Bhagwat Gita Arjun Vishad Yog - Shlok 2

 


Shrimad Bhagwat Geeta Arjun Vishad Yog -  | श्रीमद्भागवत गीता अर्जुन विषाद योग - श्लोक 2



  सञ्जय उवाचः- 
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
  आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥  श्लोक (2)
 श्लोक का अर्थ:  
संजय ने कहा - उस समय राजा दुर्योधन ने पांडवों की सेना को युद्ध के लिए सुव्यवस्थित देखकर अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा।
 सार्थक व्याख्या:  इस श्लोक में दुर्योधन के मन की चिंता और असुरक्षा का भाव प्रकट होता है। पांडवों की सेना को देखकर दुर्योधन को अपनी शक्ति और विजय को लेकर संदेह होता है, जिससे वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाता है। यहाँ दुर्योधन का व्यवहार उसकी चिंता और भय को दर्शाता है। यह श्लोक यह सिखाता है कि किसी भी युद्ध या संघर्ष में केवल बाहरी ताकत ही महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि आत्मविश्वास और नैतिकता भी आवश्यक होते हैं।
  महत्वपूर्ण संदेश:  भगवद गीता के इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बाहरी शक्ति या शक्ति के दिखावे से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारे भीतर का आत्मबल और नैतिकता है। केवल बाहरी साधनों पर निर्भर रहने से हम अपने लक्ष्य में असफल हो सकते हैं। हमें आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ना चाहिए। संघर्ष के समय डर और संदेह को दूर करके, आत्म-नियंत्रण और सही मार्गदर्शन को अपनाना चाहिए। यही सफलता की कुंजी है।
ॐ श्रीमद्भागवत गीता - 0m Shrimad Bhagwat Geeta

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