Shrimad Bhagwat Geeta: आत्मसंयम योग से जीवन में शांति कैसे पाएं? | Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 6 in Hindi
जय श्रीकृष्ण! मित्रों श्रीमद्भगवद्गीता, जिसे भगवद्गीता के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय धर्म और दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह महाभारत का एक हिस्सा है और इसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संकलन है। गीता का प्रत्येक अध्याय एक विशेष योग की व्याख्या करता है, और इसमें मनुष्य की आत्मा, जीवन, और धर्म के गहरे रहस्यों का वर्णन है, उन्हीं में से एक है भगवत गीता का छठा अध्याय - आत्मसंयमयोग।
Bhagwat Geeta Adhyay 6 in Hindi | भगवत गीता अध्याय 6 हिंदी में!
अध्याय 6, जिसे आत्मसंयम योग के नाम से जाना जाता है, ध्यान और आत्मसंयम पर विशेष जोर देता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने आत्म-संयम, ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने की विधि सिखाई है। आइए हम Bhagwat Geeta Adhyay 6 in Hindi के इस लेख के माध्यम से अध्याय 6 के मुख्य भागों, शिक्षाओं और इसके महत्व को विस्तार से समझते हैं।
Bhagwat Geeta Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog) | आत्मसंयम योग का संपूर्ण सार
आत्मसंयम योग श्रीमद्भगवद्गीता का छठा अध्याय है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण आत्म-संयम, ध्यान और आत्म-शुद्धि के माध्यम से आत्मा की मुक्ति और परमात्मा के साथ एकत्व की प्राप्ति की प्रक्रिया का वर्णन करते हैं। इस योग में मनुष्य को अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने, ध्यान करने और आत्मा की शुद्धि के लिए विभिन्न साधनाओं को अपनाने की सलाह दी गई है।इस योग का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को आत्म-ज्ञान और आत्म-शांति की ओर अग्रसर करना है। इसके माध्यम से हर व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।
What is Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog)? | आत्मसंयम योग क्या है?
आत्मसंयम योग का अर्थ है स्वयं के मन, इच्छाओं और इंद्रियों पर संयम रखना। यह एक ऐसी विधि है जो आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में व्यक्ति को अग्रसर करती है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मसंयम योग का विस्तार से वर्णन किया है और इसे आत्मसाक्षात्कार का महत्वपूर्ण मार्ग बताया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मसंयम योग को अध्याय 6 में विशेष रूप से वर्णित किया गया है। इसे ध्यान योग भी कहा जाता है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मसंयम के बिना सच्ची शांति और ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है।
Import of Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog) | आत्मसंयम योग का महत्व
आत्मसंयम योग का महत्व भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम की उच्चतम अवस्था तक पहुंचाने में सहायक होता है। इस योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन, इंद्रियों और विचारों को नियंत्रित कर सकता है, जिससे उसे जीवन में शांति, संतुलन और समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को नियंत्रित करना चाहिए। मनुष्य का मन अत्यधिक चंचल और प्रबल होता है, और इसे नियंत्रित करना एक कठिन कार्य है। लेकिन आत्मसंयम के अभ्यास से यह संभव है। उन्होंने कहा है कि "मन ही मनुष्य का मित्र है और मन ही मनुष्य का शत्रु है।" इस लिए मन को संयम यानी नियंत्रण में रखना आवश्यक है। आत्मसंयम योग के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
1. मन का नियंत्रण: आत्मसंयम योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर सकता है। मन का नियंत्रण करने से व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। |
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2. ध्यान और साधना: इस योग में ध्यान और साधना का विशेष महत्व है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति आत्म-शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होता है। |
3. आत्म-शांति: आत्मसंयम योग के माध्यम से व्यक्ति आत्म-शांति और आत्म-तृप्ति प्राप्त कर सकता है। यह योग मन और आत्मा की शुद्धि में सहायक होता है। |
4. जीवन में संतुलन: आत्मसंयम योग व्यक्ति को उसके अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह योग व्यक्ति को उसके जीवन के उद्देश्यों एवं लक्ष्य को समझने और उन्हें प्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन करता है। |
5.आध्यात्मिक उन्नति: आत्मसंयम योग व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर कराता है। इसके माध्यम से व्यक्ति परमात्मा के साथ एकत्व की प्राप्ति कर सकता है यानी परमात्मा के साथ जुड़ सकता है। |
Bhagwat Geeta Self-Restraint Yoga ( Atmsanyam Yog) Shloks| भगवत गीता आत्मसंयम योग के श्लोक
आध्यात्मिकता और योग के क्षेत्र में आत्मसंयम योग का विशेष स्थान है। यह एक ऐसा मार्ग है जो आत्मा की शक्ति और उसके नियंत्रण को जाग्रत करता है। इस योग के माध्यम से व्यक्ति अपनी अंतर्निहित शक्तियों को पहचानकर जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकता है। आइए फिर हम सब भगवत गीता के इस छठे अध्याय को जानने का प्रयास करें।
Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog Shlok 1-0 | भगवत गीता अध्याय 6 श्लोक १-१०
श्रीभगवानुवाच :- अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: । स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - जो पुरुष अपने कर्मफल अर्थात् किसी भी कार्य के परिणाम के प्रति अनासक्त व मोहित नहीं है अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो लाभ-हानि, सुख-दुःख तथा प्रेम-द्वेष से रहित है और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है, वास्तविक रूप में वही संन्यासी और असली योगी है। बल्कि वह नहीं, जो न तो अग्नि जलाता है और न ही कर्म करता है। (प्रथम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव । न ह्यसन्न्यस्तङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे पाण्डुपुत्र, हे अर्जुन! तुम ये जान लो कि जिसे संन्यास कहते हैं, उसे ही तुम योग अर्थात् परब्रह्म से युक्त यानी परमात्मा से जुड़ा हुआ समझो इन्द्रियतृप्ति (अपने सुख) के लिए अपनी इच्छाओं को त्यागे बिना कोई भी योगी बन नहीं सकता। (द्वितीय श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते । योगारूढस्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते ॥३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- अष्टांग योग के नवसाधक के लिए कर्म ही साधन कहलाता है और योगसिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक क्रियाकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है। (तृतीय श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते । सर्वसङ्कल्पसन्न्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जब कोई मनुष्य इस लोक (संसार) की समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग करके न तो इन्द्रियतृप्ति (इन्द्रियसुख की पूर्ति हेतु) के लिए कार्य करता है और न ही सकामकर्मों यानी कर्म फलों की आशा या उद्देश्य से किया जाने वाले कार्यों में प्रवृत्त होता है, तो वह योगारूढ व योग में स्थित योगी कहलाता है। (चतुर्थ श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ॥