Shrimad Bhagwat Geeta 8: अक्षर ब्रह्म योग से सीखें अमरता का रहस्य! Shrimad Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog

 जय श्रीकृष्ण मित्रों! श्रीमद्भागवद्गीता, जिसे हिन्दू धर्म का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है, जीवन की जटिलताओं और आत्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस दिव्य ग्रंथ के आठवें अध्याय को 'अक्षर ब्रह्म योग' के नाम से जाना जाता है, जो विशेष रूप से आत्मा और परमात्मा की अवधारणा पर केंद्रित है। अक्षर ब्रह्म योग का तात्पर्य है, वह अद्वितीय और अविनाशी ब्रह्मा जो साकार और निराकार दोनों रूपों में प्रकट होता है। श्रीमद्भागवत गीता केअध्याय 8 में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि मृत्यु के समय आत्मा के साथ क्या होता है, और कैसे एक व्यक्ति अपनी अंतिम यात्रा को सुकून और शांति के साथ समाप्त कर सकता है। इस अध्याय यानी "Shrimad Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog" में, श्रीकृष्ण ने बताया कि कैसे एक भक्त को सही समय पर सही आचरण करना चाहिए, ताकि उसके जीवन की अंतिम घड़ी में उसकी आत्मा परमात्मा के साथ मिलन कर सके। 


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Shrimad Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog | भगवत गीता अध्याय 8 अक्षर  ब्रह्मयोग  

 भगवद् गीता के इस अध्याय की गहराई को समझने के लिए, हमें यह जानना होगा कि ‘अक्षर’ का अर्थ होता है - ‘अविनाशी’। यह अध्याय हमें सिखाता है कि कैसे इस भौतिक शरीर की समाप्ति के बाद भी, आत्मा अमर और अविनाशी रहती है। इस ज्ञान के माध्यम से, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, और असली महत्व आत्मा के शाश्वत अस्तित्व का है।श्रीमद्भागवद्गीता के इस अध्याय में पथप्रदर्शक श्लोकों के माध्यम से, श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा के शाश्वत स्वरूप और आत्मा की अविनाशिता को उजागर किया है। 

    इस अध्याय के अध्ययन से हमें जीवन के रहस्यों को समझने और आत्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। अक्षर ब्रह्म योग में वर्णित उपदेश हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने जीवन को नैतिकता और धार्मिकता के अनुसार जीएं, ताकि हम मृत्यु के समय शांत और आत्मसमर्पण की अवस्था में रह सकें। इस प्रकार, यह अध्याय आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने और उसके साथ पूर्ण मिलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस परिचयात्मक भाग में हमने 'अक्षर ब्रह्म योग' के महत्व को समझने की कोशिश की है, और आगे के भागों में हम इस अध्याय के गहरे अर्थ और ज्ञान की ओर विस्तार से चर्चा करेंगे!

What is Akshar Brahm  Yog | अक्षर ब्रह्मयोग क्या है?|Om Shrimad Bhagwat Geeta| Om Shrimad Bhagwat Gita

 What is Akshar Brahm  Yog | अक्षर ब्रह्मयोग क्या है?

 अक्षर ब्रह्मयोग भगवद् गीता में आत्मा और परमात्मा के अद्वितीय एकत्व को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण योग है। यह उस अमर ब्रह्म की अद्वितीयता को बताता है जिसे आत्मा निरंतर अनुभव करती है। इसके माध्यम से भगवान् श्रीकृष्ण अपने भक्त अर्जुन को मरने के बाद की अवस्था और मोक्ष के पथ का ज्ञान देते हैं।
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 Important Message of Akshar Brahm Yog | अक्षर ब्रह्मयोग के महत्वपूर्ण संदेश 

श्रीमद्भगवद्गीता का अध्याय 8, जिसे अक्षर ब्रह्म योग के नाम से जाना जाता है, हमें आत्मा, ब्रह्म, और कर्म के संबंध में गहन ज्ञान प्रदान करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन के अंतिम सत्य और ब्रह्म की अनुभूति के बारे में बताते हैं। आइए जानते हैं इस अध्याय के पाँच महत्वपूर्ण संदेशों के बारे में:

1. अविनाशी ब्रह्म ज्ञान का संदेश: अक्षर ब्रह्म योग का सबसे पहला और महत्वपूर्ण संदेश यह है कि ब्रह्म अविनाशी है। यह न तो उत्पन्न होता है और न ही नष्ट होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति ब्रह्म को समझ लेता है, वह मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है। ब्रह्म की पहचान आत्मा के रूप में होती है, जो सदा विद्यमान है और हर जीव में समाहित है।
श्लोक 8.3: 
"अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।  
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।" 
2. मृत्यु के समय भगवान को स्मरण करने का संदेश: इस अध्याय का दूसरा महत्वपूर्ण संदेश है कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने अंतिम समय में मुझे स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से मेरे धाम को प्राप्त करता है।
श्लोक 8.5:
"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।  
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।।"
3. जीवन के अंतिम लक्ष्य पाने का संदेश: भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जीवन का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म की प्राप्ति है। यह संदेश हमें यह समझाता है कि सांसारिक जीवन की आपाधापी में हमें अपने असली लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए। आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति ही हमारे जीवन का असली उद्देश्य है।
श्लोक 8.6: 
"यं यं वाऽपि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।  
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः।।"
4. अविचल भक्तिभाव के महत्व का संदेश: भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि उनकी अविचल भक्ति करने से व्यक्ति हर परिस्थिति में स्थिर रह सकता है। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें हर स्थिति में भगवान के प्रति अपनी भक्ति और विश्वास को बनाए रखना चाहिए। भक्ति से ही हमें जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
श्लोक 8.7:  
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।  
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।"
5. योग साधना और ध्यान के महत्व का संदेश: अक्षर ब्रह्म योग का अंतिम महत्वपूर्ण संदेश है कि योग साधना और ध्यान के माध्यम से हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति निरंतर योग साधना और ध्यान करता है, वह ब्रह्म की अनुभूति कर सकता है।
**श्लोक 8.13:**  
"ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।  
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।"

