Bhagavad Gita Adhyay 11: विश्वरूप दर्शन योग के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का विराटरूप का दर्शन | Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop)

जय श्रीकृष्ण साथियों!  श्रीमद्भागवद गीता, जिसे 'गीता' के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय धार्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है और 700 श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह है। गीता में विभिन्न अध्याय हैं, जिनमें से प्रत्येक अध्याय मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करता है। गीता का 11वां अध्याय, 'विश्वरूप दर्शन योग' या 'विराटरूप' के नाम से प्रसिद्ध है, जो भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय और व्यापक दिव्यता का प्रकट करता है। इस "Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog" अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अपने दिव्य और सार्वभौमिक रूप को अर्जुन के समक्ष प्रकट करते हैं। यह रूप किसी भी मानव कल्पना से परे है, क्योंकि इसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाहित है। इस विराटरूप के दर्शन से अर्जुन को न केवल भगवान के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि भगवान का स्वरूप किसी भी भौतिक या मानसिक सीमा में बंधा हुआ नहीं है।

 इस अध्याय में विराटरूप का परिचय हमें यह बताता है कि भगवान श्रीकृष्ण केवल एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे सम्पूर्ण सृष्टि के आधार हैं। उनका रूप इतना व्यापक और भव्य है कि इसे किसी भी साधारण नेत्रों से देखना असंभव है। इसलिए, भगवान ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे वह इस अद्वितीय रूप का दर्शन कर सके। इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने सभी देवताओं, ऋषियों, और सम्पूर्ण ब्रह्मांड को एक ही स्थान पर समाहित कर दिया।

Shrimad Bhagwat Geeta Viratroop  | भगवत गीता अध्याय 11 विराटरूप

  Bhagwat Gita Vishwaroop  Darshan Yog | भगवद् गीता अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग (विराटरूप)

 विश्वरूप दर्शन योग गीता का वह अध्याय है जिसमें अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप का दर्शन कराया। यह दर्शन गीता के सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमयी हिस्सों में से एक है। इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह दिखाया कि वह न केवल एक साधारण मानव रूप में हैं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सृजन, संरक्षण और संहार के स्वामी हैं। अर्जुन, जो महाभारत के युद्ध में अपने कर्तव्यों को लेकर भ्रमित थे, इस दर्शन के माध्यम से समझ सके कि उनके समक्ष जो युद्ध हो रहा है, वह केवल एक लीलामात्र है और भगवान की माया से परे नहीं है।  

What is The Vishwaroop  Darshan Yog | विश्वरूप दर्शन योग क्या है?

 What is The Vishwaroop  Darshan Yog | विश्वरूप दर्शन योग क्या है?

 विश्वरूप दर्शन योग वह योग या अध्याय है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने असीम और अनंत स्वरूप का दर्शन कराया। इस अध्याय में, अर्जुन ने भगवान से अनुरोध किया कि वे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराएं ताकि वे समझ सकें कि भगवान की वास्तविक महिमा क्या है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे वे अपने विराट रूप को देख सकें। इस रूप में भगवान के अनंत मुख, अनंत नेत्र, और अनगिनत रूप थे, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए थे। इस दर्शन ने अर्जुन को गहन आत्मज्ञान और भगवान के वास्तविक स्वरूप का बोध कराया।

भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप में सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता समाहित थी। उन्होंने अर्जुन को बताया कि यह रूप केवल उन्हें इसलिए दिखाया जा रहा है क्योंकि अर्जुन उनका प्रिय भक्त और सखा है। इस रूप का दर्शन किसी साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं था; इसे केवल दिव्य दृष्टि से ही देखा जा सकता था। अर्जुन इस विराट रूप को देखकर विस्मय में आ गए और उन्होंने भगवान की महिमा का गुणगान किया। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि वे अपने सामान्य रूप में लौट आएं क्योंकि इस विराट रूप का दर्शन उनके लिए सहन करना कठिन हो रहा था। 

What is the cosmic form of Krishna | श्रीकृष्ण का विराटरूप क्या है?


विराटरूप वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण का वह अनंत और अपार रूप है जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाहित है। यह केवल एक शारीरिक रूप नहीं है, बल्कि यह उन सभी शक्तियों और गुणों का प्रतीक है जो ब्रह्मांड में मौजूद हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इस विराटरूप के माध्यम से अर्जुन को यह दिखाने का प्रयास किया कि वे सम्पूर्ण जगत के कर्ता-धर्ता हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है। विराटरूप का वर्णन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह रूप न केवल धरा और आकाश तक सीमित है, बल्कि इसमें समय, जीवन और मृत्यु की संपूर्ण व्यवस्था भी समाहित है। यह रूप सभी दिशाओं में विस्तृत है और इसका कोई अंत नहीं है। इसमें सभी देवताओं, असुरों, ऋषियों और सम्पूर्ण जीव-जंतुओं को देखा जा सकता है।

इस विराटरूप को देखकर अर्जुन की आंखें खुल जाती हैं और वह समझ जाता है कि भगवान का वास्तविक स्वरूप कितना विशाल और अपार है। वह जानता है कि श्रीकृष्ण के बिना कुछ भी संभव नहीं है और वे ही इस सम्पूर्ण सृष्टि के संचालक हैं।

Importance of Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) in Gita | विराटरूप का महत्व

   The Importance of Vishwaroop Darshan in Gita | विश्वरूप दर्शन योग का महत्व 

 श्रीमद्भगवद्गीता का ग्यारहवां अध्याय, भगवद्गीता के सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमयी अध्यायों में से एक है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराया था, जिससे अर्जुन को ब्रह्मांडीय शक्ति, समय की अनंतता और भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव हुआ। विश्वरूप दर्शन योग का अध्याय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दर्शाता है कि भगवान का रूप सीमित नहीं है; वह अनंत, असीम और अखंड है। भगवान की विराटता को केवल भौतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता, इसके लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है, जो केवल श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। यह योग हमें यह भी सिखाता है कि इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह भगवान की माया का एक हिस्सा है और हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान में अडिग श्रद्धा रखनी चाहिए।इस अध्याय में भगवान के विश्वरूप के माध्यम से अद्वितीय सत्य और दिव्यता के महत्वपूर्ण सन्देश दिए गए हैं। आइए, इस अध्याय के पांच सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करते हैं।

1. भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव (सर्वेश्वरता का बोध): विश्व रूप दर्शन योग का सबसे प्रमुख संदेश यह है कि भगवान सर्वव्यापी हैं। जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से उनके वास्तविक रूप को दिखाने का अनुरोध किया, तो भगवान ने अपने विराट रूप को प्रकट किया। इस विराट रूप में भगवान का संपूर्ण ब्रह्मांड समाहित था - सभी देवता, असुर, ऋषि, समय, और सम्पूर्ण सृष्टि। अर्जुन ने देखा कि भगवान हर जगह हैं, हर चीज में हैं और हर चीज भगवान का ही रूप है। यह बोध हमें यह सिखाता है कि ईश्वर किसी एक स्थान, व्यक्ति या रूप में सीमित नहीं हैं। वे हर जगह उपस्थित हैं और हम सबमें निवास करते हैं
2. समय और काल की अनंतता (काल के महत्व का बोध): भगवान के विराट रूप में अर्जुन ने समय की अनंतता को भी देखा। भगवान ने अर्जुन को बताया कि वे समय के रूप में संहारक हैं और सब कुछ समय के गर्भ में समाहित हो जाता है। संसार में जो कुछ भी होता है, वह समय की गति के अनुसार ही होता है। यह हमें यह सिखाता है कि समय अनमोल है और हमें इसके महत्व को समझते हुए सही कार्य करना चाहिए। समय के प्रति सजग रहकर हमें अपने जीवन को सद्गुणों से भरने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि समय ही हमें जीवन के असली अर्थ का बोध कराता है। 
3. धर्म का पालन और अधर्म का नाश (धर्म और अधर्म के संघर्ष का बोध): भगवान के विराट रूप में अर्जुन ने देखा कि कैसे अधर्म और असत्य का नाश हो रहा है। भगवान ने अर्जुन को बताया कि वे धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतरित होते हैं। इस संदेश से यह स्पष्ट होता है कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा और धर्म का पतन होगा, तब-तब भगवान साक्षात् रूप में प्रकट होकर अधर्म का नाश करेंगे और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। यह हमें यह सिखाता है कि हमें सदैव धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और अधर्म से बचना चाहिए। धर्म का पालन करने से ही हमें सच्ची शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
4. भगवान के प्रति समर्पण (भक्ति और समर्पण का महत्व): विश्व रूप दर्शन के बाद, अर्जुन का भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण और भी गहरा हो गया। अर्जुन ने भगवान के विराट रूप को देखकर यह समझा कि भगवान की महिमा अनंत है और उनका प्रेम, दया, और करुणा भी अनंत हैं। अर्जुन ने यह भी महसूस किया कि केवल भगवान की शरण में जाने से ही जीवन का सच्चा उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अहंकार को त्यागकर भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण करना चाहिए। केवल भगवान की शरण में जाने से ही हमें जीवन के संघर्षों से मुक्ति मिल सकती है और हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है
5. मोह और माया से मुक्ति (अज्ञान और मोह का नाश): विश्व रूप दर्शन के समय अर्जुन ने यह भी महसूस किया कि मोह और माया से बंधकर मनुष्य अपने असली लक्ष्य को भूल जाता है। अर्जुन ने देखा कि कैसे लोग अपने अज्ञान और मोह के कारण संसार में उलझे रहते हैं और सत्य को देखने में असमर्थ होते हैं। भगवान ने अर्जुन को यह सिखाया कि मोह और माया से मुक्ति पाकर ही मनुष्य अपने जीवन के असली उद्देश्य को समझ सकता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन से मोह और माया के बंधनों को तोड़कर सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए

 श्रीमद्भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय "विश्व रूप दर्शन योग" में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो विराट रूप दिखाया, वह हमें यह सिखाता है कि भगवान सर्वव्यापी हैं, समय अनमोल है, धर्म का पालन करना अनिवार्य है, भगवान के प्रति समर्पण हमें मोक्ष की ओर ले जाता है और मोह और माया से मुक्ति पाना ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है। इस अध्याय के संदेश को आत्मसात कर हम अपने जीवन को उच्चतम आध्यात्मिकता की ओर ले जा सकते हैं और सच्ची शांति प्राप्त कर सकते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का यह अध्याय हमें यह भी याद दिलाता है कि जीवन में संघर्ष और चुनौतियों के समय हमें भगवान की शरण में जाना चाहिए और उनकी अनंत शक्ति और कृपा पर विश्वास करना चाहिए। भगवान का विराट रूप हमें यह विश्वास दिलाता है कि वे हमारे साथ हैं और हमें हर कठिनाई से बाहर निकालने के लिए सदैव तत्पर हैं। 
 इसलिए, विश्व रूप दर्शन योग का अध्ययन हमें न केवल आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि जीवन के हर पहलू में भगवान की महिमा को पहचानकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का यह अध्याय हमें आत्मज्ञान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाने की प्रेरणा देता है और हमें धर्म, समय, भक्ति, और सत्य की महानता का बोध कराता है।

Arjuna’s Experience of Viratroop |  भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप

 Arjuna’s Experience of Vishwaroop Darshan |  भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप और अर्जुन का अनुभव 

 अर्जुन ने इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप का दर्शन करता है, जिसमें अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के अत्यंत भव्य और विकराल रूप को देखा था। इसमें समस्त ब्रह्मांड के देवता, ऋषि, और अन्य जीव-जन्तु समाहित थे। इस रूप में भगवान का प्रत्येक अंग, प्रत्येक भाग दिव्यता का प्रतीक था। अर्जुन ने इस विराट रूप में समय का संहारकारी रूप भी देखा, जिसमें उन्होंने देखा कि समस्त योद्धा, जिनमें कौरव और पांडव दोनों ही शामिल थे, भगवान के विराट रूप में प्रवेश कर रहे हैं। यह दृश्य अर्जुन के लिए अत्यंत भयावह था और उन्होंने भगवान से निवेदन किया कि वे अपने सामान्य सौम्य रूप में वापस आ जाएं।
भगवान श्रीकृष्ण ने तब अर्जुन को बताया कि उनका यह विराट रूप समय का स्वरूप है और जो कुछ भी हो रहा है, वह पहले से ही निर्धारित है। अर्जुन का कर्तव्य केवल इस युद्ध को लड़ना है और उसे निष्काम भाव से अपने धर्म का पालन करना है। भगवान श्रीकृष्ण के इस उपदेश से अर्जुन का मन शांत हुआ और उन्होंने भगवान के निर्देशानुसार अपने कर्तव्यों का पालन किया। 

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय श्लोक १-१०

 Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय श्लोक १-१०


श्रीमद् भागवत गीता का 11वां अध्याय, जिसे "विश्वरूप दर्शन योग" के नाम से जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन का महत्त्वपूर्ण वर्णन करता है। इस अध्याय में अर्जुन को वह दिव्य दृष्टि प्रदान की जाती है, जिसके माध्यम से वे श्रीकृष्ण के अनंत और विराट स्वरूप का साक्षात्कार कर पाते हैं। यह अध्याय केवल एक आध्यात्मिक अनुभूति ही नहीं, बल्कि यह भगवान की अनंतता, सर्वव्यापकता और सर्वशक्तिमत्ता का प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। "विश्वरूप दर्शन योग" में अर्जुन के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण समस्त संसार को यह संदेश देते हैं कि वे ही सृष्टि के मूल कारण, पालनहार और संहारक हैं। यह अध्याय भगवद् गीता के सभी अध्यायों में विशिष्ट और अनूठा है क्योंकि इसमें भगवान का एक ऐसा रूप प्रकट होता है, जो भूत, वर्तमान और भविष्य, तीनों को एक साथ समाहित किए हुए है। आइए फिर "Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop)" के इस लेख के माध्यम से हम  सब एक अध्यात्मिक सफर की ओर आगे बढ़ें। 

 अर्जुन उवाच :-
 मदनग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम् ।
 यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥१॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - आपने मुझे जिन अत्यन्त रहस्यमय (अत्यंत गोपनीय ज्ञान का रहस्य) आध्यात्मिक विषयों का उपदेश दिया है, उसे सुनकर अब मेरा सारा मोह दूर हो गया है। (पहला श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया ।
 त्वत्त: कमलपत्राक्ष महात्म्यमपि चाव्ययम् ॥२॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे कमलनयन (कमल से नयन वाले श्री कृष्ण)! मैंने आपसे  समस्त जीवों की उत्पत्ति तथा लय के विषय में विस्तार पूर्वक सुना है और आपकी अक्षय महिमा का अनुभव किया है। (द्वितीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।
 द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥३॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे परमेश्वर, हे पुरुषोत्तम! यद्यपि आपको मैंने अपने समक्ष आपके द्वारा वर्णित आपके आपके वास्तविक रूप में देख रहा हूं, किन्तु मैं यह देखने का इच्छुक हूं कि आप इस दृश्य जगत में किस प्रकार प्रविष्ट हुए हैं। मैं आपके उसी रूप का दर्शन करना चाहता हूं। (तृतीय श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो ।
 योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ॥४॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- ‌हे प्रभु ! यदि आप सोचते हैं कि मैं आपके विश्वरूप को देखने में समर्थ हो सकता हूं, तो हे योगेश्वर! कृपा करके आप मुझे अपना असीम विश्वरूप दिखलायें । (चतुर्थ श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 श्रीभगवानुवाच :-
 पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्त्रश: ।
 नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णिकृतीनि च ॥५॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- भगवान ने कहा:- हे पार्थ (अर्जुन)! तुम मेरे ऐश्वर्य को, सैकड़ों-हजारों प्रकार के दिव्य तथा विविध रंगों वाले रूपों को देखो। (पंचम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।
 बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥६॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे भारत (भरतवंशी अर्जुन)! लो, तुम आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्विनी कुमारों तथा अन्य देवताओं के विभिन्न रूपों को देखो। तुम ऐसे अनेक आश्चर्यमय रूपों को देखो, जिस विश्वरूप को आज से पहले किसी ने न तो कभी देखा है और न ही सुना है। (षष्ठम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 इहैकस्थं जगत्कृत्स्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
 मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ॥७॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! तुम जो भी देखना चाहो हो, उसे तत्क्षण मेरे इस शरीर में देखो। तुम इस समय तथा भविष्य में घटित होने वाले सभी दृश्यों को देख सकते हो, जो यह विश्वरूप तुम्हें दिखाने वाला है। (सप्तम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
 दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् ॥८॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- किन्तु तुम मुझे अपनी इन सामान्य आंखों (भौतिक नेत्र दृष्टि, प्रकृति द्वारा प्रदत्त नेत्रों) से देख नहीं सकते। अतः मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि प्रदान कर रहा हूं। अब मेरे योग ऐश्वर्य (विश्वरूप) को देखो। (अष्टम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सञ्जय उवाच :-
 एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरि: ।
 दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥९॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- संजय ने कहा - हे महाराज ! इस प्रकार बोलकर महायोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य विश्वरूप (विराटरूप) दिखलाया । (9वां श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अनेकवक्त्रनयननेकाद्भुतदर्शनम् ।
 अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥१०॥
  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के उस विराटरूप में असंख्य मुख, असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य को देखा। यह दिव्य विराटरूप अनेक दिव्य आभूषणों से अलंकृत था और अनेक शस्त्रों को धारण किये हुये थे । (10वां श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 11-30 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ११-२०

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 11-30 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ११-२०

 दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
 सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥११॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- यह विराटरूप दिव्य मालाएं तथा वस्त्र धारण किये था और उस पर अनेक सुगन्धियां लगी थीं। सब कुछ आश्चर्यमय, तेजमय, असीम तथा सर्वत्र व्याप्त था (11वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 दिवि सूर्यसहस्त्रस्यस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
 यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मान: ॥१२॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- यदि आकाश में हजारों सूर्य एक साथ उदय हों, तो उनका प्रकाश भी शायद परमपुरुष के इस विश्वरूप के तेज की समता कर सके। (12वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।
 अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥१३॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- उस समय अर्जुन भगवान के विश्वरूप में एक ही स्थान पर स्थित हजारों भागों में विभक्त ब्रह्माण्ड के अनन्त अंशों को देख सका। (13वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जय : ।
 प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥१४॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- तब मोहग्रसत एवं आश्चर्यचकित रोमांचित हुए अर्जुन ने भगवान को प्रणाम करने के लिए अपना मस्तक झुकाया और वह हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगा। (14वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अर्जुन उवाच :-
 पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् ।
 ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ-मृषींश्च सर्विनुरगांश्च दिव्यान् ॥१५॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा :- हे प्रभु! मैं आपके शरीर में समस्त देवताओं तथा अन्य जीवों को एकत्र देख रहा हूं। मैं कमल पर आसीन ब्रह्मा, शिवजी तथा समस्त ऋतुओं एवं सर्पों को देख रहा हूं। (15वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् ।
 नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥१६॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे विश्वेश्वर, हे विश्वरूपम! मैं आपके शरीर में अनेकानेक हाथ, पेट, मुंह तथा आंखें देख रहा हूं, जो सर्वत्र फैले हैं जिनका कोई अंत नहीं है। आपके इस विश्वरूप का न तो कोई अंत दिखता है, न मध्य दिखता है और न ही कोई आदि। (16वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशि सर्वतो दीप्तिमन्तम् ।
 पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ता-द्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥१७॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आपके इस विराटरूप को उसके चकाचौंध के तेज के कारण देख पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि वह प्रज्ज्वलित अग्नि की भांति अथवा सूर्य के अपार प्रकाश की भांति चारों ओर फैलता जा रहा है। तो भी मैं इस तेजोमय रूप को सर्वत्र देख रहा हूं, जो अनेक मुकुटों, गदाओं तथा चक्रों से विभूषित है। (17वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
 त्वमव्यय: शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥१८॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप परम अक्षर व परम अच्युत (आद्य ज्ञेय, अविनाशी वस्तु) हैं। आप ही इस ब्राह्मण के परम आधार (आश्रय) हैं। आप अविनाशी तथा पुराण पुरुष हैं। आप सनातन धर्म के पालनहार भगवान हैं। यही मेरा मत है। (18वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य-मनन्तबाहूं शशिसूर्यनेत्रम् ।
 पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ॥१९॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप आदि, मध्य तथा अंत से रहित हैं। आपका यश अनन्त है। आपकी असंख्य भुजाएं और सूर्य तथा चन्द्रमा आपकी आंखें हैं। मैं आपके मुख से प्रज्वलित अग्नि को निकलते और आपके तेज से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जलते हुए देख रहा हूं। (19वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वा: ।
 दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥२०॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- यद्यपि आप एक हैं, किन्तु आप आकाश तथा सारे लोकों एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त (सभी दिशाओं में फैले) हैं। हे महाप्रभु! आपके इस अद्भुत तथा भयानक विराटरूप को देख कर सारे लोक भयभीत हैं। (20वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 21-30 | भगवत गीता अध्याय श्लोक २१-३०

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 21-30 | भगवत गीता अध्याय श्लोक २१-३०

 अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीता: प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
 स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभि: पुष्कलाभि: ॥२१॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- देवों का सारा समूह आपकी शरण ले रहा है और आपमें प्रवेश कर रहा है। उनमें से कुछ अत्यंत भयभीत होकर हाथ जोड़े आपकी प्रार्थना कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्ध पुरुषों का समूह "कल्याण हो" कहकर वैदिक स्तोत्रों का पाठ करते हुए आपकी स्तुति कर रहे हैं। (21वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।
 गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥२२॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- शिव के विविध रूप, आदित्यगण, सारे वसु, साध्य, विश्वदेव, दोनों अश्विनीकुमार, मरुद्गण, पितृगण, गन्धर्व, यक्ष, असुर तथा सिद्धदेव सभी आपको आश्चर्यपूर्वक देख रहे हैं। (22वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम् ।
 बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोका: प्रव्यथितास्तथाहम् ॥२३॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे महाबाहु! आपके इस अनेकों मुख, नेत्र, बाहु, जंघा, पांव, पेट तथा भयानक दांतों वाले विराट रूप को देखकर देवतागण सहित सभी लोक अत्यंत विचलित हैं और उन्हीं की तरह मैं विचलित हूं। (23वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ॥२४॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे सर्वव्यापी विष्णु! नाना ज्योतिर्मय रंगों से युक्त आपको आकाश का स्पर्श करते, मुख फैलाये तथा बड़ी-बड़ी चमकदार आंखें निकाले देखकर भय से मेरा मन बहुत विचलित है। मैं न तो धैर्य को धारण कर पा रहा हूं और न ही मानसिक संतुलन को प्राप्त कर पा रहा हूं। (24वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि ।
 दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥२५॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे जगतपिता! हे विष्णु! आप मुझ पर प्रसन्न हों। मैं इस प्रकार से आपके प्रलयाग्नि स्वरूप मुखों तथा विकराल दांतों को देख कर अपना संतुलन नहीं रख पा रहा हूं। मैं सब ओर से मोहग्रसत हो रहा हूं। (25वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा: सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै: ।
 भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ। सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥२६॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- धृतराष्ट्र के सभी पुत्र अपने समस्त सहायक राजाओं सहित तथा भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं हमारे प्रमुख योद्धा भी आपके विकराल मुख में प्रवेश कर रहे हैं। (26वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
 केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै: ॥२७ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आपके महाभयंकर विकराल मुख में तेजी से प्रवेश होते हुए उनमें से कुछ के शिरों को मैं आपके दांतों के मध्य में चूर्णित हुआ देख रहा हूं। (27वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
 तथा तवामि नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥२८॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्र में प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार ये समस्त महान योद्धा भी आपके प्रज्ज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। (28वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: ।
 तथैव नाशाय लोका-स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगा: ॥२९॥   
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- मैं समस्त लोगों को पूर्ण वेग (अत्यधिक तीव्र गति) से आपके मुख में उसी प्रकार प्रविष्ट (प्रवेश) होते देख रहा हूं, जिस प्रकार पतिंगे (कीट-पतंगें) अपने विनाश के लिए जलती हुई अग्नि में कूद पड़ते हैं। (29वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता-ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: ।
 तेजोभिरायपूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो ॥३०॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे जगतपिता विष्णु! मैं देखता हूं कि आप अपने प्रज्जवलित (जलती हुई) मुखों से सभी दिशाओं के लोगों को निगलते जा रहें हैं। आप समस्त ब्रह्माण्ड को अपने तेज से आपूरित (आच्छादित) करके अपनी विकराल झुलसती किरणों सहित प्रकट हो रहे हैं। (30वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ३१-४०