५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- मनुष्य को यह चाहिए कि वह अपने मन की सहायता से अपना उद्धार स्वयं करे और अपने आपको नीचे न गिरने दे। यह मन बद्धजीव (बुद्धिजीवी मनुष्य) का मित्र भी होता है और शत्रु भी। (पंचम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः । अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ॥६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जिस व्यक्ति ने अपने मन पर विजय प्राप्त कर लिया है, उसके लिए उसका मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो व्यक्ति अपने मन पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता है उसके लिए तो उसका मन ही सबसे बड़ा शत्रु बना रहता है। (षष्ठम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: । शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयो: ॥७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जिसने भी अपने मन को जीत लिया है यानी अपने मन को वश (नियंत्रण) में कर पाने में समर्थ हो पाया है, उसने तो पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने परम शान्ति प्राप्त कर ली है। ऐसे योगी पुरुष के लिए सुख-दुःख एवं सर्दी-गर्मी तथा मान-अपमान ये सभी एक समान होता है। (सप्तम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: । युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्ट्राश्मकाञ्चन: ॥८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- ऐसा व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार यानी आत्मज्ञान को प्राप्त हुआ तथा योगी कहलाता है, जो व्यक्ति अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया सन्तुष्ट रहता है। ऐसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेंद्रिय कहलाता है। ऐसा व्यक्ति सभी वस्तुओं को एकसमान देखता है - चाहे वह वस्तु कोई कंकड़-पत्थर हो या कोई सबसे बहुमूल्य पदार्थ सोना (स्वर्ण) ही क्यों न हो! (अष्टम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु । साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों यानी सबका भला चाहने वाले लोगों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईर्ष्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों, पुण्यात्माओं एवं पापियों को समभाव से देखता है, तो वह और भी उन्नत (विशेष या मनुष्यों में सबसे आगे बढ़ा हुआ) माना जाता है। (नवम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: । एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: ॥१०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- योगी पुरुष को चाहिए कि वह सदैव अपने शरीर, मन तथा आत्मा को परमात्मा में लगाए, एकान्त स्थान में रहे और बड़ी सावधानीपूर्वक अपने मन को वश में करे। उसे इस भौतिक जगत की सभी प्रकार की आकांक्षाओं तथा संग्रभाव (किसी भी वस्तुओं जैसे कि धन-दौलत जैसी भौतिक वस्तुओं को एकत्रित करने की प्रवृत्ति) इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए। (दशम श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog Shlok 11-20 | भगवत गीता अध्याय 6 श्लोक ११-२०
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: । नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥११॥तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय । उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥१२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- योग के अभ्यास के लिए योगी एकान्त स्थान में जाकर भूमि पर कुशा बिछा दे और फिर उसे मृगछाला से ढके तथा ऊपर से मुलायम वस्त्र बिछा दे। आसान न तो बहुत ऊंचा हो और न ही बहुत नीचा हो। यह पवित्र स्थान में स्थित होनाचाहिए। साथ में योगी को चाहिए कि वह इस पर दृढ़तापूर्वक बैठे और मन, इन्द्रियों तथा कर्मों को वश में करते हुए तथा मन को एक बिंदु पर स्थिर करके हृदय को शुद्ध करने के लिए योगाभ्यास करे। (11वें-12वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: । सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥१३॥ प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: । मनः संयम्य मुच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ॥१४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- योगाभ्यास करने वाले पुरुष को चाहिए कि वह अपने शरीर, गर्दन तथा सिर को सीधा रखे और नाक के अगले सिरे पर अपनी दृष्टि लगाए। इस प्रकार वह अविचलित तथा दमित मन से, भयरहित, विषयीजीवन से पूर्णतया मुक्त होकर अपने हृदय में मेरा चिंतन करे और मुझे ही अपना चरम लक्ष्य (ब्रह्म-प्राप्ति का लक्ष्य) बनाए। (13वें-14वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: । शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥१५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- इस प्रकार शरीर, मन तथा कर्म में निरंतर संयम का अभ्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी पुरुष को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर परमधाम की प्राप्ति होती है। (15वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: । न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥१६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है अथवा भोजन न करने वाला व्यक्ति, जो अधिक सोता है अथवा पर्याप्त नहीं सोता अथवा रातभर जागते रहने वाला व्यक्ति के लिए उसके योगी बनने की कोई भी संभावना नहीं है। (16वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥१७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों (दुःखों व कष्टों को) को नष्ट कर सकता है। (17वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते । निस्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥१८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जब योगी योगाभ्यास द्वारा अपने मानसिक क्रियाकलापों को वश में कर लेता है और अध्यात्म में स्थित हो जाता है अर्थात् समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो जाता है, इस प्रकार तब वह योग में सुस्थिर कहा जाता है। (18वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा समृता । योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मन: ॥१९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी पुरुष का मन उसके वश में होता है, वह आत्मतत्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है। (19वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया । यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥२०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:-सिद्धि की अवस्था (समाधि के दौरान) में मनुष्य का मन योगाभ्यास के द्वारा भौतिक मानसिक क्रियाओं से पूर्णतया संयमित हो जाता है। (20वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog Shlok 21-30 | भगवत गीता अध्याय 6 श्लोक २१-३०
सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् । वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वत: ॥२१॥ यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः । यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥२२॥ तं विद्याद्दु:खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् ॥२३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- इस सिद्धि की विशेषता यह है कि मनुष्य शुद्ध मन से स्वयं (अपने आप को) को देख सकता है और अपने आप (स्वयं) में ही आनंद उठा सकता है। उस आनंदमयी स्थिति में वह दिव्य इन्द्रियों द्वारा असीम दिव्यसुख में स्थित रहता है। इस प्रकार स्थापित मनुष्य कभी सत्य से विपथ नहीं होता और इस सुख की प्राप्ति हो जाने पर पर वह इससे बड़ा कोई दूसरा लाभ नहीं मानता। ऐसी स्थिति को पाकर मनुष्य बड़ी से बड़ी कठिनाइयों में भी विचलित नहीं होता। यह निसंदेह भौतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुःखों से वास्तविक मुक्ति है, जो योग-समाधि के द्वारा ही मुमकिन है। (21वें-23वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा । सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत: । मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत: ॥२४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- मनुष्य को चाहिए कि वह संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे और अपने पथ से कभी विचलित न हो। उसे चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाओं को पूर्णरूप से त्याग दे और इस प्रकार मन के द्वारा सभी ओर इन्द्रियों को वश में करे। (24वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
शनै: शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया । आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥२५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- धीरे-धीरे, कर्मशः पूर्ण विश्वासपूर्वक बुद्धि के द्वारा समाधि में स्थित होना चाहिए और इस प्रकार अपने मन को आत्मा में ही स्थित करना चाहिए तथा अन्य कुछ भी नहीं सोचना चाहिए। (25वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यतो यतो निश्चलति मनश्चञ्चलमस्थिरम् । ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥२६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- मन अपनी चंचलता तथा स्थिरता के कारण जहां कहीं भी विचरण करता हो, मनुष्य को चाहिए कि उसे वहां से खींच कर अपने वश में लाए। (26वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् । उपैति शान्तरजसं ब्रह्यभूतमकल्मषम् ॥२७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जिस योगी का मन मुझपर ही स्थिर रहता है, वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वोच्च सिद्धि व परम आनंद को प्राप्त करता है। वह रजोगुण से परे हो जाता है यानी उसकी कामेच्छा शांत हो चुकी होती है, वह परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझता है अर्थात् परमात्मा की भक्ति से और आत्म-साक्षात्कार के ज्ञान से वो इस संसार में हर प्रकार से अपने समस्त विगत कर्मों के फल या समस्त पूर्व पापकर्मों से मुक्त हो जाता है। (27वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष: । सुखेन ब्रह्यसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥२८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- इस प्रकार योग अभ्यास में निरंतर लगा रहकर आत्मसंयमी योगी पुरुष समस्त भौतिक दुःख व कष्टों से मुक्त हो जाता है और भगवान की भक्ति में लीन हो कर परम सुख को प्राप्त करता है। (28वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन: ॥२९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें ही समस्त जीवों को देखता है। निस्संदेह ही ऐसा सिद्ध पुरुष मुझ परमेश्वर को सर्वत्र हर जगह देखता है। (29वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति । तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥३०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जो मुझे सर्वत्र यानी सभी जगह व हर वस्तुओं, सजीव-निर्जीव में मुझ परमात्मा को देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूं और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है। (30वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog Shlok 31-40 | भगवत गीता अध्याय 6 श्लोक ३१-४०
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित: । सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥३१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जो योगी मुझे तथा परमात्मा को अभिन्न (एक ही) मानते हुए परमात्मा की भक्तिपूर्वक सेवा करता है, वह हर प्रकार से मुझमें ही सदैव स्थित रहता है। (31वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन । सुखं वा यदि दुःखं स योगी परमो मत: ॥३२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! वह पूर्ण योगी है, जो अपनी तुलना (दृष्टिकोण) से समस्त प्राणियों की उनके सुखों तथा दुःखों में वास्तविक समानता का दर्शन करता है। (32वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
अर्जुन उवाच :- योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त: साम्येन मधुसूदन । एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥३३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान से पूछा कि - हे मधुसूदन! आपने जिस योग पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है, वह मेरे लिए अव्यावहारिक तथा असहनीय है, क्योंकि मन चंचल तथा अस्थिर है, जो मेरे वश में नहीं रहता। (33वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
चञ्चल हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् । तसयाहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥३४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे श्रीकृष्ण! चूंकि मन चंचल (अस्थिर), हठीला तथा अत्यंत बलवान है, अतः मेरे लिए इस मन को वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है। (34वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
श्रीभगवानुवाच :- असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥३५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - हे महाबाहु कुन्तीपुत्र अर्जुन! निश्चय ही (निस्संदेह ही व इसमें कोई संदेह नहीं है कि) चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन (बहुत मुश्किल कार्य) है , किन्तु उपयुक्त अभ्यास (निरंतर प्रयास व लगातार करते रहने से) द्वारा तथा विरक्ति (वैराग्य/संन्यास) द्वारा ऐसा संभव है। (35वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: । वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुपायत: ॥३६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- जिस भी व्यक्ति का मन असंयमित (वश में नहीं है यानी कि अनियंत्रण) है, उसके लिए आत्म-साक्षात्कार (आत्मज्ञान को प्राप्त कर पाना) कठिन कार्य होता है, किंतु जिसका मन संयमित होता है, जो सदैव मन को वश में करने का प्रयास करते रहता है, उसकी सफलता निश्चित रूप होती है। ऐसा मेरा मत है (भगवान श्रीकृष्ण यहां पर स्वयं कह रहे हैं कि जो व्यक्ति अपने मन को वश में करने में सक्षम हो जाता है और निष्काम भाव से कर्म करते हुए मुझमें पूर्णतया तन्मय होता है, वह मुझे अति प्रिय है और वह मुझे अवश्य प्राप्त करता है)। (36वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
