात कही हैं वो मनुष्य के गुण और उसके स्वभाव के संदर्भ में कही है न कि जन्म या जाति के आधार पर। लेकिन अज्ञानी लोग भगवान श्रीकृष्ण के इस वर्ण व्यवस्था को जन्म व जाति के आधार देखते हैं और गीता के सही अर्थों का गलत मतलब निकालते हैं। इससे समाज में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। |
3. संदर्भ और समय की प्रासंगिकता का अभाव: श्रीमद्भगवद्गीता का रचना काल महाभारत के युद्ध के समय का माना जाता है, जो आज से हजारों साल पहले की बात है। कुछ विद्वान यह तर्क देते हैं कि गीता में दिए गए उपदेश और सिद्धांत उस समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर थे। आज के समय में, जब समाज और जीवन शैली काफी बदल चुकी है, गीता के कुछ सिद्धांत शायद उतने प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। |
4. मानसिक और भावनात्मकता का कुप्रभाव: गीता में युद्ध और हिंसा को धर्म के पालन के रूप में स्वीकार किया गया है। अर्जुन को अपने कर्तव्यों के पालन के लिए अपने रिश्तेदारों और मित्रों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि इस तरह की शिक्षाएं मानसिक और भावनात्मक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं और व्यक्तिगत संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकती हैं। |
5. महिलाओं की भूमिका का अभाव: गीता में महिलाओं की भूमिका पर बहुत कम चर्चा की गई है। इसमें मुख्य रूप से पुरुष पात्रों के बीच संवाद है और महिलाओं की सामाजिक स्थिति और उनके अधिकारों के विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। यह आलोचना की जा सकती है कि गीता में महिलाओं की भूमिका को उचित महत्व नहीं दिया गया है। |
Conclusion of Bhagwat Geeta | भगवत गीता का संपूर्ण सार
FAQ: Questions of Geeta | श्रीमद् भागवत गीता प्रश्नोत्तरी
1. भगवत गीता क्या है? ॐ: भगवत गीता एक सीख है, जो हमें जीवन को जीने का सबसे सही सलीका बताती है। भगवत गीता जीवन को जीने के लिए हमें सही मार्गदर्शन प्रदान करती है, गीता का पाठ रोज करने और सुनने से ही हमारे जीवन में बहुत जल्द सकारात्मक बदलाव आता है। |
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2. भगवत गीता किसकी रचना है? ॐ: महर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत गीता की है। |
3. भगवत गीता में कितने अध्याय हैं? ॐ: भगवत गीता में कुल 18 अध्याय हैं, जो निम्नप्रकार हैं:-
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4. गीता में कुल कितने श्लोक हैं? ॐ: भगवत गीता में 18 अध्याय हैं और 700 श्लोक हैं। |
5. गीता हमें क्या सिखाता है? ॐ: निष्काम भाव से कर्म करना, अन्य सभी जीवों के प्रति समभाव रखना, किसी से ईर्ष्या व बैर भाव नहीं रखना तथा असहाय एवं कमजोर लोगों तथा सभी जीवों की सेवा करना। |
6. गीता के अनुसार सही कर्म क्या है? ॐ: निस्वार्थ भाव से किया गया निष्काम कर्म जो अन्य सभी जीवों के लिए कल्याणकारी हो। |
7. गीता क अनुसार सबसे बड़ा पाप क्या है? ॐ: अपने स्वार्थ के लिए किसी जीव, मनुष्य की हत्या, किसी प्राणी को दुःख देना ही इस संसार का सबसे बड़ा पाप है। |
8. गीता पढ़ना कैसे शुरू करें? ॐ: भगवत गीता पढ़ने शुरू करने से पहले अपने मन तथा विचार को पवित्र करें और बुरे विचारों का परित्याग करके ही स्वच्छ होकर तथा शुद्ध मन से श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ व अध्ययन शुरू करें। |
9. भगवत गीता में क्या लिखा है? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है कि में स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण की शरण समर्पित करना चाहिए और कोई भी कार्य निष्काम भाव से करना चाहिए। कोई भी कर्म करते समय उस कर्म फल की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि उस कर्म का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित करना चाहिए। |
10. भगवत गीता का जनक कौन है? ॐ: महर्षि श्री वेदव्यास जी ही भगवत गीता जनक हैं। |
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11. गीता का पुराना नाम क्या है? ॐ: गीता का वास्तविक व पूरा तथा पूराना नाम श्रीमद्भगवद्गीता है। |
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12. गीता का असली लेखक कौन है? ॐ: महार्षि श्री वेदव्यास को ही गीता के रचयिता कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही श्रीमद्भगवद्गीता की रचना की थी। लेकिन वास्तविकता में गीता का असली लेखक भगवान श्री गणेश हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि श्री वेदव्यास अपनी इस रचना को भगवान श्री गणेश द्वारा ही संपन्न कर पाये थे। |
13. भाग्य के बारे में गीता में क्या लिखा है? ॐ: भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने खुद कहा है कि मैं किसी का भाग्य नहीं लिखता, बल्कि मनुष्य स्वयं ही प्रकृति के तीन गुणों सतोगुण रजोगुण तथा तमोगुण से आधीन होकर कर्म करता है। मैं सिर्फ मनुष्य को उसके द्वारा वर्तमान तथा पिछले जन्मों में किये गये कर्मों आधार पर ही उसको उसका फल देता हूं। |
