Shrimad Bhagwat Gita: विभूति योग का सम्पूर्ण विवरण! Shrimad Bhagwat Gita Vibhuti Yog
जय श्रीकृष्ण मित्रों! श्रीमद्भगवद्गीता, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आती है, एक दिव्य ग्रंथ है जो जीवन के गहन सत्य और मार्गदर्शन की दिशा में प्रकाश डालती है। गीता के दसवें अध्याय को 'विभूतियोग' कहा जाता है, जो 'ईश्वर की विभूतियाँ' या 'प्रभुत्व' के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य विभूतियों का वर्णन किया है, जिससे भक्तों को उनके अद्वितीय गुण और शक्ति की साक्षात्कार प्राप्त होता है। आज हम "Shrimad Bhagwat Gita Vibhuti Yog" के इस लेख में विभूतियोग के विभिन्न पहलुओं को समझेंगे, उसके महत्व को जानेंगे और अंत में इस अध्याय का सारांश प्रस्तुत करेंगे।
Shrimad Bhagwat Gita Vibhuti Yog | भगवत गीता अध्याय १० विभूति योग
What is Vibhuti Yoga | विभूतियोग क्या है?
Vibhuti Yog Krishna's message | विभूति योग में श्रीकृष्ण का संदेश
1. भगवान की दिव्य विभूतियाँ: विभूति योग में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि उनकी विभूतियाँ अनंत हैं। यह संसार उनकी शक्ति, ज्ञान और ऐश्वर्य का विस्तार है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि वे प्रत्येक महान वस्तु, गुण और घटना में व्याप्त हैं। इस संदेश का गहरा अर्थ है कि हमें हर वस्तु में ईश्वर का रूप देखना चाहिए। इससे हमारे अंदर अहंकार का नाश होता है और हम जीवन को भगवान की दृष्टि से देखने में सक्षम हो पाते हैं। जब हम हर जीव और वस्तु में ईश्वर को देखते हैं, तो हममें दूसरों के प्रति करुणा और सम्मान की भावना जागृत होती है। |
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2. स्वयं को भगवान से जोड़ने का ज्ञान: विभूति योग में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि वे हर व्यक्ति के अंदर निवास करते हैं। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि आत्म-ज्ञान के माध्यम से हम अपने भीतर ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं। यह ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि हम केवल एक शरीर नहीं हैं, बल्कि हमारे अंदर भी वही दिव्य ऊर्जा विद्यमान है जो इस पूरे ब्रह्मांड को चलाती है। जब हम इस सत्य को समझ लेते हैं, तो जीवन की उलझनों में हम अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचान सकते हैं। |
3. धर्म का पालन और अनुशासन: भगवान श्रीकृष्ण विभूति योग में कहते हैं कि वे धर्म के पालन में, सत्य के अनुसरण में और न्याय के कार्यों में निवास करते हैं। यह संदेश हमें सिखाता है कि धर्म और अनुशासन के मार्ग पर चलने से हम ईश्वर के और निकट आ सकते हैं। जीवन में सच्चाई, न्याय और धर्म का पालन करना हमारी आत्मा को शुद्ध करता है और हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। यह संदेश हमें बताता है कि जब हम धर्म का पालन करते हैं, तो हम ईश्वर के साथ एक हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। |
4. महान विभूतियों का आदर: विभूति योग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों के रूप में कई महान आत्माओं, महापुरुषों और दिव्य घटनाओं का उल्लेख किया है। इसका अर्थ यह है कि हमें उन विभूतियों का आदर करना चाहिए जो हमें सही मार्ग दिखाते हैं। चाहे वे हमारे गुरु हों, हमारे माता-पिता, या कोई महान आत्मा, उनका सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है। इस संदेश के माध्यम से भगवान हमें यह सिखाते हैं कि जिनसे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, उनका आदर और आभार व्यक्त करना आवश्यक है। यह हमें विनम्र बनाता है और हमारी आत्मा को उन्नत करता है। |
5. हर चुनौती में भगवान का आशीर्वाद: श्रीकृष्ण विभूति योग में कहते हैं कि वे हर चुनौती, संघर्ष और विपरीत परिस्थितियों में हमारे साथ होते हैं। यह संदेश हमें यह समझने में मदद करता है कि जीवन में आने वाली हर कठिनाई ईश्वर की इच्छा है और वह हमें कुछ सिखाना चाहते हैं। हमें हर चुनौती को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए और उसमें से कुछ नया सीखने का प्रयास करना चाहिए। जब हम इस दृष्टिकोण से जीवन को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि हमारे संघर्ष वास्तव में हमारी उन्नति का मार्ग हैं और ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं। |
Bhagavad Gita Chapter 10 verses | भगवद गीता अध्याय 10 के श्लोक
Sanskrit shlokas in Vibhuti Yog 1-10| भगवत गीता अध्याय 10 श्लोक १-१०