 अक्षर ब्रह्म योग के ये पाँच महत्वपूर्ण संदेश हमें जीवन के अंतिम सत्य और ब्रह्म की अनुभूति की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के ये उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि आत्मा अविनाशी है, मृत्यु के समय भगवान का स्मरण हमें मोक्ष की ओर ले जाता है, जीवन का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म की प्राप्ति है, अविचल भक्ति के माध्यम से हम हर परिस्थिति में स्थिर रह सकते हैं, और योग साधना एवं ध्यान से हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। इन संदेशों को अपने जीवन में अपनाकर हम आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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 Shrimad  Bhagwat Geeta Gyan Akshar Brahm Yog Shlok 1-10 | भगवत गीता अध्याय ८ श्लोक १-१०  

 अध्याय 8 हमें मृत्यु और उसके बाद की अवस्थाओं को समझने में मदद करता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि जीवन की अंतिम यात्रा में सच्ची भक्ति और योग की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है।अध्याय 8 हमें मृत्यु और उसके बाद की अवस्थाओं को समझने में मदद करता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि जीवन की अंतिम यात्रा में सच्ची भक्ति और योग की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार, अक्षर ब्रह्म योग जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्यों को उजागर करता है और आत्मा की अमरता के प्रति जागरूकता प्रदान करता है।स प्रकार, अक्षर ब्रह्म योग जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्यों को उजागर करता है और आत्मा की अमरता के प्रति जागरूकता प्रदान करता है। आइए अब इस अध्याय के श्लोकों के अर्थ एवं सही ज्ञान को प्राप्त कर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।  
 अर्जुन उवाच :-
 किं तद्ब्रहम किमध्यात्मं किं कर्म पुरोषत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥१॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा :- हे भगवान, हे परमपुरुष! यह ब्रह्म क्या है? आत्मा क्या है? सकाम कर्म क्या है? यह भौतिक जगत क्या है? तथा देवता (देवतागण) क्या है? कृपा करके आप मुझे इन सबके बारे में बताइए। (प्रथम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
 प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि: ॥२॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-  हे मधुसूदन! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? तथा मृत्यु के समय भक्ति में ही लगे रहने वाले पुरुष आपको कैसे जान पाते हैं? (द्वितीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
 भूतभावोद्भवकरो विसर्ग: कर्मसंज्ञित: ॥३॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- अर्जुन के प्रश्नों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण उत्तर देते हुए कहते हैं :- अविनाशी और दिव्य जगत ब्रह्म कहलाता है और उसका नित्य स्वभाव अध्यात्म या आत्मा कहलाता है। जीवों के भौतिक शरीर से सम्बंधित सारी गतिविधियां कर्म या सकाम कर्म कहलाती है। (तृतीय श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
 अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥४॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-  हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! निरंतर परिवर्तनशील यह भौतिक प्रकृति अधिभूत (भौतिक अभिव्यक्ति / भौतिक जगत) कहलाती है। भगवान का विराट रूप, जिसमें सूर्य तथा चन्द्रमा जैसे समस्त देवता सम्मिलित हैं, अधिदैव (देवता / देवतागण) कहलाता है। तथा प्रत्येक देहधारी जीव के हृदय में परमात्मा स्वरूप (आत्मा के रूप) में स्थित मैं ही परमेश्वर अधियज्ञ (यज्ञ का स्वामी) कहलाता हूं। (चतुर्थ श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवलम् ।
 य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ॥५॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- और जीवन के अंतिम समय में जो व्यक्ति केवल मेरा स्मरण करते हुए अपने शरीर का त्याग करता है तथा मृत्यु को प्राप्त होता है, वह शीघ्र ही मेरे स्वभाव को प्राप्त होता है। इसमें रंचमात्र (तनिक) भी संदेह नहीं है। (पंचम श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवलम् ।
 तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ॥६॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-  हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! अपने शरीर को त्यागते समय मनुष्य जिस-जिस भाव का स्मरण करता है, वह उस-उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है। (षष्ठम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च । मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशय: ॥७॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- इसलिए, हे अर्जुन! तुम सदैव मुझको ही स्मरण करते रहो। तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए तथा साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य का पालन भी करना चाहिए। अपने सभी कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं मस्तिष्क (बुद्धि) को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे। (सप्तम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
 परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थास्ति ॥८॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-   हे पार्थ! जो व्यक्ति मेरा स्मरण करने में अपना मन निरंतर लगाये रखकर अविचलित भाव से भगवान के रूप मेरा ध्यान करता है, वह मुझको अवश्य ही प्राप्त होता है। (अष्टम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 कविं पुराणमनुशासितार-मणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: ।
 सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप-मादित्यवर्णं तमस: परस्तात् ॥९॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- मनुष्य को चाहिए कि परमपुरुष (परब्रह्म) का ध्यान सर्वज्ञ (हर जगह, समस्त ब्रह्माण्ड के कण-कण में), पुरातन (सबसे प्राचीन), नियन्ता (समस्त ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के नियमों को नियंत्रित करने वाला), लघुतम से भी लघुतर (जिसका स्वरुप सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप में स्थित है), समस्त जीवों के पालनहार (पालनकर्ता, पालने वाला), समस्त भौतिकबुद्धि या समस्त भौतिक दृष्टिकोण से परे, अचिन्त्य (अचिन्त्य अर्थात् जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती है) तथा नित्य पुरुष के रूप में करे। वे सूर्य की भांति तेजवान हैं और इस भौतिक प्रकृति से परे, दिव्य रूप हैं। (नवम श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
 भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥१०॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- मृत्यु के समय जो व्यक्ति अपने प्राण को भौंहों के मध्य (त्रिकुटी) में स्थिर कर लेता है और योगशक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्णभक्ति के साथ परमेश्वर (यानी साक्षात परमात्मा श्री कृष्ण) के स्मरण में स्वयं को लगाता है, वह निश्चित रूप से मुझको (भगवान, परब्रह्म) को प्राप्त होता है। (दशम श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  