14. रोज गीता पढ़ने से क्या होता है? ॐ: हर दिन पवित्र होकर श्रद्धा भाव से गीता को पढ़ने तथा गीता उपदेश के वचनों को प्रमाणिक गुरुओं से सुनने से हमारे सोच-विचारों में सकारात्मक परिवर्तन आता है। हम सही दिशा में अग्रसर होते हैं और किसी भी मुश्किल परिस्थितियों में सही निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं। इसलिए सभी लोगों को श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ अवश्य सुननी तथा पढ़नी चाहिए। |
15. अर्जुन विषाद योग कौन सा अध्याय है? ॐ: प्रथम अध्याय। |
16. अर्जुन विषाद योग में क्या लिखा है? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग में अर्जुन की दुविधा, उसके दुःख तथा विषाद का वर्णन किया गया है, कि जब वह अपने कुटुम्ब के लोगों अपने खिलाफ युद्ध करने के लिए अपने समक्ष खड़ा देखता है। |
17. असली गीता कौन सी है? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता विश्व के सबसे बड़े एवं सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक महाभारत का ही अंश है। हांलांकि सभी प्रकार के द्वारा प्रकाशित गीता में जो श्लोक है, वे तो असली ही है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेशों को उसके सही व सटीक अर्थों को गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसलिए गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता ही असली गीता है। |
18. हमें कौन सी गीता पढ़नी चाहिए? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता के संस्कृत श्लोकों का अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया है कुछ अनुवाद तो सनातन धर्म को बदनाम करने के उद्देश्य से गीता के उपदेशों का गलत अर्थ निकाला गया है। लेकिन फिर भी सनातन धर्म में प्रमाणिक गुरु-परंपरा द्वारा प्रकाशित व संचालित गीता को ही पढ़ना चाहिए। उनमें से कुछ निम्नप्रकार है:- गीता प्रेस की गीता, स्वामी प्रभुपाद कृत श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप गीता, संत ज्ञानेश्वर स्वामी की गीता तथा अरविंद घोष स्वामी की गीता इत्यादि। |
19. गीता का पहला शब्द क्या है? ॐ: गीता के सभी अध्याय तथा गीता के सभी श्लोकों का आरंभ राजा धृतराष्ट्र तथा उसके सचिव संजय के वार्तालाप यानी दोनों के संवादों से शुरू होता है। जब धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि हे संजय युद्धभूमि में युद्ध करने के उद्देश्य से एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पांडु पुत्र क्या कर रहे हैं? धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सुवः। मामका पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥ ॥1.1॥ इसी श्लोक व शब्दों के साथ गीता की शुरुआत हुई थी। |
20. गीता का मूल उद्देश्य क्या है? ॐ: गीता का मूल उद्देश्य है सभी जीवों के लिए कल्याणकारी कार्य कर सच्ची नैतिकता का विकास एवं विस्तार करना। सभी जीवों व मनुष्यों को परमात्मा को प्राप्त करने के लिए सही मार्गदर्शक प्रदान करना। |
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21. गीता से हमें क्या शिक्षा मिलती है? ॐ: गीता से हमें भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने की शिक्षा मिलती है। साथ ही हमें गीता से सभी जीवों के प्रति समभाव का भाव की प्राप्ति होती है । |
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22. गीता का सबसे महत्वपूर्ण पाठ क्या है? ॐ: गीता का सबसे महत्वपूर्ण पाठ या सबसे महत्वपूर्ण श्लोक गीता के दूसरे अध्याय में है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥" (2.47)। इसका मतलब यह है कि मनुष्य को केवल अपना कर्म (कर्तव्य) करने का अधिकार है, उसके अच्छे व बुरे परिणामों का नहीं। इसलिए मनुष्य को केवल अपना नियत कर्म ही करते रहना चाहिए। |
23. श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा नाम क्या है? ॐ: गीतोपनिषद्! श्रीमद्भागवत गीता का दूसरा नाम "गीतोपनिषद्" है। |
24. श्रीमद् भागवत गीता में कितने अध्याय हैं? ॐ: सम्पूर्णं भगवत गीता में 18 अध्याय हैं, जिसमें कुल 700 श्लोक हैं। उनमें अधिकांश श्लोक भगवान श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के हैं और कुछ श्लोक संजय के हैं तथा एक श्लोक धृतराष्ट्र का है, जो कि भगवत गीता प्रथम भी श्लोक है। |
25. गीता का शक्तिशाली श्लोक कौन सा है? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता का सबसे शक्तिशाली व सबसे प्रसिद्ध श्लोक गीता के चौथे अध्याय का सातवां श्लोक है, जो कि इस प्रकार है - "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥" इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! जब-जब धर्म का विनाश होता है, तब-तब मैं प्रकट होता हूं और धर्म की रक्षा करता हूं। |
26. श्री कृष्ण का पहला श्लोक कौन सा है? ॐ: भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम श्लोक है "कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥ " (2.1)। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! ऐसे युद्ध करने के समय में तुम्हारे मन ये विचार भी कैसे और क्यों आया कि तुम यह युद्ध नहीं करोगे? ऐसा करना तुम्हारे जैसे वीर पुरुष के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है, जो जीवन के नैतिक मूल्यों को जानता है। ऐसे करने से तुम यश (सम्मान) को नहीं अपितु अपयश (अपमान) को प्राप्त होगे। |