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ३१-४०

 आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
 विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥३१॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे देवों के देव! कृपा करके मुझे बतलाइये कि इतने उग्ररूप में आप कौन हैं? मैं आपको नमन करता हूं, कृपा करके मुझपर प्रसन्न हों। आप आदि-भगवान हैं। मैं आपको जानना चाहता हूं, क्योंकि मैं नहीं जान पा रहा हूं कि आपका प्रयोजन क्या है? (31वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 श्रीभगवानुवाच :-
 कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: ।
 ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: ॥३२॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- श्रीभगवान अर्जुन से बोले - समस्त लोकों (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, समस्त संसार) को विनष्ट करने वाला काल मैं ही हूं और मैं यहां समस्त लोगों का विनाशक करने के लिए आया हूं। तुम्हारे (पाण्डवों के) सिवा दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जायेंगे। (32वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
 मयैवैते निहता: पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥३३॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अतः उठो! युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ और यश अर्जित करो। अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सम्पन्न राज्य का भोग करो। ये सब (कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के उद्देश्य से एकत्रित हुए सभी योद्धा) मेरे द्वारा पहले से मारे जा चुके हैं और हे सव्यसाची (अर्जुन धनुर्विद्या में बहुत ही निपुण था, वो बायें हाथ से भी धनुष-बाण चलाने में सक्षम था, इसलिए उसका एक नाम साव्यसाची पड़ा था और भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इस श्लोक में अर्जुन को सव्यसाची कहकर संबोधित कर रहे हैं) अर्जुन! तुम तो युद्ध में केवल निमित्त (कारण व माध्यम) मात्र हो सकते हो। (33वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथ च कर्णं तथन्यानपि योधवीरान् ।
 मया हतांस्त्वं जहि माव्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥३४॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण तथा अन्य सभी महान योद्धा पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। अतः तुम उनका वध करो और तनिक भी विचलित न हो। तुम केवल युद्ध करो। निश्चय ही इस युद्ध में तुम अपने शत्रुओं को परास्त करोगे। (34वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सञ्जय उवाच :-
 एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी ।
 नमसकृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभात : प्रणम्य ॥३५॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- सञ्जय ने धृतराष्ट्र से कहा - हे राजन्! भगवान के मुख से इन वचनों को सुनकर अर्जुन ने कांपते हुए अपने हाथ जोड़कर उन्हें बारम्बार नमस्कार किया। फिर उसने भयभीत होकर अवरूद्ध (धीमे) स्वर में इस प्रकार कहा। (35वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अर्जुन उवाच :-
 स्थाने हृषिकेश तव प्रकीर्त्या चगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
 रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सीद्धसङ्घा ॥३६॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - हे हृषिकेश! आपके नाम के श्रवण (कीर्ति) से सारा संसार हर्षित होता है और सभी लोग आपके प्रति अनुरक्त होते हैं। यद्यपि सिद्ध पुरुष आपको नमस्कार करते हैं, किंतु असुरगण भयभीत हैं और भयभीत होकर इधर-उधर भाग रहे हैं। यह ठीक ही हुआ। (36वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे ।
 अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ॥३७ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे महात्मा! आप ब्रह्मा से भी बढ़कर हैं, आप आदि स्त्रष्टा हैं। तो फिर वे आपको सादर नमस्कार क्यों न करें? हे अनन्त देवेश, हे जगन्निवास! आप ही परम स्रोत, परम अक्षर (परम अविनाशी), कारणों के कारण तथा इस भौतिक जगत से भी परे हैं। (37वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 त्वमादिदेव: पुरुषः पुराण-स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
 वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥३८॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप आदि परमेश्वर, सनातन पुरुष तथा इस दृश्यजगत के परम आश्रय हैं। आप सब कुछ जानने वाले हैं और आप ही वह सब कुछ हैं, जो जानने योग्य है। आप भौतिक गुणों से परे परम आश्रय हैं। हे अनन्त रूप! यह सम्पूर्ण दृश्यजगत आपसे व्याप्त है। (38वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 वायुर्मोऽग्निर्वरुण: शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
 नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्व: पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥३९॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप वायु हैं तथा परम नियंता (यम/यमराज) भी हैं। आप अग्नि हैं, जल हैं तथा चंद्रमा हैं। आप ही आदि जीव ब्रह्मा हैं तथा आप ही प्रपितामाह हैं। अतः आपको हजार बार नमस्कार है और बार-बार नमस्कार है। (39वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
 अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्व: ॥४०॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आपको आगे, पीछे तथा सारे दऊशों दिशाओं से नमस्कार। हे असीम शक्ति! निस्संदेह आप ही अनन्त पराक्रम के स्वामी हैं। आप सर्वव्यापी हैं तथा आप ही सब कुछ हैं।‌ (40वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 41-50 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ४१-५०

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 41-50 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ४१-५०

 सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।
 अजानता महिमां तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥४१॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- मैंने आपको अपना मित्र मानते हुए कई बार हठपूर्वक हे कृष्ण, हे यादव, हे सखा जैसे सम्बोधनों से पुकारा है, क्योंकि मैं आपकी महिमा को नहीं जानता था। मैंने मूर्खतावश या प्रेमवश में आकर आपके साथ जो कुछ भी किया है या आपको जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं आपका क्षमा प्रार्थी हूं कृपा करके आप मुझे क्षमा कर दें। । (41वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु ।
 एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥४२॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- यही नहीं, मैंने कई बार आराम करते समय, एक साथ लेटे हुए या साथ-साथ खाते या बैठे हुए, कभी अकेले तो कभी अनेक मित्रों के सामने आपका अनादर किया है, आपका उपहास किया है, आपका मजाक उड़ाया है। लेकिन फिर भी हे अच्युत! मैं आपका क्षमा प्रार्थी हूं, कृपा करके आप मेरे उन सभी अपराधों को क्षमा कर दें। (42वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् । न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥४३॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप ही चर तथा अचर सम्पूर्ण दृश्यजगत के जनक हैं। आप ही परम पूज्य महान आध्यात्मिक गुरु हैं। न तो कोई आपके तुल्य है और न ही कोई आपके समान हो सकता है। हे अतुल वाले प्रभु! भला तीनों लोकों में आपसे बढ़कर कोई कैसे हो सकता है? (43वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम् ।
 पितेव पुत्रस्य सखेव  सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव  सोढुम् ॥४४॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- आप प्रत्येक जीव पूज्यनीय भगवान हैं। अतः मैं आपके शरण में गिरकर आपको सादर प्रणाम करता हूं और आपसे आपकी कृपा प्राप्ति के लिए याचना करता हूं। जिस तरह पिता अपने पुत्र का अपराध, एक मित्र अपने दूसरे मित्र का अपराध तथा एक पति अपनी प्रिय पत्नी का अपराध सहन कर उसे माफ कर देता, उसी प्रकार आप कृपा करके मेरी त्रुटियों (गलतियों) को सहन कर मुझे माफ कर दीजिए। (44वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे ।
 तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥४५॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- जो पहले कभी न देखे गये आपके इस महानतम विराट विश्वरूप का दर्शन प्राप्त कर मैं हर्ष से पुलकित हो रहा हूं, किन्तु उसके साथ ही मेरा मन भयभीत भी हो रहा है। अतः आप मुझ पर कृपा करें और हे देवों के देव, हे जगन्निवास! अपना पुरुषोत्तम भगवद् स्वरूप (विष्णु रूप) पुनः दिखाएं। (45वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।
 तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्त्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥४६॥
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे विराट रूप! हे सहस्त्रभुज भगवान! मैं आपको आपकेू मुकुटधारी चतुर्भुज रूप का दर्शन करना चाहता हूं, जिसमें आप मुकुट धारण किये अपने चारों हाथों में शंख, चक्र,गदा तथा पद्म धारण किये हुए हो। मैं आपको उसी (चतुर्भुज विष्णु) रूप में देखने की इच्छा करता हूं। (46वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 श्रीभगवानुवाच :-
 मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् । 
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥४७॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- भगवान कहते हैं - हे अर्जुन! मैंने तुमसे प्रसन्न होकर अपनी अन्तरंगा शक्ति के बल पर तुम्हें इस संसार में अपने इस परम विश्वरूप का दर्शन कराया है। इसके पूर्व अन्य किसी ने इस असीम तथा तेजोमय आदि-रूप को कभी नहीं देखा था। (47वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै-र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रै: ।
 एवंरूप: शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥४८॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! तुमसे पहले मेरे इस विश्वरूप को किसी ने नहीं देखा, क्योंकि न तो मैं वेदों के अध्ययन द्वारा, न किसी यज्ञ, दान, पुण्य और न ही किसी प्रकार के कठिन तपस्या के द्वारा इस संसार में देखा जा सकता हूं, मेरे इस विश्वरूप को इस संसार में किसी के द्वारा भी नहीं देखा जा सकता। (48वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् ।
 व्यपेतभी: प्रीतमना: पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥४९॥   
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन तुम मेरे इस भयानक रूप को देखकर अत्यंत विचलित एवं मोहित हो गए हों। अब मैं इसे (विश्वरूप दर्शन को) समाप्त करता हूं। हे मेरे प्रिय भक्त! तुम अपने समस्त चिंताओं एवं भय से पुनः मुक्त हो जाओ। तुम शान्त चित्त से अब इच्छित रूप देख सकते हो। (49वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 सञ्जय उवाच :-
 इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूय: ।
 आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥५०॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- सञ्जय आगे धृतराष्ट्र से कहते हैं - अर्जुन से इस प्रकार कहने के पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने अपना असली चतुर्भुज रूप प्रकट किया और अंत में दो भुजाओं वाला अपना रूप प्रदर्शित करके भयभीत अर्जुन का धैर्य बंधाया। (50वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 51-55 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ५१-५५

Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog (Viratroop) Shlok 51-55 | भगवत गीता अध्याय श्लोक ५१-५५