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Shrimad  Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog Shlok 11-20 | भगवत गीता अध्याय ८ श्लोक ११-२० 

 यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा: ।
 यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥११॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-  जो वेदों के ज्ञाता हैं, जो ओंकार (ॐकार या ॐ) का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं। ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्य व्रत का अभ्यास करते हैं। अब मैं तुम्हें संक्षेप में वह विधि बताऊंगा, जिससे कोई भी व्यक्ति मोक्ष या मुक्ति-लाभ को प्राप्त कर सकता है। (11वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
 मूर्ध्न्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥१२॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:-  समस्त ऐन्द्रिय क्रियाओं (शरीर के समस्त द्वार से) से विरक्ति को योग की स्थिति (योगधारणा) कहा जाता है। इन्द्रियों के समस्त द्वारों को बंद करके तथा मन को हृदय में और प्राणवायु को सिर पर केन्द्रित करके मनुष्य स्वयं को योग में स्थापित करता है। (12वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
 य: प्रयति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥१३॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- इस योग अभ्यास में स्थित होकर तथा अक्षरों के परम संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि मुझ कृष्ण या भगवान का चिंतन करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों को प्राप्त होता है। (13वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: ।
 तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ॥१४॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- १४॥ हे अर्जुन! जो व्यक्ति अनन्य भाव से नियमित तौर पर तथा निरंतर मेरा स्मरण करता है उसके लिए मैं सुलभ हूं, वह मुझे प्राप्त करता है क्योंकि वह मेरी ही भक्ति में सदैव लगा रहता है। (14वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
 नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ॥१५॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोगी हैं, कभी भी दुःखों से पूर्ण इस अनित्य जगत (दुःखों का घर या संसार) में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि (मोक्ष) की प्राप्त हो चुकी होती है। (15वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
 मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥१६॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- इस जगत में सर्वोच्च लोक (ब्रह्मलोक) से लेकर निम्नतम सारे लोक दुःखों के घर हैं, जहां जन्म तथा मृत्यु का चक्कर लगा ही रहता है और बार-बार पुनर्जन्म लेता है। किन्तु हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता। (16वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: ।
 रात्रिं युगसहस्त्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: ॥१७॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का एक दिन बनता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है। (17वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे ।
 रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥१८॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- ब्रह्मा के दिन के शुभारंभ में ही सारे जीव अव्यक्त (अप्रकट) अवस्था से व्यक्त (प्रकट) होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो पुनः अव्यक्त अवस्था में ब्रह्मा में ही विलीन हो जाते हैं। (18वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
 रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥१९॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- जब-जब ब्रह्मा का दिन आता है तो सारे जीव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा के रात होते ही सारे जीव ब्रह्मा में विलीन हो जाते हैं। (19वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तात्सनातन: ।
 य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥२०॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यक्त प्रकृति है, जो शाश्वत (सनातन) है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से भी परे है। यह परा (श्रेष्ठ) है और यह कभी नाश न होने वाली है। जब इस संसार का सब कुछ लय (नष्ट) हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता। (20वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  

shrimad bhagwat geeta with hindi translation | Shrimad Bhagwat Geeta Yatharoop| Bhagwat Gita Chapter 8

Shrimad  Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog Shlok 21-28 | भगवत गीता अध्याय ८ श्लोक २१-२८ 

 अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम् ।
 यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥२१॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- जिसे वेदान्ती अप्रकट तथा अविनाशी बताते हैं, जो परम गन्तव्य है, जिसे प्राप्त कर लेने से कोई वापस नहीं आता, वही मेरा परम धाम है। (21वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।
 यस्यान्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥२२॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- भगवान, जो सबसे महान हैं, अनन्य प्रेम और भक्ति द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं। यद्यपि वे अपने धाम में विराजमान रहते हैं, तो भी वे सर्वव्यापी हैं और उनमें ही सब कुछ स्थित है। (22वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: ।
 प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥२३॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- हे भरतश्रेष्ठ! अब मैं तुम्हें उन विभिन्न कालों (समय चक्र या कालचक्र) को बताऊंगा, जिनमें इस संसार से प्रयाण (प्राण का त्याग) करने के बाद योगी पुनः आता है अथवा नहीं आता। (23वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta   
 अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् ।
 तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: ॥२४॥  
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- जो परब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्निदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण में रहता है, उन छाह मांसों (6 महीनों) में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परब्रह्म को प्राप्त करते हैं। (24वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् ।
 तत्र चांन्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तन्ते ॥२५॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- जो योगी धुएं, कृष्णपक्ष में या सूर्य के दक्षिणायन में रहने के छह महीनों में दिवंगत होता है, वह चंद्रलोक को जाता है, किन्तु वहां से पुनः (पृथ्वी पर) चला आता है। (25वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 शुक्लपक्ष में गती ह्येते जगत: शाश्वते मते ।
 एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥२६॥
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- वैदिक मतानुसार (वेदों के अनुसार) इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं --- एक प्रकाश का तथा दूसरा अंधकार का। जब मनुष्य प्रकाश के मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला मनुष्य पुनः लौटकर आता है। (26वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 
 नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥२७॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! यद्यपि भक्तगण इन दोनों मार्गों को जानते हैं, किन्तु वे मोहग्रसत नहीं होते। इसलिए तुम भी सदैव योगयुक्त भक्ति स्थिर रहो। (27वें श्लोक)  
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta  
 वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् । 
अत्यति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्॥२८॥ 
भगवत गीता अध्याय 8 हिंदी संस्करण:- तथा सकाम कर्म करने से प्राप्त होने वाले पुण्य कर्मफलों से वंचित नहीं होता। वह मात्र भक्ति सम्पन्न करके इन समस्त फलों की प्राप्ति करता है और अंत में परम नित्यधाम को प्राप्त होता है। (28वें श्लोक) 
ॐ श्रीमद्भगवद्गीता :- Om Shrimad Bhagwat Geeta 

  इस प्रकार भगवत गीता का आठवां अध्याय 'अक्षर ब्रह्म योग' संपन्न होता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के शाश्वत स्वरूप और मृत्यु के बाद के जीवन के रहस्यों को उजागर किया है। इस अध्याय के श्लोक जीवन की अंतिमता और आत्मा की अनंतता को स्पष्ट करते हैं। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि भक्ति और ध्यान के माध्यम से हम जीवन के अंत में परमात्मा की ओर अग्रसर हो सकते हैं। इस प्रकार, यह अध्याय हमें आत्मा की गहनता, मृत्यु की अनिवार्यता और शाश्वत जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस अध्याय का अध्ययन करके हम न केवल जीवन के रहस्यों को समझ सकते हैं, बल्कि आत्मा के शाश्वत स्वरूप और ईश्वर के निकट जाने की दिशा में भी एक ठोस कदम बढ़ा सकते हैं। 

Shrimad Bhagwat Geeta Akshar Brahm Yog| Bhagwat Gita Akshar Brahm Yog| Akshar Brahm Yog

5 Most important Life Changing Lessons |  जीवन परिवर्तक 5 महत्वपूर्ण शिक्षाएँ  

श्रीमद् भगवद् गीता का अध्याय 8, जिसे अक्षर ब्रह्म योग कहा जाता है, हमारे जीवन को गहराई से समझने और इसे अधिक सार्थक बनाने के लिए महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन और मृत्यु के रहस्यों के बारे में बताया है और यह सिखाया है कि कैसे आत्मा अमर होती है और मृत्यु के बाद भी जीवन का चक्र चलता रहता है। आइए जानते हैं इस अध्याय की 5 जीवन परिवर्तक महत्वपूर्ण शिक्षाएँ:
 
1. सबसे पहली शिक्षा- ध्यान और एकाग्रता का महत्व:  भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन में ध्यान और एकाग्रता का बहुत महत्व है। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी मृत्यु के समय अपने मन को स्थिर रखता है और अपने मन को भगवान के चरणों में लगाता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है। ध्यान और एकाग्रता हमारे मन को शांत और स्थिर रखने में मदद करते हैं, जिससे हम अपने जीवन के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। यह शिक्षा हमें सिखाती है कि हमें रोजाना ध्यान करना चाहिए और अपने मन को भगवान की ओर लगाना चाहिए।
2. दूसरी शिक्षा-  आत्मा की अमरता : इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि आत्मा अमर है और यह कभी नहीं मरती। जब शरीर नष्ट होता है, तो आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है। यह शिक्षा हमें यह समझने में मदद करती है कि हमें अपनी आत्मा की पहचान करनी चाहिए और अपने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भगवान की शरण में जाना चाहिए। आत्मा की अमरता का ज्ञान हमें जीवन के प्रति एक नई दृष्टि देता है और हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
3. तीसरी शिक्षा- भक्ति योग का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि भक्ति योग के माध्यम से व्यक्ति भगवान को प्राप्त कर सकता है। भक्ति योग का अर्थ है भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा और प्रेम। जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है और अपने जीवन को भगवान के चरणों में समर्पित करता है, वह जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। भक्ति योग हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और प्रेम रखना चाहिए और अपने सभी कार्यों को भगवान को समर्पित करना चाहिए।
4. चौथी शिक्षा- समय का सही उपयोग: श्रीमद् भगवद् गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि समय का सही उपयोग कैसे किया जाए। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने जीवन का समय भगवान की भक्ति में लगाता है और अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है। यह शिक्षा हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन के हर क्षण को मूल्यवान समझना चाहिए और इसे सही दिशा में उपयोग करना चाहिए। हमें अपने समय को भगवान की भक्ति, ध्यान और सेवा में लगाना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को सार्थक बना सकें।
5. पाँचवीं शिक्षा- मृत्यु का सही ज्ञान: इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मृत्यु के सही ज्ञान के बारे में बताया। वे कहते हैं कि मृत्यु एक नया आरंभ है और यह आत्मा के लिए एक नए जीवन की शुरुआत है। मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है और पुनर्जन्म का चक्र चलता रहता है। यह शिक्षा हमें मृत्यु के डर से मुक्त करती है और हमें यह समझने में मदद करती है कि मृत्यु एक नई शुरुआत है। हमें मृत्यु के बारे में सही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और अपने जीवन को भगवान की भक्ति और सेवा में लगाना चाहिए।