अर्जुन उवाच :- अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: । अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥३७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा - हे श्रीकृष्ण! आप मुझे बताइए कि उस असफल योगी की गति (स्थिति) क्या है, जो प्रारंभ में श्रद्धापूर्वक आत्म-साक्षात्कार की विधि तो ग्रहण करता है किन्तु बाद में भौतिकता (सांसारिक मोह-माया के बन्धन से बंधने) के कारण उससे विचलित हो जाता है और योगसिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाता? (37वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति । अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि ॥३८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे महाबाहु, हे श्रीकृष्ण! क्या परमात्मा (ब्रह्म) की प्राप्ति के मार्ग से भ्रष्ट ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सफलताओं वंचित हो जाता है और क्या वह व्यक्ति बादल की भांति विनष्ट नहीं हो जाता, जिसके परिणामस्वरूप उसके लिए किसी लोक में कोई स्थान नहीं रहता? (38वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: । त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥३९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे श्रीकृष्ण! यही मेरा संदेह है और मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कृपया करके आप मेरे इस संदेह को पूर्णतया दूर करें। आपके अतिरिक्त (अलावा व सिवा) अन्य कोई ऐसा नहीं है जो मेरे इस संदेह को दूर कर सके। (39वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
श्रीभगवानुवाच :- पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥४०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- श्री भगवान कहते हैं - हे पार्थ (पृथापुत्र अर्जुन)! कल्याणकारी कार्यों में संलग्न योगी का न तो इस (पृथ्वी) लोक में और न परलोक (स्वर्ग लोक या नर्क लोक व अन्य लोक) में ही विनाश होता है। हे मेरे प्रिय मित्र अर्जुन! कल्याणकारी कार्यों में संलग्न व्यक्ति कभी बुराई से पराजित नहीं होता अर्थात् उसके अच्छे कर्मों का पतन नहीं होता। (40वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog Shlok 41-47 | भगवत गीता अध्याय 6 श्लोक ४१-४७
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥४१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- असफल योगी पवित्र आत्माओं के लोकों में अनेकानेक वर्षों तक निवास (भोग करने) करने के बाद या तो सदाचारी पुरुषों के परिवार में जन्म लेता है या किसी धनवानों के कुल में जन्म लेता है। (41वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥४२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- अथवा (यदि दीर्घकाल व लंबे समय अर्थात् कई वर्षों तक योग करने के बाद भी असफल रहे तो) ऐसे योगियों के कुल में जन्म लेता है, जो अति बुद्धिमान हैं। निश्चय ही इस संसार में ऐसा जन्म अत्यंत दुर्लभ है। (42वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥४३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- हे कुरुनन्दन अर्जुन! ऐसा जन्म पाकर वह अपने पूर्वजन्म की दैवीय चेतना को पुनः प्राप्त करता है और पूर्ण सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से वह आगे और उन्नति करने का प्रयास करता है। (43वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः । जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥४४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- ऐसा व्यक्ति अपने पूर्व जन्म यानी पिछले जन्मों की दैवीय चेतना से वह व्यक्ति न चाहते हुए भी स्वत: योग के नियमों की ओर आकर्षित होता है। ऐसा जिज्ञासु योगी शास्त्रों के अनुष्ठानों से परे स्थित होता है। (44वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष: । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥४५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- और जब योगी अपनी समस्त कल्मष (पापकर्मों) से शुद्ध होकर सच्ची निष्ठा से आगे प्रगति करने का प्रयास करता है, तो अंततः अनेकानेक जन्मों के अभ्यास के पश्चात् सिद्धि प्राप्त करके वह परम गंतव्य (मोक्ष या परमधाम) को प्राप्त करता है। (45वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः । कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥४६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- योगी पुरुष तपस्वी से, ज्ञानी से तथा सकामकर्मी से भी बढ़कर होता है। इसलिए हे अर्जुन! तुम भी सभी प्रकार से योगी बनो। (46वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना । श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥४७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 6 आत्मसंयम योग हिंदी संस्करण:- और समस्त योगियों में से जो अत्यंत श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, जो अपने अन्तःकरण में मुझ परमेश्वर के विषय में सोचता है और मेरी ही भक्ति करता है, वह योग में मुझमें परम अंतरंग रूप में युक्त रहता है अर्थात् वह योगी मुझे अति प्रिय है और समस्त लोगों में सर्वोच्च है। यही मेरा मत (कहना) है। (47वें श्लोक) |
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता का एक महत्वपूर्ण अध्याय 'आत्मसंयम योग' संपन्न होता है, जो व्यक्ति को आत्मसंयम, ध्यान और योग के माध्यम से आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की शिक्षा देता है। आत्मसंयम योग व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मज्ञान, इंद्रियों पर नियंत्रण, आत्मबल में वृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है। यह योग व्यक्ति को जीवन के उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करता है और उसे सच्ची खुशी और संतुष्टि प्रदान करता है। अतः, आत्मसंयम योग का अभ्यास हर व्यक्ति के लिए लाभकारी है, और इसे अपने जीवन में अपनाकर व्यक्ति आत्मिक सुख और मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है।
5 Main teachings of Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog)| आत्मसंयम योग की 5 मुख्य शिक्षाएं
आत्मसंयम योग में भगवान श्रीकृष्ण ने कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी हैं जो व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम की दिशा में अग्रसर करती हैं। इनमें से पांच प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:
1. ध्यान करने की शिक्षा: भगवान श्रीकृष्ण ने ध्यान की आवश्यकता और महत्व पर जोर दिया है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को शुद्ध कर सकता है और आत्मा की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर सकता है। |
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2. मन का संयम रखने की शिक्षा: आत्मसंयम योग में मन का संयम और नियंत्रण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण ने मन को नियंत्रित करने के लिए ध्यान, साधना और आत्म-संयम का अभ्यास करने की सलाह दी है। |
3. आत्म-संयम की शिक्षा: आत्म-संयम योग का मुख्य उद्देश्य आत्म-संयम की प्राप्ति है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने इंद्रियों और विचारों को नियंत्रित कर सकता है और आत्मा की शुद्धि की दिशा में अग्रसर हो सकता है। |