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि वे ही इस ब्रह्मांड के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। वे ही इस संसार की सभी विभूतियों के मूल कारण हैं और वे ही सब कुछ हैं।विभूतियोग हमें यह सिखाता है कि हमें हर उस चीज़ में भगवान की उपस्थिति को महसूस करना चाहिए, जो हमें इस संसार में दिखाई देती है। हमें यह समझना चाहिए कि भगवान की महिमा केवल मन्दिरों और मूर्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे इस संसार के हर कण में विद्यमान हैं। वे ही इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण हैं और वे ही सब कुछ हैं। इस अध्याय का उद्देश्य यह है कि इंसान भगवान की महानता को समझे और उसे अपने जीवन में आत्मसात करे। विभूतियोग हमें यह सिखाता है कि हमें भगवान की महिमा का ध्यान करना चाहिए और उन्हें अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनकी विभूतियों को समझकर ही हम सच्चे अर्थों में जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और इसे सफल बना सकते हैं। आइए फिर Shrimad Bhagwat gita Vibhuti Yog के इस अध्याय के श्लोक एवं उसकी शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन का उद्धार करें।
श्रीभगवानुवाच :- भूत एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः । यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - हे महाबाहु अर्जुन! अब आगे सुनो। चूंकि तुम मेरे प्रिय सखा (मित्र) हो, अतः मैं तुम्हारे हित के लिए तुम्हें ऐसा ज्ञान देने जा रहा हूं, जो अभी तक मेरे द्वारा बताये गये सभी ज्ञानों से श्रेष्ठ होगा। (प्रथम श्लोक) |
न मे विदु: सुरगणा: प्रभवं च महर्षय: । अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वश: ॥२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- न तो देवतागण मेरी उत्पति या ऐश्वर्य को जानने हैं और न ही महर्षिगण जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी कारणस्वरूप (उद्गम अर्थात् सभी देवताओं तथा महर्षियों का उद्भव ब्रह्म यानी कृष्ण से ही हुआ है) हूं। (द्वितीय श्लोक) |
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् । असम्मूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त लोकों के स्वामी के रूप में जानता है, मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त होता है। (तृतीय श्लोक) |
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: । सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥४॥ अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: । भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- बुद्धि, ज्ञान, संशयरहित व मोहरहित (बिना संशय/संदेह तथा बिना मोह के), क्षमाभाव, सत्यता, इन्द्रियनिग्रह, मननिग्रह, सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु, भय-अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि (संतोष), तप (तपस्या), दान, यश तथा अपयश --- जीवों के ये विविध प्रकार के गुण मेरे द्वारा ही उत्पन्न हैं। (चतुर्थ-पंचम श्लोक) |
महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा । मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: ॥६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- सप्तर्षिगण तथा उनसे भी पूर्व चार अन्य महर्षि एवं सारे मनु (मानव जाति के पूर्वज) सब मेरे मन से उत्पन्न हुये हैं और विभिन्न लोकों में निवास करने वाले जीव (संतानें) उनसे अवतरित होते हैं। (षष्ठम श्लोक) |
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वत:। सोऽविकल्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: ॥७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- जो मेरे इस ऐश्वर्य (विभूतियों) तथा योग से पूर्णतया आश्वस्त है (अर्थात् जो भगवान के विभूतियों व योगमाया को पूर्णतया जानता है), वह मेरी अनन्य भक्ति में में तत्पर होता है। इनमें तनिक भी संदेह नहीं है। (सप्तम श्लोक) |
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते । इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता ॥८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूं, प्रत्येक वस्तु मुझसे ही उद्भूत (उत्पन्न होता) है। जो बुद्धिमान यह भलीभांति जानते हैं, वे मेरी भक्ति करते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी ही पूजा में तत्पर रहते हैं। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कहकर स्पष्ट बता रहे हैं कि भक्ति तथा पूजा का केवल यह मतलब नहीं है कि मनुष्य हमेशा भगवान की भक्ति व पूजा-अर्चना में लगा रहे और अपने सभी कर्मों का त्याग कर दे। बल्कि भगवान यहां कहना चाहते हैं कि मनुष्य अपने सभी कर्मों को निष्काम भाव तथा स्वयं को अकर्ता मानकर उन कर्मों को अपना कर्तव्य समझकर करना चाहिए तथा भगवान पर आस्था एवं विश्वास रखना चाहिए और उनकी भक्ति करना चाहिए। (अष्टम श्लोक) |
मच्चिता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम्। कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मेरे शुद्धभक्तों (पवित्र विचार रखने वाले परम् भक्तों) के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में ही अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हैं तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष (परम शान्ति) तथा आनंद का अनुभव करते हैं। (नवम श्लोक) |