 अर्जुन उवाच :-
 दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन ।
 इदानीमस्मि संवृत्त: सचेता: प्रकृतिं गत: ॥५१॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को उनके आदि (चतुर्भुजी विष्णु) रूप में देखा तो कहा - हे जनार्दन! आपके इस अति सुन्दर मानवीय रूप को देखकर मैं अब स्थिरचित्त (मेरा मन-मस्तिष्क व बुद्धि स्थिर हो चुका है) हूं और मैंने अपनी प्राकृत (सामान्य) अवस्था प्राप्त कर ली है। (51वें श्लोक)
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 श्रीभगवानुवाच :-
 सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम ।
 देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिण: ॥५२॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- अर्जुन की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण इस प्रकार कहते हैं - हे अर्जुन! तुम मेरे जिस रूप को इस समय देख रहे हो,उसे देख पाना अत्यंत दुर्लभ है। यहां तक कि देवता भी इस अत्यंत प्रिय रूप के दर्शनाभिलाषी (देखने के इच्छा लिए) के लिए तत्पर रहते हैं। (52वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 नाहं वेदैर्न तपस्या न दानेन न चेज्यया ।
 शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥५३॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- तुम अपने दिव्य नेत्रों से जिस रूप का दर्शन कर रहे हो, उसे न तो वेदों (वेदों के अध्ययन) से, न कठिन तपस्या से, न दान से और न ही पूजा-अर्चना से जाना (समझा) जा सकता है। कोई इन साधनों के द्वारा मुझे मेरे रूप (वास्तविक रूप) में नहीं देख सकता। (53वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।
 ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥५४॥  
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:-  हे अर्जुन! केवल अनन्य प्रेम व भक्ति द्वारा मुझे उस रूप में समझा जा सकता है,जिस रूप में मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं और इस प्रकार मेरा साक्षात् दर्शन भी किया जा सकता है। हे परन्तप (हे बलिष्ठ भुजाओं वाले, शत्रुओं के नाशक) अर्जुन केवल इसी विधि से तुम मेरे ज्ञान के रहस्य (अत्यंत गोपनीय ज्ञान/रहस्य) को प्राप्त कर सकते हो। (54वें श्लोक) ) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: सङ्गवर्जित: ।
 निर्वैर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्डव  ॥५५॥ 
भगवत गीता अध्याय 11 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! जो व्यक्ति सकाम कर्मों तथा मनोधर्म के कल्मष से मुक्त होकर, मेरी शुद्ध भक्ति में तत्पर रहता है, जो मेरे लिए ही कर्म करता है, जो मुझे ही अपना जीवन-लक्ष्य समझता है और जो प्रत्येक जीव से समान मैत्रिभाव रखता है, वह निश्चय ही मुझे प्राप्त करता है। (55वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 
 इस प्रकार श्रीमद्भागवत गीता का यह अध्याय "विश्वरूप दर्शन योग" समाप्त होता हुआ। इस अध्याय का सार यह है कि भगवान श्रीकृष्ण समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं और उनका रूप अनंत और असीम है। अर्जुन को भगवान के इस विराट रूप का दर्शन कराया गया ताकि वे समझ सकें कि जो युद्ध वे लड़ रहे हैं, वह केवल एक साधारण युद्ध नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य लीला का हिस्सा है। भगवान ने अर्जुन को यह भी बताया कि उन्हें केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना है और फल की चिंता किए बिना निष्काम भाव से कर्म करना है।
 इस अध्याय के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी अपने जीवन में इसी प्रकार से भगवान में विश्वास रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह भगवान की माया का एक हिस्सा है और हमें हमेशा उनके प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए।  

Vishwaroop Darshan Yog teachings |  विश्वरूप दर्शन योग की 5 सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाएँ

Vishwaroop Darshan Yog teachings |  विश्वरूप दर्शन योग की 5 सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाएँ

  श्रीमद् भगवद् गीता के 11वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन कराया। यह अध्याय गीता के सबसे महत्वपूर्ण और गूढ़ अध्यायों में से एक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अनंत, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान स्वरूप को प्रकट किया। इस अध्याय के माध्यम से अर्जुन और मानवता को महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्राप्त होती हैं, जो आज भी हमारे जीवन को मार्गदर्शित कर सकती हैं। आइए, इस अध्याय में वर्णित पाँच सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
 
1. भगवान की अनंतता और सर्वव्यापकता - पहली शिक्षा: विश्व के हर कण में भगवान का अस्तित्व है, इस सत्य को अध्याय 11 में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप के माध्यम से प्रकट किया। जब अर्जुन ने भगवान से उनके असली रूप को देखने की इच्छा जताई, तब श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य दृष्टि से उसे अपने विराट रूप का दर्शन कराया। इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड, सभी जीव-जंतु, ग्रह-नक्षत्र, देवता, और सारी सृष्टि उनके एक रूप में समाहित दिखी। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान किसी एक रूप या स्थान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे सर्वत्र हैं। हमें अपने जीवन में हर परिस्थिति में भगवान की उपस्थिति का अनुभव करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
2. समर्पण का महत्व - दूसरी शिक्षा: अर्जुन जब भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप का दर्शन करता है, तब वह उस विशाल और अद्वितीय दृश्य के सामने अपने आप को बहुत ही तुच्छ महसूस करता है। वह समझ जाता है कि उसकी क्षमता बहुत ही सीमित मात्रा में है, जो भगवान की माया और भगवान की शक्ति के सामने वह कुछ भी नहीं है। यह अनुभव अर्जुन को पूर्ण रूप से भगवान के प्रति समर्पित कर देता है। इस शिक्षा से यह सीख मिलती है कि हमें भी अर्जुन की तरह ही अपने मन से अहंकार, गर्व और भ्रम को त्यागकर भगवान के प्रति ही समर्पित होना चाहिए। समर्पण ही हमें आध्यात्मिक शक्ति और शांति प्रदान करता है
3. कर्तव्य और धर्म का पालन - तीसरी शिक्षा: इस अध्याय में अर्जुन ने भगवान से यह जानने का प्रयास किया कि उसे युद्ध करना चाहिए या नहीं। श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप में दिखाकर यह स्पष्ट किया कि यह संसार नाशवान है और जो भी हो रहा है, वह भगवान की इच्छा से हो रहा है। उन्होंने अर्जुन को अपने कर्तव्य और धर्म का पालन करने का निर्देश दिया। यह तीसरी शिक्षा हमें यह समझाती है कि जीवन में जो भी परिस्थितियाँ हों, हमें अपने कर्तव्य और धर्म का पालन बिना किसी भय या संकोच के करना चाहिए। धर्म का पालन हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है
4. समय का महत्व और विनाश की अनिवार्यता - चौथी  शिक्षा: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप में काल (समय) का स्वरूप भी दिखाया, जिसमें सभी योद्धाओं और प्राणियों का विनाश हो रहा था। उन्होंने कहा कि यह समय का चक्र है, जो हमेशा चलता रहता है और हर चीज का अंत निश्चित है। इस चौथी शिक्षा से हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जीवन में समय का बहुत महत्व है और समय के साथ-साथ परिवर्तन और विनाश अनिवार्य हैं। हमें अपने जीवन में समय का सदुपयोग करना चाहिए और इसे व्यर्थ के कार्यों में नष्ट नहीं करना चाहिए। साथ ही, हमें विनाश के डर से भयभीत नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह प्रकृति का नियम है
5. भक्ति और विश्वास का मार्ग - पांचवी शिक्षा: अध्याय 11 की 5वीं सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा यह है कि भगवान के विराट रूप को देखने के बाद अर्जुन के मन में भगवान के प्रति भक्ति और विश्वास और अधिक प्रगाढ़ हो गया। वह समझ गया कि भगवान ही इस संसार के निर्माता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। इस अध्याय से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति और विश्वास का मार्ग ही हमें भगवान के करीब ले जा सकता है। हमें भगवान पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन होना चाहिए। भक्ति से हमें आंतरिक शांति और सच्ची खुशी प्राप्त होती है

 श्रीमद् भगवद् गीता का 11वां अध्याय 'विश्वरूप दर्शन योग' हमें जीवन के गहरे रहस्यों और सत्य को समझने में मदद करता है। इस अध्याय की ये 5 शिक्षाएँ हमें यह बताती हैं कि भगवान की शक्ति और माया असीमित हैं, और हमें अपने जीवन में कर्तव्य, धर्म, भक्ति, और समय का सम्मान करना चाहिए। जब हम इन शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाते हैं, तब हम सच्चे अर्थों में भगवान के निकट पहुँच सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। इस अद्भुत ज्ञान के स्रोत से प्रेरणा लेकर, हम अपने जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं और उसे अधिक सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।

The universal form of Lord Krishna and his important message | श्रीकृष्ण का विराट रूप और उसका संदेश

The universal form of Lord Krishna and his important message | श्रीकृष्ण का विराट रूप और उसका संदेश 

 श्रीमद्भगवद्गीता, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की अमूल्य धरोहर है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। गीता का 11वां अध्याय, "विश्वरूप दर्शन योग" या "विराटरूप"  भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन की महत्ता को उजागर करता है। इस अध्याय में अर्जुन को जो दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, वह उन्हें भगवान के असंख्य रूपों का दर्शन कराती है, जिससे उन्हें समस्त संसार में भगवान की व्यापकता का बोध होता है।

अब हम इस लेख में, हम श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें अध्याय के 5 सबसे लाभदायक और प्रेरणादायक गूढ़ ज्ञान पर चर्चा करेंगे, जो न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए सहायक हैं, बल्कि जीवन में प्रेरणा का स्रोत भी बन सकते हैं।

1. भगवान के सर्वव्यापक स्वरूप के दर्शन का सौभाग्य - गूढ़ ज्ञान: अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिसमें उन्हें भगवान के अनंत रूपों का दर्शन हुआ। इस दृश्य ने यह स्पष्ट किया कि भगवान केवल किसी विशेष रूप में सीमित नहीं हैं, बल्कि वे पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। वे प्रत्येक जीव और वस्तु में निवास करते हैं, चाहे वह छोटे से छोटा कण हो या विशाल से विशाल तारा।