4. साधना के महत्व की शिक्षा: भगवान श्रीकृष्ण ने साधना के महत्व पर जोर दिया है। साधना के माध्यम से व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार और आत्म-ज्ञान की दिशा में अग्रसर हो सकता है। |
5. शांति और संतुलन की शिक्षा: आत्मसंयम योग के माध्यम से व्यक्ति शांति और संतुलन प्राप्त कर सकता है। यह योग व्यक्ति को जीवन में संतुलन बनाए रखने और आत्म-शांति प्राप्त करने में सहायक होता है। |
The Right Way to do Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog)| आत्मसंयम योग की विधि
आत्मसंयम योग, शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन प्राप्त करने की एक प्राचीन विधि है। श्रीमद भगवद गीता में योग के इस रूप का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें आत्मसंयम, स्वांस नियंत्रण और मन की एकाग्रता पर विशेष जोर दिया गया है। यहां पर हम में हम आत्मसंयम योग के चार महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे- आसन और स्थिति, शरीर की स्थिति, मन का एकाग्रता और प्राणायाम
1. आसन और स्थिति: आत्मसंयम योग का अभ्यास करने के लिए सही आसन और स्थिति का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवद गीता के अनुसार, एक आरामदायक और स्थिर आसन चुना जाना चाहिए।
- - पद्मासन या सुखासन सर्वश्रेष्ठ आसनों में से हैं।
- - जमीन पर एक साफ और समतल स्थान पर बैठें।
- - अपनी रीढ़ को सीधा रखें और आंखें बंद करें।
2. शरीर की स्थिति: शरीर की सही स्थिति आत्मसंयम योग के अभ्यास के दौरान अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीमद भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा निर्दिष्ट किया गया है कि शरीर की स्थिति स्थिर और आरामदायक होनी चाहिए ताकि ध्यान भंग न हो।
- - सिर, गर्दन और रीढ़ को सीधा रखें।
- - हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियां ऊपर की ओर।
- - शरीर को बिना किसी तनाव के रखें।
- 3. मन की एकाग्रता: मन का एकाग्रता आत्मसंयम योग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। भगवद गीता के अनुसार, मन की एकाग्रता आत्म-साक्षात्कार की कुंजी है। इसके लिए मन को भटकने से रोकना और एक बिंदु पर केंद्रित करना आवश्यक है।
- - अपने ध्यान को एक बिंदु पर केंद्रित करें, जैसे भौहों के बीच।
- - धीरे-धीरे और गहराई से सांस लें और छोड़ें, मन को शांत रखें।
- - ध्यान के लिए एक मंत्र या श्लोक का उच्चारण करें, जैसे "ॐ"।
4. स्वांस नियंत्रण व प्राणायाम: स्वांस नियंत्रण या प्राणायाम आत्मसंयम योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भगवद गीता में प्राणायाम को मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण का माध्यम माना गया है।
- - नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करें।
- - धीरे-धीरे गहरी सांस लें और छोड़ें।
- - अपने स्वांस पर ध्यान केंद्रित करें और इसे नियंत्रित करें।
आत्मसंयम योग का अभ्यास सही तरीके से करने के लिए उपरोक्त चार बिंदुओं पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। सही आसन और स्थिति, शरीर की सही स्थिति, मन की एकाग्रता और स्वांस नियंत्रण योग के इस रूप को सफलतापूर्वक अपनाने में मदद करते हैं। श्रीमद भगवद गीता के निर्देशों का पालन करते हुए आत्मसंयम योग का नियमित अभ्यास करें और शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन प्राप्त करें।
Benefits of Bhagavad Gita Self-Restraint Yoga (Atmsanyam Yog) | आत्मसंयम योग के लाभ
आत्मसंयम योग, जिसे हम आत्म-संयम के माध्यम से योग की कला भी कह सकते हैं, न केवल शरीर को बल्कि मन और आत्मा को भी उन्नत करता है। इस विधा का वर्णन श्रीमद भगवद गीता में किया गया है, जहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को योग की इस अनोखी और प्राचीन पद्धति के बारे में समझाते हैं। आइए अब आत्मसंयम योग के विभिन्न लाभों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं ।आत्मसंयम योग के कई लाभ हैं जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में सहायक होते हैं:
1. आत्मसंयम योग के शारीरिक लाभ:-
- शक्ति और लचीलापन: आत्मसंयम योग की विभिन्न आसनों और प्राणायाम विधियों से शरीर में शक्ति और लचीलापन बढ़ता है। यह न केवल हमारी मांसपेशियों को मजबूत करता है बल्कि उन्हें लचीला भी बनाता है, जिससे हमारी गतिशीलता और सहनशक्ति में वृद्धि होती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: योग के माध्यम से नियमित श्वास-प्रश्वास की प्रक्रियाएं हमारे फेफड़ों और ह्रदय को मजबूती प्रदान करती हैं। इससे हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और हम विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं।
- तनाव और दर्द से मुक्त: शारीरिक आसनों और ध्यान की प्रक्रियाओं से शरीर में संग्रहित तनाव और दर्द को कम किया जा सकता है। इससे हम दैनिक जीवन की तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी शांति और संतुलन बनाए रख सकते हैं।
2. आत्मसंयम योग के मानसिक लाभ
- मानसिक शांति और संतुलन: आत्मसंयम योग का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना है। श्रीमद भगवद गीता में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि मन की स्थिरता और एकाग्रता योग का प्रमुख लाभ है। ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से मन को शांति और स्थिरता मिलती है।
- ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि: नियमित योगाभ्यास से ध्यान और एकाग्रता की क्षमता में वृद्धि होती है। इससे न केवल हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है बल्कि हमारी निर्णय लेने की क्षमता भी सुदृढ़ होती है।
- मानसिक विकारों से मुक्ति: योग की प्रक्रिया में ध्यान और आत्मविश्लेषण के माध्यम से हम मानसिक विकारों जैसे अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। यह हमें मानसिक रूप से सशक्त और स्वस्थ बनाता है।
3. आत्मसंयम योग के आध्यात्मिक लाभ
- आत्म-साक्षात्कार और आत्मज्ञान: श्रीमद भगवद गीता में आत्मसंयम योग को आत्म-साक्षात्कार और आत्मज्ञान का मार्ग बताया गया है। यह योग हमें अपने वास्तविक स्वरूप को समझने और आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है।
- ईश्वर से जुड़ाव: योग के माध्यम से हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हैं और ईश्वर से जुड़ाव महसूस करते हैं। इससे हमें अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: आत्मसंयम योग का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। श्रीमद भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मसंयम के माध्यम से व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
आत्मसंयम योग एक संपूर्ण योग विधि है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी दृष्टिकोणों से हमारे जीवन को समृद्ध बनाती है। श्रीमद भगवद गीता में वर्णित इस योग की पद्धति हमें शारीरिक स्वस्थता, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाती है। नियमित अभ्यास और समर्पण के साथ, हम आत्मसंयम योग के अनगिनत लाभों का अनुभव कर सकते हैं और अपने जीवन को संपूर्णता की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
Who is a Self-Controlled Yogi, According to Lord Krishna? | श्रीकृष्ण के के अनुसार आत्मसंयमी योगी कौन है?