 श्रीमद् भगवद् गीता का अध्याय 8, अक्षर ब्रह्म योग, हमें जीवन के गहरे रहस्यों और महत्व को समझने में मदद करता है। ध्यान, आत्मा की अमरता, भक्ति योग, समय का सही उपयोग और मृत्यु का सही ज्ञान - ये पाँच शिक्षाएँ हमारे जीवन को सार्थक और सफल बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें और अपने जीवन को सफल और सुखी बनाएं।
 
Shrimad Bhagwat Geeta Deepgyan| Shrimad Bhagwat Geeta Yatharoop in Hindi| Bhagwat Geeta Chapter 8 with Shlokas

 5 Beneficial Knowledge of Akshar Brahma Yoga | अक्षर ब्रह्म योग की 5 लाभदायक ज्ञानवर्धक बातें 

 श्रीमद् भागवत गीता, जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद का अद्भुत ग्रंथ है, हमारे जीवन को मार्गदर्शन देने के लिए अनेक महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करती है। गीता का 8वां अध्याय "अक्षर ब्रह्म योग" हमारे जीवन में आध्यात्मिकता और ज्ञान का अभूतपूर्व सागर है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को स्थायी और शाश्वत सत्य का ज्ञान प्रदान किया है। आइए जानते हैं इस अध्याय के 5 लाभकारी एवं मूल्यवान ज्ञान, जो हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में परिवर्तित कर सकते हैं।
 
1. परम धाम की प्राप्ति का ज्ञान: अक्षर ब्रह्म योग में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि आत्मा अमर है और मृत्यु के बाद परमात्मा के धाम को प्राप्त करने का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अंत समय में मुझे स्मरण करता है, वह मेरे धाम को प्राप्त करता है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि मृत्यु के समय हमें किस प्रकार के विचार रखने चाहिए और कैसे अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना चाहिए।
2. अनन्य भक्ति का ज्ञान : भगवान श्रीकृष्ण ने अनन्य भक्ति को सर्वोपरि बताया है। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अनन्य भक्ति के साथ मुझे स्मरण करता है, वह सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है और अंत में मुझे ही प्राप्त करता है। अनन्य भक्ति का महत्व यह है कि यह हमें जीवन के हर क्षण में भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम बनाए रखने की प्रेरणा देती है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि भक्ति ही हमारे जीवन को सही दिशा में ले जा सकती है।
3. एकाग्रता और ध्यान का ज्ञान: अक्षर ब्रह्म योग में भगवान श्रीकृष्ण ने ध्यान और एकाग्रता का महत्व बताया है। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित करके मेरे में ध्यान लगाता है, वह मुझे ही प्राप्त करता है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि एकाग्रता और ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है, जिससे हम जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
4. कर्मफल के सिद्धांत का ज्ञान : भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म और उसके फल का सिद्धांत स्पष्ट किया है। वे कहते हैं कि हर व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त करता है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए और सच्चाई, ईमानदारी और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए। यह सिद्धांत हमें जीवन में सही और गलत के बीच के भेद को समझने में मदद करता है और हमें नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देता है।
5. आत्मा की अमरता का ज्ञान: श्रीमद् भागवत गीता के इस अध्याय में आत्मा की अमरता का ज्ञान दिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह अविनाशी और शाश्वत है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हमारा वास्तविक स्वरूप आत्मा है और हमें आत्मा के स्तर पर जीना चाहिए। यह हमें जीवन के दुखों से उबरने और आत्मज्ञान प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करता है।

  श्रीमद् भागवत गीता का 8वां अध्याय "अक्षर ब्रह्म योग" हमारे जीवन के लिए अनेक महत्वपूर्ण और मूल्यवान ज्ञान प्रदान करता है। परम धाम की प्राप्ति, अनन्य भक्ति, एकाग्रता और ध्यान, कर्म और फल का सिद्धांत, और आत्मा की अमरता के ज्ञान से हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं। यह अध्याय हमें सिखाता है कि सच्चाई, ईमानदारी, और भक्ति के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सफल और संतुलित बना सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के इस ज्ञान का पालन करके हम अपने जीवन को समृद्ध और आनंदमय बना सकते हैं।
 इस ज्ञान का पालन करने से हमें न केवल आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, बल्कि हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भी सुधार होता है। गीता का यह अध्याय हमें जीवन के सही मायने समझाता है और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है। आइए, हम सभी इस अमूल्य ज्ञान को अपने जीवन में अपनाएं और अपने जीवन को बेहतर बनाएं। श्रीमद् भागवत गीता के इस अद्भुत अध्याय से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्चाई और भक्ति के मार्ग पर चलना ही जीवन का सही उद्देश्य है। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का पालन करके हम अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जा सकते हैं और अपने जीवन को सफल और संतुलित बना सकते हैं।

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 Conclusion of Bhagwat Geeta Chapter 8 | भगवत गीता अक्षर ब्रह्मयोग का सार