लाभदायक प्रेरणा:  इस ज्ञान से हमें यह समझ में आता है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान हैं और हर जीव में उनकी उपस्थिति है। यह हमें सिखाता है कि हमें प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि उनमें भी ईश्वर का निवास है। यह दृष्टिकोण जीवन को सरल और अधिक प्रेमपूर्ण बनाता है, और हमें घमंड और अहंकार से दूर रखता है।
2. मृत्यु और जीवन का अनिवार्य चक्र - गूढ़ ज्ञान: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि उनके विराट रूप में वे काल के रूप में सभी का संहार करते हैं। चाहे जीव कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, सभी को काल के चक्र में समर्पित होना पड़ता है। इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है, और सभी को अंततः मृत्यु का सामना करना पड़ता है।

लाभदायक प्रेरणा: यह ज्ञान हमें यह समझाता है कि मृत्यु एक अनिवार्य सत्य है और इसे भय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। जीवन को उसकी सम्पूर्णता में जीने और मृत्यु को स्वीकारने की प्रेरणा मिलती है। यह हमें नश्वरता का बोध कराकर जीवन के प्रत्येक क्षण को मूल्यवान बनाने के लिए प्रेरित करता है।
3. कर्तव्यपरायणता और आत्मसमर्पण - गूढ़ ज्ञान: अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन कराते समय भगवान श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि कर्म करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। अर्जुन को अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी क्रियाएं अंततः भगवान के विराट स्वरूप में विलीन हो जाती हैं। 

लाभदायक प्रेरणा: इस ज्ञान से यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। आत्मसमर्पण का यह भाव हमें अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होने से बचाता है और जीवन में सकारात्मकता बनाए रखता है।
4. समस्त जीवों के प्रति समभाव - गूढ़: ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप में विभिन्न प्रकार के जीवों और प्राणियों को समाहित किया हुआ दिखाया। इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी जीव, चाहे वे किसी भी रूप, रंग या आकार के हों, एक ही परमात्मा के अंग हैं।

लाभदायक प्रेरणा:  इस ज्ञान से यह शिक्षा मिलती है कि हमें सभी जीवों के प्रति समभाव रखना चाहिए। जाति, धर्म, रंग या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। इस समभाव से हम एक समाज का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें प्रेम, करुणा और सद्भावना का वातावरण हो।
5. अहंकार का विनाश और आत्मबोध - गूढ़ ज्ञान:  जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा, तो उनके मन में अत्यधिक भय और श्रद्धा उत्पन्न हुई। उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वे स्वयं कुछ नहीं हैं और जो कुछ भी हो रहा है, वह भगवान की लीला है। यह अनुभव अर्जुन के अहंकार का विनाश कर देता है और उन्हें आत्मबोध की ओर प्रेरित करता है।

लाभदायक प्रेरणा:  यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि अहंकार का त्याग करना आवश्यक है, क्योंकि अहंकार हमें सत्य से दूर ले जाता है। आत्मबोध का मार्ग अहंकार के त्याग से ही प्रशस्त होता है। जब हम अहंकार का त्याग कर देते हैं, तो हमें वास्तविकता का बोध होता है और हम ईश्वर के निकट जाते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता का 11वां अध्याय, "विश्वरूप दर्शन योग," जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गूढ़ ज्ञान प्रदान करता है। यह अध्याय न केवल भगवान की व्यापकता का बोध कराता है, बल्कि जीवन और मृत्यु, कर्तव्य, समभाव, और अहंकार के विनाश के माध्यम से आत्मबोध की दिशा में भी हमारा मार्गदर्शन करता है। इन 5 सबसे लाभदायक और प्रेरणादायक गूढ़ ज्ञानों को आत्मसात करके हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं, जो न केवल हमें आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाएगी, बल्कि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाएगी। इस प्रकार, श्रीमद्भगवद्गीता का यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि हम जीवन को सही दृष्टिकोण से देखें और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर के सर्वव्यापक स्वरूप का अनुभव करें। 

Vishwaroop Darshan Yog Summary | गीता के 11वें अध्याय का सार

Vishwaroop Darshan Yog 8Summary | गीता के 11वें अध्याय का सार 

 विश्वरूप दर्शन योग (विराटरूप) का अध्याय हमें यह सिखाता है कि भगवान की महिमा और उनका स्वरूप हमारी समझ और कल्पना से परे है। यह अध्याय अर्जुन को यह बताने का प्रयास करता है कि भगवान श्रीकृष्ण न केवल उसके मित्र और मार्गदर्शक हैं, बल्कि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के संचालक हैं। विराटरूप के दर्शन के बाद, अर्जुन का विश्वास और भी गहरा हो जाता है। वह समझ जाता है कि भगवान के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है और वे ही सम्पूर्ण जगत के रचयिता और विनाशक हैं। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में भगवान के दिव्य स्वरूप को समझने और उनकी महिमा का अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए।

 अंततः, श्रीमद् भागवत गीता का 11वां अध्याय "Bhagwat Gita Vishwaroop Darshan Yog" हमें यह याद दिलाता है कि भगवान का स्वरूप हमारे सभी भौतिक और मानसिक सीमाओं से परे है। हमें उनके विराटरूप का अनुभव करने के लिए अपनी आस्था और श्रद्धा को बढ़ाना चाहिए और जीवन के हर क्षेत्र में उनकी महिमा को समझने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार, हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और भगवान के साथ अपने संबंध को और भी प्रगाढ़ कर सकते हैं।

What is  the Vishwaroop Darshan Yog  | गीता के 11वें अध्याय का मुख्य संदेश क्या है?

Vishwaroop Darshan Yog - FAQ | गीता के 11वें अध्याय का मुख्य संदेश क्या है?

 श्रीमद्भगवद्गीता का 11वां अध्याय "भगवत  गीता विश्वरूप दर्शन योग" (विराटरूप) वह अध्याय है जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपनी विराट (अनंत) रूप की दिव्य दृष्टि प्रदान की। इस अध्याय में भगवान ने अर्जुन को ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, और सभी देवताओं का संपूर्ण रूप दर्शाया, जो उनके असीम शक्तियों और अनंत स्वरूप को दर्शाता है। इस लेख में हम इस अध्याय से जुड़े 50 महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर जानेंगे, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि आधुनिक समय में भी हमारे जीवन के मार्गदर्शक हो सकते हैं।

 श्रीमद्भगवद्गीता का 11वां अध्याय, विश्वरूप दर्शन योग, एक अनूठा अध्याय है जो हमें भगवान की विराट और अनंत शक्ति की गहराई को समझने का अवसर प्रदान करता है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को न केवल दिव्य दृष्टि प्रदान की, बल्कि जीवन और कर्म के गहरे अर्थ को भी स्पष्ट किया। इन 50 प्रमुख प्रश्नों और उनके उत्तरों के माध्यम से, हम समझ सकते हैं कि इस अध्याय की शिक्षाएँ हमारे जीवन में कैसे उपयोगी हो सकती हैं और हमें किस प्रकार की दृष्टिकोण और मानसिकता अपनानी चाहिए। अब हमारी मुलाकात श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय  12 "भक्तियोग " में होगी, तब तक के लिए धन्यवाद एवं जय श्रीकृष्ण!