27. गीता में कितने मंत्र हैं? ॐ: गीता में बहुत सारे मंत्रों का समावेश है लेकिन गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तीन मंत्रों को ही अधिक महत्व दिया है और वे मंत्र इस प्रकार हैं: "ॐ तत् सत्" । जिसका सही अर्थ है वह यानी परमात्मा ही सनातन सत्य तथा शाश्वत है। भगवान श्रीकृष्ण गीता के 17वें अध्याय के 23वें श्लोक में कहते हैं: "ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविध: स्मृत:। ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिता: पुरा॥" । |
28. गीता का प्रसिद्ध मंत्र क्या है? ॐ:- गीता का सबसे लोकप्रिय व सबसे प्रसिद्ध मंत्र व श्लोक गीता के दूसरे अध्याय का 47वां श्लोक है, जो कि इस प्रकार है: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥" जिसका अर्थ है तुम बस अपना कर्म करो लेकिन फल की चिंता मत करो। भगवान श्रीकृष्ण यहां गलत काम करने को नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो ये कह रहे हैं कि मनुष्य अपने नियत कर्म करें। बिना उस कर्म फल की चिंता किए बिना क्योंकि कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार है और उसके कर्मों का फल देने का अधिकार केवल परमात्मा को ही है। |
29. कृष्ण के अनुसार धर्म क्या है? ॐ: गीता में भगवान श्रीकृष्ण धर्म को इस प्रकार से परिभाषित किया है कि नियत कर्म ही सभी जीवों व मनुष्यों का परम धर्म है। मनुष्य को प्रकृति के द्वारा प्रदत्त कर्म को ही अपना कर्तव्य तथा परम धर्म समझकर करना चाहिए। मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए कर्म करना ही उसका धर्म है। |
30. गीता के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है? ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार जीवन का मूल उद्देश्य परमात्मा को प्राप्त करना है और परमात्मा को निष्काम भाव से कर्म कर तथा भक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। |
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31. गीता में तीन गुण क्या हैं? ॐ: गीता में श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए तीन गुण: सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। |
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32. गीता के अनुसार मनुष्य को क्या करना चाहिए? ॐ: गीता के अनुसार मनुष्य को सभी जीवों के प्रति समभाव तथा दयाभाव रखना चाहिए और कमजोर तथा असहाय लोगों व जीवों की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से परमात्मा को प्राप्त करने के मार्ग पर सफल हो सकते हैं। |
33. भगवत गीता के प्रथम अध्याय का क्या नाम है? ॐ: अर्जुन विषाद योग, इस अध्याय में अर्जुन के दुःख, दुविधाओं का वर्णन मिलता है। |
34. भगवत गीता के दूसरे रे अध्याय का क्या नाम है? ॐ: सांख्य योग। |
35. भगवत गीता के तीसरे अध्याय का क्या नाम है? ॐ: कर्म योग। |
36. भगवत गीता के चौथे अध्याय का क्या नाम है? ॐ: ज्ञान कर्म संन्यास योग। |
37. भगवत गीता के 5वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: कर्म संन्यास योग। |
38. भगवत गीता के 6वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: आत्मसंयम या ध्यान योग। |
39. भगवत गीता के 7वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: ज्ञान विज्ञान योग। |
40. भगवत गीता के 8वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: अक्षरब्रह्म योग। |
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41. भगवत गीता के 9वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: राजविद्या राजगुह्यं योग। |
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42. भगवत गीता के 10वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: विभूति योग। |
43. भगवत गीता के 11वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: विश्वरूप दर्शन योग या विराट रूप। |
44. भगवत गीता के 12वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: भक्ति योग। |
45. भगवत गीता के 13वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग। |
46. भगवत गीता के 14वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: गुणत्रय विभाग योग। |
47. भगवत गीता के 15वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: पुरूषोत्तम योग। |
48. भगवत गीता के 16वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: दैवासुर समद्विभाग योग, । |
49. भगवत गीता के 17वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: श्रद्धात्रय विभाग योग। |
50. भगवत गीता का अंतिम अध्याय क्या है? ॐ: गीता के अंतिम अध्याय मोक्ष संन्यास योग है, इस अंतिम अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के सभी 18 अध्यायों का सार पुनः समझाते हैं। |
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