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् । ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ती ते ॥१०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- जो मनुष्य प्रेमपूर्वक (अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण या परमब्रह्म की भक्ति में लीन रहते हुए) मेरी सेवा में करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूं, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। (दशम श्लोक) |
Sanskrit shlokas in Vibhuti Yog 11-20 | भगवत गीता अध्याय १० श्लोक ११-२०
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: । नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥११॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं उन पर अपनी विशेष कृपा करने हेतु उनके हृदय में ही वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य (उनके अज्ञानता को) अंधकार को दूर करता हूं। (11वें श्लोक) |
अर्जुन उवाच :- परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् । पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥१२॥ आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा । असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥१३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- अर्जुन ने कहा - आप ही परम ब्रह्म (परम भगवान), परम धाम, परम पवित्र, परम सत्य हैं। आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कर रहे हैं अर्थात् आप ही मुझे स्वयं अपने महिमा को बता रहे हैं। (12वें-13वें श्लोक) |
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव । न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवा: ॥१४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे केशव (श्रीकृष्ण) ! आपने मुझसे जो कुछ भी कहा है, उसे मैं पूर्णरूप (पूरी तरह) से सत्य मानता हूं। हे प्रभु! न तो देवतागण, और न ही असुरगण आपके वास्तविक स्वरूप को समझ सकते हैं। (14वें श्लोक) |
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम । भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥१५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे परमपुरुष, हे सबके उद्गम कर्ता, हे समस्त प्राणियों के स्वामी, हे देवों के देव, हे समस्त जगत के प्रभु (जगतपति)! निस्संदेह एकमात्र आप ही अपने आप (स्वयं) को पूरी तरह जानते हैं । (15वें श्लोक) |
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: । याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥१६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- कृपा करके विस्तार पूर्वक आप मुझे अपने उन दैवीय (अलौकिक) ऐश्वर्यों (विभूतियों व स्वरूपों) को बतायें, जिनके द्वारा आप इन समस्त लोकों (संपूर्ण ब्रह्माण्ड) में व्याप्त (समाये हुए) हैं। (16वें श्लोक) |
कथं विद्यामहं सदा परिचिन्तयन् । केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥१७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे परम योगी श्रीकृष्ण! मैं किस तरह (कैसे) आपका निरंतर चिंतन करूं और आपको कैसे जानूं? हे भगवान्! मेरे द्वारा आपका स्मरण किन-किन रूपों में किया जाये? अर्थात् मैं आपको किन-किन रूपों में जान कर स्मरण करूं व आपके किन-किन वास्तविक रूपों को जान सकूं और उन रूपों को स्मरण कर सकूं। (17वें श्लोक) |
विस्तरेणात्मनो योगं विभूति च जनार्दन । भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥१८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे जनार्दन! कृपया करके आप अपने ऐश्वर्य तथा योगशक्ति का पुनः विस्तारपूर्वक वर्णन करें। मैं आपके विषय में सुनकर कभी भी तृप्त नहीं होता हूं, क्योंकि जितना ही आपके विषय में सुनता हूं, उतना ही आपके विषय जानने की मेरी जिज्ञासा बढ़ती जाती है और उतना ही मैं आपके शब्द-अमृत को चखना (ग्रहण करना व सुनना) चाहता हूं। (18वें श्लोक) |
श्रीभगवानुवाच :- हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय: । प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥१९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - हां, अब मैं तुमसे अपने मुख्य-मुख्य वैभवयुक्त रूपों का वर्णन करूंगा, क्योंकि हे कुरुश्रेष्ठ (कुरुवंशियों में से श्रेष्ठ अर्जुन)! मेरा ऐश्वर्य असीम है। (19वें श्लोक) |
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥२०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! मैं ही समस्त जीवों के हृदयों में स्थित परमात्मा हूं। मैं ही समस्त जीवों का आदि, मध्य और अंत हूं। (20वें श्लोक) |
Sanskrit shlokas in Vibhuti Yog 21-30 | भगवत गीता अध्याय १० श्लोक २१-३०