1. भगवत गीता विश्वरूप दर्शन योग क्या है? 
ॐ: गीता में विश्वरूप दर्शन योग वह योग है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराया। इस योग में, भगवान ने यह दर्शाया कि वे ही समस्त सृष्टि के कर्ता, धर्ता, और संहारक हैं।   
2. गीता के 11वें अध्याय विश्वरूप दर्शन योग में कितने श्लोक हैं? 
ॐ: गीता के 11वें अध्याय में कुल 55 श्लोक हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन और उससे संबंधित घटनाओं का वर्णन करते हैं।  
3. भगवद गीता के 11वें अध्याय का महत्व क्या है? 
ॐ: भगवद गीता का अध्याय 11, जिसे विश्वरूप दर्शन योग कहा जाता है। इस अध्याय का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया। इस अध्याय में, श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप का प्रदर्शन किया, जो अनंत और समस्त ब्रह्मांडों को समाहित करता है। यह योग अर्जुन के संशयों को दूर करने के लिए था, जिससे उसे धर्म का वास्तविक स्वरूप समझ आ सके।
4. अर्जुन ने विश्वरूप दर्शन के लिए भगवान श्रीकृष्ण से क्या पूछा? 
ॐ: अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके विशाल, सार्वभौमिक रूप को देखने की प्रार्थना की, ताकि वे भगवान के असली स्वरूप का अनुभव कर सकें। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 3)
5. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विश्वरूप क्यों दिखाया? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप इसलिए दिखाया ताकि वह यह समझ सके कि भगवान का स्वरूप अनंत और वे सर्वव्यापी हैं। यह दर्शन अर्जुन की भक्ति को स्थिर करने और उसके संकोच को दूर करने के लिए था।
6. गीता के 11वें अध्याय विश्वरूप दर्शन योग का सबसे शक्तिशाली श्लोक कौन सा है? 
ॐ:  गीता के 11वें अध्याय का सबसे शक्तिशाली श्लोक 11.32 है, जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं: "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो" (अर्थात्, मैं काल हूँ, जो संसार का नाश करने वाला है)। यह श्लोक भगवान के समय स्वरूप को दर्शाता है।
7.  श्रीकृष्ण ने विश्वरूप दर्शन योग में क्या समझाया? 
ॐ: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को "विश्वरूप दर्शन योग" में बताया कि उनका यह विराट रूप सभी समयों का, सभी जीवों का और सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। वे ही सृष्टि के जन्मदाता और विनाशकर्ता हैं। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 32-34)
8.  श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप कब और क्यों दिखाया? 
ॐ: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्ध के समय विश्वरूप दिखाया, जब अर्जुन युद्ध को लेकर संशय में था। उन्होंने यह रूप अर्जुन को इसलिए दिखाया ताकि अर्जुन समझ सके कि युद्ध धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक है और भगवान का विराट रूप किसी भी प्रकार के पाप और पुण्य से परे है।  
9.  भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप क्या है? 
ॐ:  विराटरूप भगवान श्रीकृष्ण का वह स्वरूप है जिसमें उन्होंने समस्त सृष्टि को एक साथ दिखाया। इसमें ब्रह्मांड, देवता, दानव, और सभी जीवित प्राणियों के साथ-साथ समय और स्थान भी समाहित हैं। यह रूप भगवान की अनंत और सर्वशक्तिमान सत्ता का प्रतीक है।
10. अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर किस प्रकार की प्रतिक्रियाएं दीं? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर अर्जुन ने भय, आश्चर्य और समर्पण की मिश्रित प्रतिक्रियाएं दीं। उन्होंने इस अद्वितीय रूप की अद्भुतता को समझते हुए भगवान के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट की, साथ ही उन्होंने इस रूप से भयभीत होकर भगवान से उसे वापस लेने की प्रार्थना भी की। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और  श्लोक 45)
11. श्रीकृष्ण के विश्वरूप का वर्णन कैसे किया गया है? 
ॐ: श्रीकृष्ण का विश्वरूप अनंत मुखों, आंखों, और हाथों वाला था। उनका यह रूप सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें असंख्य देवताओं, राक्षसों, और विभिन्न जीवों का समावेश है। (श्रीमद् भगवद् गीता  अध्याय 11 और श्लोक 10-11)
12. अर्जुन को विश्वरूप दर्शन का अधिकार क्यों मिला? 
ॐ: अर्जुन को यह अधिकार इसलिए मिला क्योंकि वह भगवान श्रीकृष्ण का सच्चा भक्त था और उन्होंने अपने कर्तव्यों के पालन के लिए भगवान से सच्चाई का अनुभव करने की विनती की थी। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 4-8)
13. गीता के 11वें अध्याय का प्रसिद्ध मंत्र क्या है? 
ॐ: गीता  के 11वें अध्याय का प्रसिद्ध मंत्र "विश्वरूप दर्शन" का मंत्र है जिसमें अर्जुन भगवान के विराट रूप को देखकर प्रार्थना करता है: "त्वमादिदेव: पुरुष: पुराणस..." (अध्याय 11, श्लोक 38)
14. विश्वरूप दर्शन में कितने मुख और हाथ होते हैं? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विश्वरूप में अनगिनत मुख, आंखें और हाथ होते हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के विभिन्न जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 10-11)
15. विश्वरूप दर्शन में अर्जुन को क्या अनुभव हुआ? 
ॐ: अर्जुन ने भगवान के विराट रूप में सम्पूर्ण सृष्टि को समाहित देखा। उन्होंने जीवन और मृत्यु के चक्र को एक साथ देखा और भगवान की असीमित शक्तियों का अनुभव किया। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  11 और श्लोक 16-17)
16. अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विशाल रूप के बारे में क्या कहा? 
ॐ: अर्जुन ने कहा कि भगवान का यह विशाल रूप इतना असीमित और अद्भुत है कि वह इसके भय और प्रभाव से स्तब्ध हो गए। उन्होंने इसे भगवान की असीम शक्ति का प्रदर्शन माना। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 20-23)
17. अर्जुन ने विश्वरूप दर्शन के बाद क्या प्रश्न पूछे? 
ॐ: अर्जुन ने विश्वरूप दर्शन के बाद भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि उनके इस विराट रूप का उद्देश्य क्या है और वे कौन हैं? उन्होंने इस रूप के पीछे के रहस्य को समझने की इच्छा व्यक्त की। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 31)
18. अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर श्रीकृष्ण ने कैसे दिया? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि वे काल का स्वरूप हैं और उनके इस विराट रूप में सभी का अंत समाहित है। उन्होंने अर्जुन को उसका कर्तव्य निभाने का आदेश दिया। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11, और  श्लोक 32-34)
19. अर्जुन ने विश्वरूप देखने के बाद किस प्रकार की भक्ति की? 
ॐ: अर्जुन ने भगवान के विराट रूप के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त की। उन्होंने भगवान से माफी मांगी और उन्हें भगवान का सच्चा भक्त मानते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करने की कसम खाई। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 41-44)
20. अर्जुन की शंका का समाधान कैसे हुआ? 
ॐ: अर्जुन की शंका का समाधान भगवान श्रीकृष्ण ने उनके विराट रूप के दर्शन के द्वारा किया। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि वे ही समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं और सभी कार्य उन्हीं के द्वारा संचालित होते हैं। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11. श्लोक 32-33)
21. विश्वरूप दर्शन योग का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
ॐ:  विश्वरूप दर्शन योग का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि भगवान सम्पूर्ण ब्रह्मांड के निर्माता और संचालक हैं। उनका विराट रूप यह दिखाता है कि जीवन और मृत्यु, सृजन और विनाश सभी भगवान के अधीन हैं। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 38-40)
22. श्रीकृष्ण का विराट रूप किसका प्रतीक है? 
ॐ:  श्रीकृष्ण का विराट रूप सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। यह रूप उनके सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वगामी स्वभाव का प्रतीक है, जो सृष्टि के प्रत्येक हिस्से में व्याप्त है। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 38-40)
23. विश्वरूप दर्शन का मुख्य संदेश क्या है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन का मुख्य संदेश यह है कि भगवान सब कुछ हैं, और सब कुछ भगवान में ही समाहित है। इस दर्शन से अर्जुन को अहंकारमुक्त होकर भगवान की महत्ता को समझने का अवसर मिला। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11और श्लोक19)
24. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप क्यों दिखाया? 
ॐ:  श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप इसलिए दिखाया ताकि वह भगवान की अनंतता और सर्वशक्तिमानता का बोध कर सके। इससे अर्जुन को यह समझने में सहायता मिली कि भगवान ही सृष्टि के आधार हैं। इसलिए अर्जुन को केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
25. विश्वरूप दर्शन से हमें क्या शिक्षा मिलती है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान के प्रति समर्पण और भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है। हमें अपने कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित कर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए और जीवन में मोह-माया से ऊपर उठकर सत्य की प्राप्ति करनी चाहिए। 
26. श्रीकृष्ण के विराट रूप में क्या सन्देश छिपा है? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप में यह सन्देश छिपा है कि भगवान अनंत और सर्वशक्तिमान हैं। वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता और संचालक हैं। उनके विराट रूप का दर्शन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में विनम्रता, भक्ति और समर्पण को अपनाना चाहिए।
27. विश्वरूप दर्शन योग में भक्ति का क्या महत्व है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग में भक्ति का अत्यधिक महत्व है क्योंकि बिना भक्ति के भगवान के विराट रूप को समझना संभव नहीं है। भक्ति ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम भगवान की अनंतता और सर्वशक्तिमानता को समझ सकते हैं और उनके साथ एकात्म हो सकते हैं।
28. अर्जुन को दिव्य दृष्टि कैसे मिली? 
ॐ: अर्जुन को दिव्य दृष्टि श्रीकृष्ण की कृपा से मिली। जब अर्जुन ने भगवान से उनके विराट रूप का दर्शन करने की प्रार्थना की, तब श्रीकृष्ण ने उसे दिव्य दृष्टि प्रदान की ताकि वह उनके अनंत और विराट स्वरूप को देख सके।
29. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि क्यों दी? 
ॐ: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि इसलिए दी ताकि वह उनके विराट और अनंत स्वरूप का दर्शन कर सके। सामान्य दृष्टि से यह विराट रूप देखना संभव नहीं था, इसलिए भगवान ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
30. दिव्य दृष्टि से अर्जुन ने क्या देखा? 
ॐ: दिव्य दृष्टि से अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखा, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड और सभी जीव-जन्तु समाहित थे। उसने भगवान के अनंत रूप, उनकी अनगिनत भुजाओं, मुखों और रूपों को देखा जो सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
31. अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर क्या महसूस किया? 
ॐ: अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर एक साथ भय और भक्ति का अनुभव किया। उन्होंने विराट रूप में श्रीकृष्ण की असीमित शक्तियों और सभी दिशाओं में फैलते हुए तेज को देखकर अपना आत्मसमर्पण किया। यह दृश्य अर्जुन के लिए असाधारण और भयावह था, लेकिन इसे देखकर उन्होंने भगवान की महिमा को पूर्ण रूप से समझा।
32. अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप के बारे में क्या कहा
ॐ: अर्जुन ने श्रीकृष्ण के विराट रूप के बारे में कहा कि इस अद्वितीय रूप को देखकर उनके मन में डर और समर्पण की भावना जाग उठी। उन्होंने भगवान को विश्व का स्रष्टा, पालक और संहारक के रूप में स्वीकार किया और इस विराट रूप की महिमा का वर्णन किया। अर्जुन ने यह भी कहा कि इस रूप का दर्शन केवल अत्यधिक भक्तों के लिए ही संभव है।
33. विश्वरूप दर्शन के बाद अर्जुन का मनोभाव कैसा था? 
ॐ: भगवान का विराट रूप देखने के बाद अर्जुन का मन भय और आश्चर्य से भर गया। उन्होंने भगवान के सर्वशक्तिमान रूप को देखकर अपने आप को तुच्छ और असहाय महसूस किया। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 24-25) 
34. विश्वरूप दर्शन से अर्जुन को क्या सिखने को मिला? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन से अर्जुन को यह सिखने को मिला कि भगवान सर्वशक्तिमान हैं और उनकी कृपा से ही सब कुछ संभव है। अर्जुन को यह भी सिखने को मिला कि उसे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए और परिणाम की चिंता भगवान पर छोड़ देनी चाहिए।
35. अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप का दर्शन करने के बाद क्या निर्णय लिया? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप का दर्शन करने के बाद अर्जुन ने भगवान से क्षमा याचना की और उनकी शरण में आकर अपने कर्तव्यों का पालन करने का संकल्प लिया। उसने भगवान की महिमा और उनकी अनंतता को समझते हुए अपने संदेहों का समाधान पाया।  
36. श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन के बाद अर्जुन का मनोबल कैसे बदला? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन के बाद अर्जुन का मनोबल मजबूत हुआ। उसे भगवान की अनंतता और सर्वशक्तिमानता का बोध हुआ, जिससे उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का साहस और प्रेरणा मिली।
37. विश्वरूप दर्शन योग की तुलना कर्म योग से कैसे की जा सकती है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग और कर्म योग दोनों ही गीता के महत्वपूर्ण अध्याय हैं, परंतु उनकी शिक्षाएं अलग हैं। कर्म योग में भगवान ने निस्वार्थ कर्म का महत्व बताया है, जबकि विश्वरूप दर्शन योग में भगवान ने अपने विराट रूप के माध्यम से अपनी सर्वव्यापीता और सर्वशक्तिमानता का प्रदर्शन किया। दोनों योग जीवन में भक्ति और कर्म के माध्यम से भगवान की ओर बढ़ने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
38. सांख्य योग और विश्वरूप दर्शन योग में क्या समानताएं हैं? 
ॐ: सांख्य योग और विश्वरूप दर्शन योग में प्रमुख समानता यह है कि दोनों ही योग भगवान की अद्वितीय महिमा और उनकी वास्तविकता को समझने पर जोर देते हैं। सांख्य योग में भगवान ने ज्ञान का महत्व बताया, जबकि विश्वरूप दर्शन योग में भगवान ने अपने विराट रूप को प्रकट कर अपनी सर्वशक्तिमानता का अनुभव कराया। दोनों योग अर्जुन को आत्म-ज्ञान और भगवान के सर्वव्यापी स्वरूप का दर्शन कराते हैं।
39. भक्तियोग और विश्वरूप दर्शन योग के बीच क्या संबंध है? 
ॐ: भक्तियोग और विश्वरूप दर्शन योग के बीच संबंध यह है कि भक्तियोग में भगवान की भक्ति और प्रेम के माध्यम से उन्हें पाने का मार्ग बताया गया है, जबकि विश्वरूप दर्शन योग में भगवान की अद्वितीय और असीमित महिमा का दर्शन कराकर भक्त को भगवान के प्रति गहरी भक्ति की प्रेरणा दी गई है। भक्तियोग भगवान के विराट रूप की भक्ति का ही एक रूप है।
40. भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप क्या दर्शाता है? 
ॐ: भगवद्गीता के अध्याय "विश्वरूप दर्शन योग" में भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप यह दर्शाता है कि भगवान वे ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड के कर्ता-धर्ता और संचालक हैं। यह योग हमें अहंकार छोड़कर भगवान की असीम शक्ति और महानता को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। (श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 11 और श्लोक 38-40) 