भगवान श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण आत्मसंयम योग के प्रति अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आत्मसंयमता पर विजय प्राप्त कर पाने वाले मनुष्य से ही सच्चे योगी की पहचान होती है।
- आत्मसंयम योगी की पहचान: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि सच्चा योगी वह है जिसने अपने मन और इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। उसने अपने भीतर के द्वंद्वों को समाप्त कर दिया है और वह सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखता है। वह न तो किसी से द्वेष करता है और न ही किसी से आसक्ति रखता है।
- आत्मसंयम और भक्ति योग: भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मसंयम को भक्ति योग का आधार बताया है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों पर संयम रखता है, वही सच्चे भक्ति मार्ग पर चल सकता है। भक्ति योग के माध्यम से व्यक्ति ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है और आत्मसाक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होता है।
How to Practice Self-Restraint Yoga? आत्मसंयम योग का अभ्यास कैसे करें?
आत्मसंयम योग का अभ्यास प्रारंभिक अवस्था में कठिन हो सकता है, लेकिन नियमित अभ्यास से इसे सिद्ध किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- 1. नियमित ध्यान: नियमित ध्यान का अभ्यास आत्मसंयम योग का महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रतिदिन निश्चित समय पर ध्यान करना चाहिए, जिससे मन की एकाग्रता में वृद्धि हो सके।
- 2. स्वांस पर नियंत्रण: स्वांस को नियंत्रित करने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम के विभिन्न प्रकार जैसे अनुलोम-विलोम, कपालभाति, और भस्त्रिका का नियमित अभ्यास करने से मन की स्थिरता में वृद्धि होती है।
- 3. संयमित आहार: संयमित आहार आत्मसंयम योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए, जिससे शरीर और मन दोनों को शांति और स्थिरता प्राप्त हो।
- 4. सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच आत्मसंयम योग की दिशा में महत्वपूर्ण है। नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए और सदैव सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
- 5. सद्ग्रंथों का अध्ययन: सद्ग्रंथों का नियमित अध्ययन आत्मसंयम योग में सहायक होता है। श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, और अन्य सनातन धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने से व्यक्ति को आत्मसंयम के मार्ग पर प्रेरणा मिलती है।
Conclusion of Bhagwat Geeta Atmsanyam Yog | भगवत गीता आत्मसंयम योग का सार
आत्मसंयम योग श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में वर्णित एक महत्वपूर्ण योग है जो व्यक्ति को आत्म-ज्ञान, आत्म-संयम और आत्म-शांति की दिशा में अग्रसर करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने मन, इंद्रियों और विचारों को नियंत्रित कर सकता है और जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दी गई शिक्षाएं हमें आत्म-संयम, ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन देती हैं। आत्मसंयम योग का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने जीवन में शांति, संतुलन और आत्म-तृप्ति प्राप्त कर सकता है। आत्मसंयम योग न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखने में भी सहायक होता है। इसलिए, हमें आत्मसंयम योग की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और आत्मा की शुद्धि और परमात्मा के साथ एकत्व की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। उम्मीद है कि आपको श्रीमद्भगवद्गीता के इस अध्याय से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा, जो आपको जीवन के हर कदम पर आपके लिए शुभ अवसर प्राप्त कराएंगे। उम्मीद है कि आपको Bhagwat Geeta Adhyay 6 in Hindi का यह लेख जरूर पसंद आया होगा?
अब हमारी मुलाकात भगवत गीता के अगले अध्याय "ज्ञान विज्ञान योग" में होगी, तब तक के लिए अपना और अपने माता-पिता का ख्याल रखें धन्यवाद, जय श्री कृष्ण!
FAQs of Bhagwat Geeta Chapter 6 | भागवत गीता प्रश्नोत्तरी - आत्मसंयम योग
1. आत्मसंयम योग क्या अर्थ है? ॐ: आत्मसंयम योग का अर्थ है आत्मा पर संयम रखना। यह एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को अपनी इंद्रियों, मन और आत्मा पर नियंत्रण करने की शिक्षा देता है। आत्मसंयम योग के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की उर्जा को जागृत करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। इसमें ध्यान और साधना के विभिन्न उपायों का वर्णन है, जिससे व्यक्ति मानसिक शांति और आत्मिक सुख प्राप्त कर सकता है। |
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2. भगवत गीता के छठे अध्याय का मुख्य विषय क्या है? ॐ: आत्मसंयम योग, भगवद गीता के छठे अध्याय का मुख्य विषय है, जो आत्मनियंत्रण और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया को समझाता है। यह अध्याय ध्यान की विधियों और उसके लाभों पर प्रकाश डालता है। |
3. आत्मसंयम योग का महत्व क्या है? ॐ: आत्मसंयम योग का महत्व है कि यह व्यक्ति को मन और इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करने में मदद करता है। इसके माध्यम से आत्मा की शांति और अंतर्मन की गहराई में प्रवेश संभव होता है, जिससे व्यक्ति अपने वास्तविक स्वभाव को समझ सकता है। |
4. भगवद गीता के छठे अध्याय में ध्यान का क्या महत्व है?। ॐ: भगवत गीता के छठे अध्याय में ध्यान का विषेश महत्त्व है जिसको आत्मसंयम का एक महत्वपूर्ण साधन माना गया है।ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी मानसिक शांति, एकाग्रता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। |
5. आत्मसंयम योग में ध्यान की विधि क्या है ? ॐ: ध्यान की विधि में एक शांत स्थान पर बैठना, शरीर को स्थिर रखना, और मन को नियंत्रित करके एक बिंदु पर एकाग्र करना शामिल है। इस प्रक्रिया में श्वास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और धीरे-धीरे मन को विचारों से मुक्त किया जाता है। |
6. आत्मसंयम योग में क्या बाधाएं आ सकती हैं? ॐ: आत्मसंयम योग में मुख्य बाधाएं हैं अस्थिर मन, आलस्य और बाहरी विक्षेप। इसके अलावा, अनुशासन की कमी और अज्ञानता भी ध्यान के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। |