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् । मरीचिर्मतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥२१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं आदित्यों में विष्णु हूं, समस्त ज्योतियों (प्रकाशों) में तेजस्वी सूर्य हूं, मरुतों में मरीचि तथा नक्षत्रों में शशी (चंद्रमा) हूं । (21वें श्लोक) |
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: । इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥२२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं वेदों में सामवेद हूं, देवताओं में स्वर्ग लोक का राजा इन्द्र हूं, इन्द्रियों में मन हूं तथा समस्त जीवों में मैं ही चेतना (जीवनी शक्ति व प्राण) हूं। (22वें श्लोक) |
रुद्राणां शङ्करश्चामि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् । वसूनां पावकश्चामि मेरु: शिखरिणामहम् ॥२३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं समस्त रुद्रों में शिव हूं, यक्षों तथा राक्षसों में धन-संपत्ति का देवता कुबेर हूं, वसुओं में अग्नि हूं और समस्त पर्वतों में में मेरु (मेरु पर्वत) हूं। (23वें श्लोक) |
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् । सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर: ॥२४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! तुम मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित बृहस्पति जानो (समझ)। मैं ही समस्त सेना नायकों में कार्तिकेय हूं और समस्त जलाशयों में मैं ही समुद्र हूं। (24वें श्लोक) |
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय: ॥२५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं ही महर्षियों में भृगु (भृगु ऋषि) हूं, वाणी में दिव्य ॐकार (ओंकार) हूं, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) हूं तथा समस्त अंचलों (जड़ पदार्थों) में हिमालय पर्वत हूं। (25वें श्लोक) |
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: । गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिल मुनि: ॥२६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ (पीपल का वृक्ष) वृक्ष हूं और देवर्षियों में नारद हूं। मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूं तथा सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूं। (26वें श्लोक) |
उच्चै: श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥२७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- अश्वों (घोड़ों) में मुझे उच्चै:श्रवा जानो, जो समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था। मुख्य हाथियों में मैं ऐरावत (ऐरावत हाथी) हूं तथा मनुष्यों में राजा हूं। (27वें श्लोक) |
आयुधानाणहं वज्रं धेनूनामस्मी कामधुक् । प्रजनश्चास्मी कन्दर्प: सर्पाणामस्मि वासूकि: ॥२८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं शास्त्रों (हथियारों) में वज्र हूं, गायों में सुरभि (कामधेनु गाय) हूं, सन्तति उत्पत्ति के कारणों में प्रेम का देवता कामदेव तथा सर्पों में वासुकी नाग हूं। (28वें श्लोक) |
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ॥२९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- अनेक फणों वाले नागों में मैं अनन्त हूं और जलचरों में वरुणदेव हूं। मैं पितरों में अर्यमा हूं तथा समस्त नियमों के निर्वाहकों में मैं मृत्युराज यम (यमराज) हूं। (29वें श्लोक) |
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥३०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- दैत्यों में मैं भक्तराज प्रह्लाद हूं, दमन करने वालों में मैं काल हूं, पशुओं में सिंह हूं तथा पक्षियों में गरुड़ भी मैं ही हूं। (30वें श्लोक) |
Sanskrit shlokas in Vibhuti Yog 11-20 | भगवत गीता अध्याय १० श्लोक ३१-४०
पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम् । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- समस्त (सबको या सभी को) पवित्र करने वालों में मैं पवन (वायु / हवा) हूं, शस्त्रधारियों में श्रीराम हूं, मछलियों में मगर (मगरमच्छ) हूं तथा नदियों में जाह्नवी (गंगा नदी) हूं। (31वें श्लोक) |
सरगाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम् ॥३२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण सृष्टियों का आदि (प्रारंभ), मध्य और अंत हूं। मैं सम्पूर्ण विद्याओं में अध्यात्म विद्या हूं और तर्कशास्त्रियों में मैं ही निर्णायक सत्य हूं। (32वें श्लोक) |
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: सामासिकस्य च । अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्तोमुख: ॥३३॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- अक्षरों में मैं अकार हूं और समासो में द्वन्द्व समास हूं। मैं शाश्वत काल (संहारकर्ता) भी हूं और स्त्रष्टाओं (सृजनकर्ताओं) में ब्रह्मा भी हूं । (33वें श्लोक) |