41. विश्वरूप दर्शन योग का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व क्या है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहन है। यह योग बताता है कि भगवान श्रीकृष्ण ही परम सत्ता हैं और सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान हैं। यह योग व्यक्ति को यह एहसास कराता है कि ईश्वर की शक्ति अनंत है और हमें अपने कर्मों का सही मार्ग चुनना चाहिए।   
42. अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके विराट रूप को वापस लेने की प्रार्थना क्यों की? 
ॐ: अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके विराट रूप को वापस लेने की प्रार्थना इसलिए की क्योंकि वह इस अद्वितीय रूप को देखकर भयभीत हो गए थे। उन्हें यह रूप अत्यधिक शक्तिशाली और उनके लिए अप्रत्याशित लगा। इसलिए उन्होंने भगवान से अपने सामान्य रूप में वापस आने की प्रार्थना की, ताकि वे पुनः अपने शांतिपूर्ण रूप में श्रीकृष्ण को देख सकें।
43. गीता के 11वें अध्याय विश्वरूप दर्शन योग का मूल उपदेश क्या है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग का मूल उपदेश यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ही सर्वोच्च सत्ता हैं और उन्हें पहचानना और उनकी शरण में जाना ही मोक्ष का मार्ग है। यह योग अर्जुन को कर्म, भक्ति, और ज्ञान का वास्तविक अर्थ समझाने के लिए था।
44. विश्वरूप दर्शन योग ने अर्जुन के सोचने के तरीके में क्या बदलाव किया? 
: विश्वरूप दर्शन योग ने अर्जुन के सोचने के तरीके में गहरा बदलाव किया। पहले अर्जुन युद्ध को लेकर संकोच में थे, लेकिन भगवान के विराट रूप को देखकर उन्हें यह समझ आया कि सभी घटनाएं भगवान की इच्छा और योजना के तहत ही होती हैं। उन्होंने भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को अपनाया और युद्ध में अपने धर्म का पालन करने का संकल्प लिया।
45. श्रीकृष्ण के विराट रूप का अंतिम संदेश क्या है? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप का अंतिम संदेश यह है कि सभी जीव और सम्पूर्ण सृष्टि भगवान की ही अभिव्यक्ति है। भगवान सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सम्पूर्ण ब्रह्मांड के आधार हैं। हमें भगवान की महिमा को समझकर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए।
46. विश्वरूप दर्शन योग से जीवन में क्या बदलाव आते हैं?
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग से जीवन में यह बदलाव आता है कि व्यक्ति भगवान की विराटता और अनंतता को समझने लगता है। इससे व्यक्ति की अहंकार, मोह और ममता समाप्त होती है और उसे जीवन में समर्पण और भक्ति की महत्ता का बोध होता है।
47. श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन से भक्तों को क्या मिलता है? 
ॐ: श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन से भक्तों को आत्मज्ञान और भगवान की सर्वव्यापकता का बोध होता है। इससे भक्तों की भक्ति और विश्वास और भी प्रबल हो जाती है और वे निष्काम भाव से कर्म करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
48. श्रीमद्भगवद्गीता में विश्वरूप दर्शन योग क्यों महत्वपूर्ण है?
ॐ: श्रीमद्भगवद्गीता में विश्वरूप दर्शन योग महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह अध्याय भगवान की अनंतता, सर्वशक्तिमानता और सर्वव्यापकता को दर्शाता है। यह हमें भगवान की महिमा और उनके विराट रूप को समझने में सहायता करता है।
49. अर्जुन के अनुभवों से जीवन में क्या सिखने को मिलता है? 
ॐ: अर्जुन के अनुभवों से यह सिखने को मिलता है कि जीवन में किसी भी कठिन परिस्थिति में भगवान का विश्वास नहीं छोड़ना चाहिए। अर्जुन ने जब भगवान के विराट रूप का दर्शन किया, तो उन्होंने यह समझा कि भगवान ही जीवन के सभी कार्यों के मूल में हैं और हमें अपने कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए।
50. विश्वरूप दर्शन योग से प्रेरणा कैसे ली जा सकती है? 
ॐ: विश्वरूप दर्शन योग से यह प्रेरणा ली जा सकती है कि भगवान की महिमा असीमित है और वे सर्वव्यापी हैं। इस योग के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि भगवान की शक्ति को सीमित नहीं किया जा सकता और हमें जीवन में सदा उनके प्रति भक्ति और समर्पण की भावना रखनी चाहिए।

🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩🚩🚩


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