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7. आत्मसंयम योग कैसे किया जाता है? ॐ: आत्मसंयम योग करने के लिए एकांत और शांत स्थान का चयन करें। सुखासन या पद्मासन में बैठकर शरीर को स्थिर रखें। धीरे-धीरे श्वास लें और छोड़ें। मन को किसी एक बिंदु या मंत्र पर केंद्रित करें और विचारों को धीरे-धीरे कम करें। |
8. आत्मसंयम योग के लाभ क्या हैं? ॐ: आत्मसंयम योग के लाभों में मानसिक शांति, ध्यान की गहराई, आत्म-साक्षात्कार, और जीवन में संतुलन प्राप्त करना शामिल है। यह योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है। |
9. आत्मसंयम योग में आहार का क्या महत्व है? ॐ: आत्मसंयम योग में आहार का बहुत महत्व है। शुद्ध, सात्विक और संतुलित आहार मन को स्थिर और शांति प्रदान करता है, जो ध्यान में सहायक होता है। तामसिक और रजसिक भोजन ध्यान में बाधा उत्पन्न कर सकता है। |
10. क्या आत्मसंयम का योग केवल संन्यासियों के लिए है? ॐ: नहीं, आत्मसंयम योग सभी के लिए है। यह गृहस्थ, विद्यार्थी, और संन्यासी सभी के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह मन और आत्मा की शांति के लिए आवश्यक है। |
11. आत्मसंयम योग के सिद्धांतों का जीवन में कैसे पालन करें? ॐ: आत्मसंयम योग के सिद्धांतों का जीवन में पालन करने के लिए नियमित ध्यान, संतुलित जीवनशैली, और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके साथ ही व्यक्ति को संयम, धैर्य, और आत्म-विश्लेषण को जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। |
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12. आत्मसंयम योग से आत्म-साक्षात्कार कैसे होता है? ॐ: आत्मसंयम योग के माध्यम से ध्यान और आत्मनियंत्रण की प्रक्रिया से मन की गहराइयों में प्रवेश किया जाता है, जहां आत्मा के वास्तविक स्वरूप का अनुभव होता है। यह आत्म-साक्षात्कार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। |
13. आत्मसंयम योग का धार्मिक महत्व क्या है? ॐ: आत्मसंयम योग का धार्मिक रूप से विषेश महत्व है कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है। यह योग भगवान के साथ एकात्मता की भावना को बढ़ावा देता है और जीवन को धर्म के अनुसार जीने की प्रेरणा देता है। |
14. आत्मसंयम योग में सफलता कैसे प्राप्त करें? ॐ: आत्मसंयम योग में सफलता नियमित अभ्यास, धैर्य, और अनुशासन के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। निरंतर अभ्यास से मन की चंचलता कम होती है और ध्यान में गहराई आती है। |
15. आत्मसंयम योग के अभ्यास के दौरान कौन से नियमों का पालन करना चाहिए? ॐ: आत्मसंयम योग के अभ्यास के दौरान शुद्धता, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही नियमितता, एकाग्रता, और मन की शांति का ध्यान रखना चाहिए। |
16. आत्मसंयम योग में गुरु का क्या महत्व है? ॐ: आत्मसंयम योग में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु सही मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे ध्यान की प्रक्रिया सरल और सटीक होती है। गुरु के अनुभव से ध्यान में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है। |
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17. आत्मसंयम योग में आहार और निद्रा का क्या महत्व है? ॐ: आत्मसंयम योग में संतुलित आहार और पर्याप्त निद्रा का बहुत महत्व है। शुद्ध और पौष्टिक भोजन मन और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, जबकि पर्याप्त नींद मानसिक और शारीरिक थकान को दूर करती है, जिससे ध्यान में स्थिरता आती है। |
18. आत्मसंयम योग के लिए कौन सा समय सबसे अच्छा है? ॐ: आत्मसंयम योग के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इस समय वातावरण शांत और मन भी ताजगी भरा होता है, जिससे ध्यान करने में आसानी होती है। |
19. आत्मसंयम योग का अभ्यास कितने समय तक करना चाहिए? ॐ: आत्मसंयम योग का अभ्यास प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट से एक घंटे तक करना चाहिए। प्रारंभ में 10-15 मिनट से शुरू करके धीरे-धीरे समय बढ़ाया जा सकता है। |
20. आत्मसंयम योग से मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? ॐ: आत्मसंयम योग से मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह योग मानसिक शांति, तनाव में कमी, और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति तनावमुक्त और खुशहाल जीवन जी सकता है। |
21. आत्मसंयम योग क्या है? ॐ: आत्मसंयम योग श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में वर्णित एक योग साधना है, जो आत्मा के संयम और ध्यान पर केंद्रित है। इसमें आत्मा की शुद्धि, आत्मनिरीक्षण, और ध्यान के माध्यम से अंतर्मुखी बनने पर जोर दिया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 का मुख्य विषय ही आत्मसंयम योग है। इस अध्याय में योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-संयम और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने की विधि बताई गई है। |
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22. आत्मसंयम योग में ध्यान का क्या महत्व है? ॐ: ध्यान आत्मसंयम योग का मुख्य तत्व है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने मन को स्थिर और शांत कर सकता है, जिससे आत्मा की शुद्धि और आत्मज्ञान प्राप्त होता है। ध्यान के बिना आत्मसंयम योग की साधना अधूरी मानी जाती है। |
23. क्या आत्मसंयम योग हर व्यक्ति के लिए संभव है? ॐ: हां बिल्कुल, आत्मसंयम योग हर व्यक्ति के लिए संभव है। हालांकि, इसके लिए संयम, धैर्य और नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है। श्रीकृष्ण ने कहा कि आत्मसंयम योग के माध्यम से कोई भी व्यक्ति आत्मज्ञान और मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो।। |
24. श्रीकृष्ण ने ध्यान के अभ्यास के लिए क्या निर्देश दिए हैं? ॐ: श्रीकृष्ण ने ध्यान के अभ्यास के लिए निर्देश दिए हैं कि योगी को स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठना चाहिए, रीढ़ को सीधा रखना चाहिए, और मन को किसी एक बिंदु पर केंद्रित करना चाहिए। इस प्रकार नियमित अभ्यास से ध्यान की गहराई समझ प्राप्त होती है। |