मृत्यु: सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । कीर्ति: श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा ॥३४॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं ही सर्वभक्षी मृत्यु हूं और आगे होने वालों को उत्पन्न (उद्भव) करने वाला भी मैं ही हूं। स्त्रियों में मैं कीर्ति (यश/सम्मान), श्री (सुंदरता), वाक् (वाणी/बोली), स्मृति (स्मरण शक्ति), मेधा (बुद्धि), धृति (दृढ़ता) तथा क्षमा (धैर्य / क्षमा) हूं। (34वें श्लोक) |
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥३५॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं सामवेद के गीतों में बृहत्साम और समस्त (सम्पूर्ण) छंदों में गायत्री मंत्र हूं। मैं समस्त महीनों में मार्गशीर्ष (अगहन) हूं तथा समस्त ऋतुओं में फूल खिलाने वाली वसंत ऋतु हूं। (35वें श्लोक) |
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् । जयोऽस्मि व्यसायो सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥३६॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं छलियों (छल करने वालों) में जुआ हूं और तेजस्वियों में तेज हूं। मैं ही विजय हूं, मैं ही साहस हूं और बलवानों का अहंकार रहित बल भी मैं ही हूं। (36वें श्लोक) |
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवनां धनञ्जय: । मुनीनामप्यहं व्यास: कवीनामुशना कवि: ॥३७॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- मैं वृष्णिवंशियों में वासुदेव (द्वारका वासी कृष्ण) और पाण्डवों में धनंजय (अर्जुन) हूं। मैं समस्त मुनियों में व्यास (समस्त वेदों के संकलनकर्ता- वेदव्यास) हूं तथा महान कवियों व विचारकों में उशना (शुक्राचार्य) हूं। (37वें श्लोक) |
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् । मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥३८॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- अराजकता को दमन करने वाले समस्त साधनों में से मैं दण्ड हूं और जो विजय के आकांक्षी हैं, उनकी मैं नीति हूं। रहस्यों में मैं मौन हूं और बुद्धिमानों में ज्ञान हूं । (38वें श्लोक) |
यच्चापि सर्वभतानां बीजं तदहमर्जुन । न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥३९॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे अर्जुन! यही नहीं, मैं ही सम्पूर्ण सृष्टि का जनक बीज हूं (अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि के उद्भव का मूल कारण परब्रह्म यानी श्रीकृष्ण ही हैं)। ऐसा चर तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके। (39वें श्लोक) |
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप । एष तूद्देशत: प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥४०॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- हे परन्तप अर्जुन! मेरी दैवीय विभूतियों का कोई अंत नहीं है। मैंने तुमसे अभी तक जो कुछ भी कहा, वह तो मेरी अनन्त विभूतियों का संकेत मात्र (क्षणिक व छोटा सा अंश मात्र) है। (40वें श्लोक) |
Sanskrit shlokas in Vibhuti Yog 11-20 | भगवत गीता अध्याय १० श्लोक ४१-४२
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा । तत्त्वदेवावगच्छ त्वं मम तेजोऽंशमस्भवम् ॥४१॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- तुम जान लो कि समस्त ऐश्वर्य (विभूतियों) का अस्तित्व मैं ही हूं, सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियां मेरे तेज के एक स्फुलिंग (अंश) मात्र से उद्भूत (उत्पन्न हुआ है) हैं। (41वें श्लोक) |
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन । विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥४२॥ |
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भगवत गीता अध्याय 10 हिंदी संस्करण:- किन्तु हे अर्जुन! इस सारे विशद ज्ञान (न जानने योग्य बिना मतलब का ज्ञान व उपयोगी में न आने वाला ज्ञान) की आवश्यकता क्या है? मैं तो अपने एक अंश मात्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर इसको धारण करता हूं। (42वें श्लोक) |
इस प्रकार श्रीमद् भागवत गीता का दसवां अध्याय विभूतियोग का यह अध्याय समाप्त होता है, जो भगवान श्री कृष्ण की दिव्य महिमा और उनके विभिन्न रूपों का अद्वितीय वर्णन करता है। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि भगवान की उपस्थिति हर जगह है और हर वस्तु में उनकी महिमा छिपी हुई है। विभूतियोग केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में भी सहायक है।
Teachings of Vibhuti Yog | विभूति योग से सीखने योग्य बातें
1. कण-कण में परमात्मा का वास: विभूति योग में भगवान कृष्ण ने यह स्पष्ट किया है कि वे इस पूरे ब्रह्मांड में हर जगह विद्यमान हैं। हर वस्तु, हर प्राणी, हर घटना में उनका ही स्वरूप है। वे कहते हैं कि जो भी विशेषता या अद्वितीयता इस संसार में है, वह उनकी ही विभूति है। इसका अर्थ यह है कि हमें हर चीज में परमात्मा के दर्शन करने चाहिए और सभी के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। यह शिक्षा हमारे जीवन में विनम्रता और समर्पण का भाव उत्पन्न करती है। जब हम यह समझते हैं कि परमात्मा हर जगह हैं, तो हमारे विचार, वाणी, और कर्म भी शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं। |