  अक्षर ब्रह्मयोग भगवद् गीता का एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो आत्मा के निरंतर परमात्मा के साथ संयोग और मोक्ष की प्राप्ति के उपायों को बताता है। यह अध्याय व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है। इसका अध्ययन और अनुसरण करने से व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित और प्रासंगिक बना सकता है। यह अध्याय भगवद् गीता के और भी अनेक महत्वपूर्ण योगों और ज्ञान के संदेशों के साथ विशेष रूप से उपयोगी है, जो व्यक्ति को जीवन के समस्याओं का समाधान ढूँढने में सहायक होते हैं। इस अध्याय का अध्ययन और समझना हर धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
   हमारे इस लेख Shrimad Bhagwat Gita Akshar Brahm Yog   के बारे में आपके विचार और सुझाव क्या हैं? कृपया हमें अपने विचार साझा करें और इस लेख को अधिक से अधिक लोगों के साथ साझा करें ताकि वे भी श्रीमद् भागवत गीता के आठवें अध्याय 'अक्षर ब्रह्म योग' की महत्वपूर्णता को समझ सकें। इस ब्लॉग पोस्ट को लिखने का उद्देश्य आपको श्रीमद् भगवत गीता के आठवें अध्याय "अक्षर ब्रह्म योग" के महत्वपूर्ण संदेश और शिक्षाओं से अवगत कराना है। आशा है कि यह लेख आपको ज्ञानवर्धक लगा होगा और आप इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएंगे। अब  हमारी मुलाकात भगवत गीता अगले अध्याय राजविद्या राजगुह्ययोग में होगी, तब तक के लिए आप हमें आज्ञा दीजिए नमस्कार एवं जय श्री कृष्ण! 

What is Akshar Brahm Yog| Bhagwat Gita Akshar Brahm Yog| Akshar Brahm Yog Kya Hai | अक्षर ब्रह्मयोग क्या है?

 FAQs: Bhagwat Geeta Chapter 8 Gyan Vigyan Yog | श्रीमद् भागवत गीता प्रश्नोत्तरी- अक्षर ब्रह्मयोग 

 भगवद गीता का 8वां अध्याय 'अक्षर ब्रह्म योग' एक बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय है जो जीवन, मृत्यु और आत्मा के विषय में गहन ज्ञान प्रदान करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता और परम सत्य के बारे में बताते हैं। यह अध्याय विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो मृत्यु के समय की महत्ता और उस समय आत्मा के गंतव्य के बारे में जानना चाहते हैं। अब इस लेख में, हम 'अक्षर ब्रह्म योग' से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं, जो अक्सर लोगों के मन में उठते हैं।