25. श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 का आधुनिक जीवन में क्या महत्व है? ॐ: आधुनिक जीवन में श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 का अत्यधिक महत्व है। आत्मसंयम योग व्यक्ति को तनाव मुक्त, मानसिक शांति, और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है। यह योग आज के व्यस्त जीवन में संतुलन और सकारात्मकता लाने में सहायक है। |
26. श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 6 में ध्यान की क्या महत्ता है? ॐ: ध्यान आत्मसंयम योग का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ध्यान के माध्यम से मन को स्थिर किया जाता है, जिससे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति परमात्मा के साथ एकत्व अनुभव करता है। |
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27. आत्मसंयम योग के मुख्य सिद्धांत क्या हैं? ॐ: आत्मसंयम योग के मुख्य सिद्धांत हैं:
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28. आत्मसंयम योग के क्या लाभ हैं? ॐ: आत्मसंयम योग के लाभ में मानसिक शांति, आत्म-ज्ञान, आत्म-संयम, और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण शामिल हैं। यह योग व्यक्ति को तनाव मुक्त और आत्मविश्वास से भरपूर बनाता है। |
29. आत्मसंयम योग का अंतिम लक्ष्य क्या है? ॐ: आत्मसंयम योग का अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है और भगवान के साथ एकात्मता की भावना को प्राप्त करता है।। |
30. क्या आत्मसंयम योग से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी लाभ होता है? ॐ: हां, आत्मसंयम योग से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी लाभ होता है। नियमित ध्यान और आत्मसंयम से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह सुधरता है, तनाव कम होता है, और विभिन्न शारीरिक बीमारियों से मुक्ति मिलती है। |
31. योग और आत्मसंयम के बीच क्या संबंध है? ॐ: योग और आत्मसंयम का गहरा संबंध है। योग के माध्यम से आत्मसंयम प्राप्त होता है, और आत्मसंयम से योग की गहराई समझ में आती है। दोनों का लक्ष्य आत्मज्ञान और परमात्मा से मिलन है। |
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32. श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 6 में श्रीकृष्ण ने किसे श्रेष्ठ योगी कहा है? ॐ: श्रीकृष्ण ने कहा है कि वह योगी श्रेष्ठ है, जो अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, सभी प्राणियों के प्रति समान दृष्टि रखता है और ध्यान और भक्ति के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति करता है। |
33. आत्मसंयम योग के लिए कौन सा अनुशासन आवश्यक है? ॐ: आत्मसंयम योग के लिए मन और शरीर का अनुशासन आवश्यक है। इसमें नियमित ध्यान, संयमित आहार, और शुद्ध आचरण शामिल हैं। व्यक्ति को इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है और जीवन में संतुलन बनाए रखना होता है। |
34. आत्मसंयम योग के मार्ग में आने वाली बाधाओं का समाधान कैसे किया जा सकता है? ॐ: आत्मसंयम योग के मार्ग में आने वाली बाधाओं, जैसे कि मन की चंचलता और इंद्रियों के आकर्षण का समाधान , ध्यान और नियमित अभ्यास के माध्यम से किया जा सकता है। साथ ही आत्म-नियंत्रण और धैर्य भी महत्वपूर्ण हैं। |
35. आत्मसंयम योग का अभ्यास कैसे करें? । ॐ: आत्मसंयम योग का अभ्यास ध्यान, मन के नियंत्रण, और आत्म-विश्लेषण के माध्यम से किया जाता है। योगी को स्थिर और एकांत स्थान पर बैठकर, मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना होता है। आत्मसंयम योग का अभ्यास निम्नलिखित चरणों के माध्यम से किया जा सकता है:
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36. क्या आत्मसंयम योग से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है? ॐ: हां, आत्मसंयम योग के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि ध्यान, आत्मनिरीक्षण और आत्मसंयम के माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान की उच्चतम अवस्था को भी प्राप्त कर सकता है। |
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37. आत्मसंयम योग के अभ्यास में क्या कठिनाइयाँ आ सकती हैं? ॐ: आत्मसंयम योग के अभ्यास में निम्नलिखित कठिनाइयाँ आ सकती हैं:
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38. आत्मसंयम योग में श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन क्या है? ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मसंयम योग में निम्नलिखित मार्गदर्शन दिया:
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39. आत्मसंयम योग के अभ्यास में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? ॐ: आत्मसंयम योग के अभ्यास में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
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40. आत्मसंयम योग के लाभ क्या हैं? ॐ: आत्मसंयम योग के लाभ निम्नलिखित हैं:
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Disclaimer: जरूरी सूचना यह है कि "श्रीमद् भगवद् गीता" एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जो भारतीय साहित्य और दार्शनिक विचारों का अमूल्य तथा अतुलनीय हिस्सा है। यह ग्रंथ धार्मिक और आध्यात्मिक सन्देशों का संग्रह है और इसे समझने और उस पर अमल करने के लिए गहरी अध्ययन और आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता होती है। हमारे इस ब्लॉग "Om- Shrimad-Bhagwat-Geeta (www.shrimadbhagwatgeeta.in)" पर प्रस्तुत सभी जानकारी और सामग्री केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की गई है। यहां दी गई जानकारी को सटीक और अद्यतित रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन हम किसी भी प्रकार की पूर्णता, सटीकता, विश्वसनीयता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देते हैं। किसी भी सूचना या व्याख्या की पुष्टि के लिए, यह वेबसाईट जिम्मेदारी नहीं है। इसके सही पुष्टि के लिए आपको सनातन धर्म के संस्कृत विशेषज्ञों, धार्मिक गुरुओं या सम्प्रदायिक आचार्यों से परामर्श लेना चाहिए। यहां प्रस्तुत की गई सभी सामग्री केवल सनातन जानकारी और सनातन संस्कृति को प्रेरित करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, इसका कोई अन्य उपयोग या उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए उपयोगकर्ता किसी भी जानकारी पर अपनी टिप्पणी करने से पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें।
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