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2. श्रीकृष्ण का ज्ञान: श्रीमद् भगवत गीता में ज्ञान का बहुत महत्व बताया गया है, और विभूति योग में भी भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान को अपनी विभूति के रूप में वर्णित किया है। वे कहते हैं कि ज्ञान ही वह माध्यम है जिससे हम उन्हें समझ सकते हैं और उनके वास्तविक स्वरूप को पहचान सकते हैं। ज्ञान केवल शास्त्रों का अध्ययन करने से नहीं आता, बल्कि यह सत्य को समझने, आत्मसाक्षात्कार करने, और अपने अंदर की दिव्यता को पहचानने से प्राप्त होता है। इसलिए, जीवन में ज्ञान की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए। |
3. स्वयं की पहचान: विभूतियोग में भगवान कृष्ण ने बताया कि जब व्यक्ति स्वयं को पहचान लेता है, तब वह समझता है कि वह भी उसी परमात्मा का अंश है। आत्म-साक्षात्कार ही असली ज्ञान है। जब हमें यह अहसास होता है कि हम स्वयं भी दिव्यता का अंश हैं, तो हमारे भीतर आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता का भाव उत्पन्न होता है। यह शिक्षा हमें यह समझने में मदद करती है कि हमारे जीवन का असली उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार है। जब हम स्वयं की पहचान कर लेते हैं, तब हमारे सभी भ्रम, शंकाएं, और भय समाप्त हो जाते हैं और हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं। |
4. कर्म का महत्व: हालांकि यह अध्याय मुख्यतः भगवान की विभूतियों के बारे में है, लेकिन इसमें कर्म का भी महत्व बताया गया है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो भी कर्म किया जाता है, वह उनकी ही विभूति के अंतर्गत आता है। इसलिए हमें अपने कर्मों को बिना किसी फल की चिंता किए, निष्काम भाव से करना चाहिए। यह शिक्षा हमें जीवन में सक्रिय रहने, अपने कर्तव्यों का पालन करने, और सही दिशा में प्रयास करने की प्रेरणा देती है। जब हम निष्काम कर्म करते हैं, तो हम अपने जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकते हैं। |
5. भगवान की भक्ति का महत्व: विभूति योग में भगवान श्रीकृष्ण ने भक्ति के महत्व को भी बताया है। वे कहते हैं कि जो भक्त पूरी श्रद्धा और प्रेम से उनकी पूजा करता है, वह उन्हें प्रिय होता है। भक्ति वह साधन है जिसके माध्यम से हम परमात्मा के साथ जुड़ सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। भक्ति न केवल पूजा-अर्चना तक सीमित है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में भगवान की उपस्थिति को महसूस करना, उनके प्रति समर्पण और प्रेम का भाव रखना, और हर स्थिति में उन्हें याद करना है। भक्ति हमें भगवान के करीब लाती है और हमें उनके मार्गदर्शन में जीवन जीने की प्रेरणा देती है। |
Moral lessons in Vibhuti Yog | विभूतियोग की अद्भुत सीख
1.श्रीकृष्ण के दिव्य रूप: भगवान श्रीकृष्ण ने विभूतियोग में यह स्पष्ट किया है कि वह हर वस्तु और प्राणी में व्याप्त हैं। वह ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में त्रिदेव में प्रकट होते हैं, और उनके प्रत्येक रूप में एक अद्वितीय दिव्यता होती है। यह ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि हर चीज की अपनी एक महत्ता और दिव्यता है, और हमें हर स्थिति को समझदारी और श्रद्धा के साथ देखना चाहिए। यह समझ हमें जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखने में मदद करती है। |
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2. भगवान कृष्ण की पहचान: भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि वह सृष्टि के प्रत्येक रूप में व्याप्त हैं। चाहे वह पृथ्वी का सबसे ऊँचा पर्वत हो या सबसे छोटा कण, हर वस्तु में उनकी उपस्थिति है। इस ज्ञान को अपनाने से हमें यह समझ में आता है कि हम जिन चीजों को मामूली या महत्वपूर्ण मानते हैं, वे सभी भगवान के दिव्य स्वरूप का हिस्सा हैं, लेकिन हम अपने मोह के कारण उस परब्रह्म सत्य को पहचान नही पाते। इसलिए हमें सदैव सभी जीवों के प्रति समदृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससे हमारी भावनात्मक और मानसिक स्थिति में संतुलन बना रहता है। |
3. सृष्टि के हर तत्व में भगवान का आवास: विभूतियोग में श्रीकृष्ण ने यह भी बताया है कि वह सृष्टि के प्रत्येक तत्व में निवास करते हैं। चाहे वह अग्नि हो, जल हो या वायु, भगवान की उपस्थिति हर तत्व में है। यह ज्ञान हमें यह एहसास कराता है कि सृष्टि का हर तत्व भगवान की शक्ति और कृपा से संचालित हो रहा है। इससे हमें न केवल प्रकृति के प्रति आभार और सम्मान का भाव उत्पन्न होता है, बल्कि हम जीवन की साधारण बातों को भी दिव्य दृष्टिकोण से देखने लगते हैं। |