1. श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 को क्या कहते हैं? ? 
ॐ: श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 को "अक्षर ब्रह्म योग" कहा जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने मृत्यु के समय ध्यान और योग की प्रक्रिया के बारे में अर्जुन को समझाया है। 
2. अक्षर ब्रह्म योग का महत्व क्या है? 
ॐ: अक्षर ब्रह्म योग यानी भगवत गीता के 8वें अध्याय का महत्व इसलिए है क्योंकि यह मनुष्य को जीवन और मृत्यु के बीच का सही संबंध समझने का अवसर प्रदान करता है। यह अध्याय यह सिखाता है कि कैसे सही समय पर सही साधना और ध्यान द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
3. अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कौन-कौन से प्रश्न पूछे? 
ॐ: अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से आठ प्रश्न पूछे थे, जो इस प्रकार हैं: 
1. ब्रह्म क्या है?
2. आत्मा क्या है?
3. कर्म क्या है?
4. अधिभूत क्या है?
5. अधिदैव क्या है?
6. अधियज्ञ कौन है और कहाँ वास करता है?
7. मृत्यु के समय आत्मा का क्या होता है?
8. किस प्रकार का ध्यान और योग मृत्यु के समय करना चाहिए?
4. गीता के आठवें अध्याय अक्षर ब्रह्म योग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या सलाह दी है? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के आठवें अध्याय अक्षर ब्रह्म योग में अर्जुन को सलाह देते हुए कहा है कि व्यक्ति को हमेशा भक्ति और ध्यान में लीन रहना चाहिए। जीवन के अंत समय में भगवान का स्मरण और 'ओम' का उच्चारण करना चाहिए ताकि मोक्ष प्राप्त हो सके।
5. अक्षर ब्रह्म या अक्षर ब्रह्म योग का क्या अर्थ है? 
ॐ:  'अक्षर' का अर्थ है 'अविनाशी' और 'ब्रह्म' का अर्थ है 'सर्वोच्च आत्मा'। अक्षर ब्रह्म योग वह योग है जिसमें व्यक्ति अपने अविनाशी आत्मा की पहचान करता है और ब्रह्म के साथ एकरूपता स्थापित करता है। यह योग मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
6. मृत्यु के समय आत्मा का क्या होता है? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में यह बात कहा है कि मृत्यु के समय आत्मा अपने कर्मों के अनुसार नया शरीर धारण करती है। यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में धर्म का पालन किया है और भक्ति भाव से जीया है, तो उसे उत्तम गति प्राप्त होती है।
7. अधिदैव क्या है? 
ॐ: गीता में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशानुसारअधिदैव देवताओं से संबंधित है। यह तत्व उन ईश्वरीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं का संचालन करती हैं। यह ग्रह, नक्षत्र, और देवताओं की शक्तियों का सार है।
8. अधिभूत क्या है? 
ॐ: गीता में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशानुसार अधिभूत वह तत्व है जो भौतिक जगत से संबंधित है। यह पांच भूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) का समष्टि रूप है, जो सृष्टि के निर्माण में सहायक होते हैं।
9.  भगवान श्रीकृष्ण ने योग को कैसे परिभाषित किया? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने योग को मन और आत्मा की एकाग्रता और शुद्धि के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने कहा कि योग व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ता है और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। 
10. मृत्यु के समय ध्यान का क्या महत्व है? 
ॐ: मृत्यु के समय ध्यान का अत्यधिक महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय ध्यान में लीन रहता है और 'ओम' का उच्चारण करता है, वह परमात्मा को प्राप्त होता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
11. मोक्ष प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए? 
ॐ: मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को धर्म का पालन, भक्ति, और ध्यान करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण और 'ओम' का जाप करना चाहिए। मृत्यु के समय शांत और स्थिर मन से भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है। 
12. अक्षर ब्रह्म योग में मृत्यु का क्या महत्व है
ॐ: अक्षर ब्रह्म योग में मृत्यु का महत्व यह है कि यह व्यक्ति के अगले जीवन की दिशा निर्धारित करती है। मृत्यु के समय की चेतना और ध्यान मोक्ष प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
13. श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 का सारांश क्या है? 
ॐ: श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 का सारांश यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मृत्यु, आत्मा की अमरता, ध्यान और योग की विधि के बारे में बताया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मृत्यु के समय 'ओम' का उच्चारण और भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।
14. 'ओम' का उच्चारण करने का महत्व क्या है?  
ॐ: गीता में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेश अनुसार 'ओम' का उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह परमात्मा का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय 'ओम' का उच्चारण करता है, वह परमात्मा को प्राप्त होता है और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। 
15. अक्षर ब्रह्म योग में भगवान श्रीकृष्ण ने क्या सलाह दी है? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षर ब्रह्म योग में सलाह दी है कि व्यक्ति को हमेशा भक्ति और ध्यान में लीन रहना चाहिए। जीवन के अंत समय में भगवान का स्मरण और 'ओम' का उच्चारण करना चाहिए ताकि मोक्ष प्राप्त हो सके।
16. अक्षर ब्रह्म योग का पालन कैसे करें? 
ॐ: अक्षर ब्रह्म योग का पालन करने के लिए व्यक्ति को नियमित ध्यान और साधना करनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और 'ओम' का जाप करते हुए अपनी चेतना को शुद्ध और स्थिर बनाना चाहिए। 
17. मोक्ष प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?? 
ॐ: मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को धर्म का पालन, भक्ति, और ध्यान करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण और 'ओम' का जाप करना चाहिए। मृत्यु के समय शांत और स्थिर मन से भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है।
18. अक्षर ब्रह्म योग में मृत्यु का क्या महत्व है? 
ॐ: अक्षर ब्रह्म योग में मृत्यु का महत्व यह है कि यह व्यक्ति के अगले जीवन की दिशा निर्धारित करती है। मृत्यु के समय की चेतना और ध्यान मोक्ष प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
19.  भगवान श्रीकृष्ण ने योग को कैसे परिभाषित किया? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने योग को मन और आत्मा की एकाग्रता और शुद्धि के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने कहा कि योग व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ता है और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है।
20. श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 का सारांश क्या है?   
ॐ: श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 का सारांश यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मृत्यु, आत्मा की अमरता, ध्यान और योग की विधि के बारे में बताया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मृत्यु के समय 'ओम' का उच्चारण और भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।
21. अक्षर ब्रह्म योग के अनुसार किस प्रकार का ध्यान करना चाहिए? 
ॐ: अक्षर ब्रह्म योग के अनुसार व्यक्ति को मृत्यु के समय 'ओम' का उच्चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण के परमधाम का स्मरण करना चाहिए। यह ध्यान व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त करने में सहायक होता है।।
22. अधियज्ञ क्या है?
ॐ: अधियज्ञ वह परमात्मा है जो यज्ञों में प्रतिष्ठित होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि अधियज्ञ वही ईश्वर है, जो प्रत्येक प्राणी के हृदय में निवास करता है और यज्ञों के माध्यम से पूजित होता है।
23. मृत्यु के समय चेतना का क्या प्रभाव होता है?
ॐ: मृत्यु के समय व्यक्ति की चेतना का बड़ा प्रभाव होता है। यदि व्यक्ति का मन शांत और स्थिर है और वह भगवान का स्मरण कर रहा है, तो उसकी आत्मा परमात्मा को प्राप्त होती है। मन की अशांति और विचलन आत्मा को निम्न गति की ओर ले जा सकता है।
24. कर्म को भगवान श्रीकृष्ण ने किस प्रकार समझाया?
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को धार्मिक और नैतिक कर्तव्यों के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने कहा कि जो कार्य धर्म और सत्य के अनुरूप हो, वही कर्म कहलाता है। कर्म के अनुसार ही व्यक्ति का जीवन और मृत्यु के बाद का भाग्य निर्धारित होता है।
25. भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म और आत्मा को कैसे परिभाषित किया? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म को परिभाषित करते हुए कहा कि ब्रह्म वह शाश्वत और अपरिवर्तनीय तत्व है जो सर्वत्र व्याप्त है। यह आत्मा का परम स्वरूप है और सृष्टि का मूल कारण है और श्रीकृष्ण ने आत्मा को परिभाषित करते हुए यह बताया है कि आत्मा अविनाशी और शाश्वत है। आत्मा शरीर में निवास करती है और शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। यह जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है। 
26. गीता के अनुसार अधियज्ञ क्या है?
ॐ: गीता के अनुसार अधियज्ञ वह परमात्मा है जो यज्ञों में प्रतिष्ठित होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि अधियज्ञ वही ईश्वर है जो प्रत्येक प्राणी के हृदय में निवास करता है और यज्ञों के माध्यम से पूजित होता है।
27. भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म को कैसे परिभाषित किया?
ॐ: भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्म को अनंत, अविनाशी और सर्वशक्तिमान के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने कहा कि ब्रह्म वह है जो समय, स्थान और कारण से परे है, और जिसने संसार की रचना की है। ब्रह्म ही समस्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का मूल कारण है और श्रीकृष्ण ने कहा है कि ब्रह्म को प्राप्त करना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है।
28. कर्म को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में किस प्रकार समझाया?
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म को धार्मिक और नैतिक कर्तव्यों के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने कहा कि जो कार्य धर्म और सत्य के अनुरूप हो, वही कर्म कहलाता है। कर्म के अनुसार ही व्यक्ति का जीवन और मृत्यु के बाद का भाग्य निर्धारित होता है।
29. मृत्यु के समय ध्यान का क्या महत्व है?
ॐ: मृत्यु के समय ध्यान का अत्यधिक महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय ध्यान में लीन रहता है और 'ओम' का उच्चारण करते हुए भगवान को स्मरण करता है, वह परमात्मा को प्राप्त होता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
30. मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? 
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्मों के अनुसार नया शरीर धारण करती है। यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में धर्म का पालन किया है और भक्ति भाव से जीया है, तो उसे उत्तम गति प्राप्त होती है।
31. गीता के 8वें अध्याय का सबसे महत्वपूर्ण श्लोक कौन सा है? 
ॐ: ? गीता के 8वें अध्याय का श्लोक 5 (अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवलम् । यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ...) सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय मुझे स्मरण करता हुआ इस शरीर का त्याग करता है, वह सीधे मेरे धाम को प्राप्त होता है।
32. भगवान श्रीकृष्ण ने किसे ब्रह्म कहा है?  
ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म को परम तत्व, जो न तो जन्म लेता है, न ही मरता है, के रूप में परिभाषित किया है। यह वह अद्वितीय तत्व है जो सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिरता और विनाश का मूल कारण है। इसे ही ब्रह्म कहा गया है।
33. भगवद गीता का अध्याय 8 क्या समझाता है तथा इस अध्याय का सार क्या है?   
ॐ: अध्याय 8, जिसे अक्षर ब्रह्म योग कहा जाता है, जीवन के परम सत्य को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई शिक्षा है। इसमें जीवन, मृत्यु और मोक्ष का विस्तृत वर्णन है। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि मृत्यु के समय किस तरह की अवस्था में व्यक्ति का अंत होना चाहिए ताकि वह मोक्ष प्राप्त कर सके तथा इस 8वें अध्याय का सार यह है कि जीव को मृत्यु के समय अपनी आत्मा को किस प्रकार भगवान में लीन करना चाहिए ताकि वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सके और मोक्ष प्राप्त कर सके। यह अध्याय साधना और ईश्वर भक्ति के महत्व पर जोर देता है।
34. गीता के अध्याय 8 श्लोक 16 में क्या लिखा है? ग 
ॐ:  गीता के अध्याय 8 श्लोक 16 (आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन । मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ...) में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मलोक तक के सभी लोक पुनः पुनः जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधे हैं। केवल मेरे धाम को प्राप्त व्यक्ति इस चक्र से मुक्त होता है।
35. गीता के 8वें अध्याय में कितने श्लोक हैं और इस अध्याय का मूल उपदेश क्या है?   
ॐ:  भगवद गीता के 8वें अध्याय में कुल 28 श्लोक हैं, जो जीवन और मृत्यु के रहस्यों पर गहन चर्चा करते हैं और आत्मा के अमरत्व को स्पष्ट करते हैं। इस अध्याय का मूल उपदेश यह है कि मृत्यु के समय व्यक्ति का ध्यान यदि भगवान में लीन हो, तो वह व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है। इसके लिए आवश्यक है कि जीवनभर ईश्वर का स्मरण और सच्चे कर्मों का पालन किया जाए।

🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः  🚩🚩🚩

Disclaimer: जरूरी सूचना यह है कि "श्रीमद् भगवद् गीता" एक प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जो भारतीय साहित्य और दार्शनिक विचारों का अमूल्य तथा अतुलनीय हिस्सा है। यह ग्रंथ धार्मिक और आध्यात्मिक सन्देशों का संग्रह है और इसे समझने और उस पर अमल करने के लिए गहरी अध्ययन और आध्यात्मिक समझ की आवश्यकता होती है। हमारे इस ब्लॉग "Om- Shrimad-Bhagwat-Geeta (www.shrimadbhagwatgeeta.in)" पर प्रस्तुत सभी जानकारी और सामग्री केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की गई है। यहां दी गई जानकारी को सटीक और अद्यतित रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन हम किसी भी प्रकार की पूर्णता, सटीकता, विश्वसनीयता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देते हैं। किसी भी सूचना या व्याख्या की पुष्टि के लिए, यह वेबसाईट जिम्मेदारी नहीं है। इसके सही पुष्टि के लिए आपको सनातन धर्म के संस्कृत विशेषज्ञों, धार्मिक गुरुओं या सम्प्रदायिक आचार्यों से परामर्श लेना चाहिए। यहां प्रस्तुत की गई सभी सामग्री केवल सनातन जानकारी और सनातन संस्कृति को प्रेरित करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है, इसका कोई अन्य उपयोग या उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए उपयोगकर्ता किसी भी जानकारी पर अपनी टिप्पणी करने से पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें।


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