4. श्रीकृष्ण का अद्भुत स्वरूप: विभूतियोग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अद्वितीय स्वरूप के माध्यम से यह भी सिखाया है कि परमात्मा को समर्पण और भक्ति के माध्यम से पाया जा सकता है। जब हम भगवान की दिव्यता को समझते हैं और उनकी उपस्थिति को पहचानते हैं, तो हमारी भक्ति और समर्पण की भावना स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। इस ज्ञान से हमें यह समझ में आता है कि आत्मा की उन्नति और जीवन की वास्तविक सफलता भक्ति और समर्पण में ही निहित है। |
5. जीवन की हर स्थिति में भगवान की उपस्थिति को समझना: इस अध्याय के अंत में, श्रीकृष्ण ने यह कहा है कि वह हर स्थिति और परिस्थिति में हमारे साथ हैं। चाहे हम सुख में हों या दुख में, भगवान का साथ हमेशा हमारे साथ होता है। यह ज्ञान हमें यह विश्वास दिलाता है कि जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते समय भगवान की उपस्थिति और सहायता हमारे साथ है। इससे हमें साहस और धैर्य मिलता है, और हम जीवन की समस्याओं का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकते हैं। |
Vibhuti Yoga Summary | विभूति योग का सार
Chapter 10 Bhagwat Gita FAQs | विभूति योग के बारे में सामान्य प्रश्न
1. गीता के 10वें अध्याय में कितने श्लोक हैं? ॐ: गीता के 10वें अध्याय में कुल 42 श्लोक हैं। ये श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की विभूतियों और महिमा का विस्तृत वर्णन करते हैं। |
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2. भगवद गीता के 10वें अध्याय का क्या नाम है? ॐ: भगवद गीता के 10वें अध्याय का नाम "विभूतियोग" है, भगवान श्रीकृष्ण की भव्य विभूतियों और अद्भुत शक्तियों का वर्णन करता है। इस अध्याय में, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया है कि उनकी सभी शक्तियों और अस्तित्व के रूप अनेक रूपों में प्रकट होते हैं। |
3. विभूतियोग का क्या अर्थ है? ॐ: विभूतियोग का अर्थ है "दिव्य अभिव्यक्तियों का योग"। इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों, या दिव्य रूपों और शक्तियों के माध्यम से अपनी सर्वव्यापी प्रकृति का वर्णन किया है। |
4. गीता में विभूति योग क्या है? ॐ: गीता का 10वां अध्याय विभूति योग वह अध्याय है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों के बारे में बताते हैं और उन्हें पहचानने और उनके महत्व को समझने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। |
5. विभूति योग क्या है? ॐ: "विभूति योग" श्रीमद् भागवत गीता के दसवें अध्याय का शीर्षक है, जहां भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनी दिव्य विभूतियों और शक्तियों के बारे में बताते हैं। इस अध्याय में, श्रीकृष्ण अपनी अनंत विभूतियों का वर्णन करते हैं और अर्जुन को बताते हैं कि सभी विभूतियाँ और शक्तियाँ उनके माध्यम से प्रकट होती हैं। |
6. गीता के 10वें अध्याय विभूति योग में श्रीकृष्ण ने क्या संदेश दिया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने गीता के विभूति योग अध्याय में यह संदेश दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर ईश्वर की एक अंश को धारण करता है और उसे जागृत करने की आवश्यकता है। ईश्वर के प्रति समर्पण और भक्ति हमें उस अंश को पहचानने और अनुभव करने में मदद करती है। |
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7. इस अध्याय में भगवान का सबसे प्रमुख विभूति क्या है? ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सबसे प्रमुख विभूति के रूप में स्वयं को ही बताया है, यह कहते हुए कि वह सब कुछ में व्याप्त हैं और उनके बिना कुछ भी नहीं है। सभी विभूतियाँ उन्हीं की हैं। |
8. अर्जुन ने भगवान से किस प्रकार की विभूतियों के बारे में पूछा? ॐ: अर्जुन ने भगवान से पूछा कि वह उन विभूतियों के बारे में बताएं जो ध्यान और ज्ञान में सहायता करती हैं, और जो मनुष्य को भगवान की महिमा का आभास कराने में सहायक होती हैं। |
9. गीता के 10वें अध्याय का प्रसिद्ध मंत्र क्या है? ॐ: गीता के 10वें अध्याय का प्रसिद्ध मंत्र "यद यद विभूतिमत् सत्त्वं श्रीमदूरिजितमेव वा" (श्लोक 41) है, जिसका अर्थ है कि सभी विभूतिमान वस्तुओं और शक्तिशाली व्यक्तियों में मैं ही हूँ। |
10. गीता के 10वें अध्याय का मूल उपदेश क्या है? ॐ: गीता के 10वें अध्याय का मूल उपदेश यह है कि भगवान की महिमा और शक्तियाँ अनंत हैं। प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु में ईश्वरीय तत्व का अंश मौजूद है, और इसे पहचानना और सम्मान करना ही भक्ति का सार है। |
11. श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में अपनी कौन-कौन सी विभूतियों का वर्णन किया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में कई विभूतियों का वर्णन किया है, जैसे कि वह सभी देवताओं में से इंद्र हैं, सभी वेदों में से सामवेद, पर्वतों में से हिमालय और वृक्षों में से पीपल का वृक्ष हैं। इसके माध्यम से, वह दिखाते हैं कि सभी महान और शक्तिशाली चीज़ें उनकी विभूतियाँ हैं। |
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12. विभूति योग हमें क्या सिखाता है? ॐ: विभूति योग हमें सिखाता है कि हमें स्वयं को ईश्वर की सेवा में समर्पित करना चाहिए और अपने सभी कर्मों को ईश्वर के अर्पण के रूप में देखना चाहिए। यह हमें अहंकार, स्वार्थ, और मोह से मुक्त होने की सीख देता है। |
13. विभूति योग से हमें क्या सीख मिलती है?? ॐ: विभूति योग से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर अहंकार नहीं करना चाहिए। सभी शक्तियाँ और विभूतियाँ ईश्वर की हैं, और हमें उनका उपयोग धर्म और समाज की भलाई के लिए करना चाहिए। |
14. इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या उपदेश दिया? ॐ: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया कि वह उनके अनंत रूपों और विभूतियों को जाने और पहचाने। उन्होंने अर्जुन को बताया कि वह स्वयं को श्रीकृष्ण के अनंत रूपों के एक अंश के रूप में देखें, और अपने कर्म को ईश्वर की सेवा के रूप में मानें। |
15. श्रीकृष्ण ने कौन-कौन सी प्राकृतिक विभूतियों का उल्लेख किया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने कई प्राकृतिक विभूतियों का उल्लेख किया है, जैसे कि सागर में समुद्र, पर्वतों में हिमालय, नदियों में गंगा और वृक्षों में पीपल वृक्ष। |
16. श्रीकृष्ण ने किस प्रकार के भक्त को अपना प्रिय बताया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने उस भक्त को अपना प्रिय बताया है जो निरंतर उनके गुणों का कीर्तन करता है और ईश्वर की विभूतियों को जानने और अनुभव करने का प्रयास करता है। ऐसा भक्त ईश्वर को अत्यंत प्रिय होता है। |
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17. विभूति योग में श्रीकृष्ण ने कौन-कौन से देवताओं का उल्लेख किया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने विभूति योग में कई देवताओं का उल्लेख किया है, जैसे कि इंद्र, वरुण, अग्नि, यम, कुबेर और अन्य देवताओं, जो विभिन्न शक्तियों और क्षमताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। |
18. विभूति योग का अन्य अध्यायों से क्या संबंध है? ॐ: विभूति योग अन्य अध्यायों के साथ मिलकर गीता के संदेश को और मजबूत बनाता है। यह अध्याय आत्म-ज्ञान, भक्ति और भगवान की महिमा की समझ को गहरा करता है, जो कि गीता के अन्य अध्यायों में भी वर्णित है। |
19. विभूति योग में भगवान की कौन-सी सबसे प्रमुख विभूति है? ॐ: विभूति योग में भगवान की सबसे प्रमुख विभूति उनके द्वारा कहा गया 'ॐ' है, जो संपूर्ण सृष्टि का मूल मंत्र है। यह मंत्र भगवान की सबसे अलौकिक शक्ति का प्रतीक है और इसे सभी वेदों का सार माना जाता है। यह मंत्र ईश्वर की उपस्थिति को हर जगह अनुभव कराने वाला है। |
20. इस अध्याय में कौन-सी अनंत विभूति का वर्णन है? ॐ: इस अध्याय में भगवान ने अनंत विभूति का वर्णन किया है, यह कहते हुए कि वे अनंत हैं और उनके रूप अनंत हैं। सभी दिशाओं में, सभी समयों में, और सभी युगों में वे ही एकमात्र सत्य हैं। |
21. भगवान कृष्ण ने विभूति योग में कौन-कौन से रूपों का वर्णन किया है? ॐ: भगवान कृष्ण ने विभूति योग में विभिन्न देवताओं, ऋषियों, वस्तुओं, स्थानों और घटनाओं के रूप में अपने को वर्णित किया है। जैसे कि वे सभी देवों में विष्णु हैं, सभी पर्वतों में मेरु, और सभी नदियों में गंगा। |
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22. भगवत गीता के दसवें अध्याय विभूति योग में भगवान कृष्ण क्या सिखाते हैं? ॐ: गीता के दसवें अध्याय विभूति योग में, भगवान कृष्ण अपने आप को सभी विभूतियों के स्रोत के रूप में प्रकट करते हैं। वे बताते हैं कि सृष्टि के विभिन्न अंगों में उनकी उपस्थिति और महिमा है, और ये सभी उनकी अपार शक्तियों के प्रमाण हैं। |
23. विभूति योग का श्लोक 42 क्या महत्व रखता है? ॐ: इस श्लोक 42 में, भगवान कृष्ण कहते हैं कि सभी विभूतियों और विशेषताओं का मूल रूप से वह स्वयं ही हैं। वे अपनी एक छोटी सी झलक से भी इस संसार को बनाए रखते हैं। |
24. विभूति योग में 'अहमात्मा गुडाकेश' का क्या अर्थ है? ॐ: 'अहमात्मा गुडाकेश' का अर्थ है 'मैं सबका आत्मा हूँ, हे अर्जुन'। यह श्लोक दर्शाता है कि भगवान कृष्ण समस्त जीवों के भीतर निवास करते हैं। |
25. भगवान कृष्ण ने अपने आपको किस रूप में बताया है? ॐ: भगवान कृष्ण ने अपने आपको हर प्राणी, वस्तु और तत्व में बताया है। वे कहते हैं कि वे सभी जगह मौजूद हैं, जैसे कि वृषभों में इन्द्र, देवों में विष्णु, पर्वतों में मेरु, जलाशयों में सागर और ऋषियों में नारद। |
26. विभूति योग में वर्णित विभूतियाँ भौतिक या आध्यात्मिक हैं? ॐ: विभूतियोग में वर्णित विभूतियाँ दोनों ही भौतिक और आध्यात्मिक हैं। भौतिक विभूतियाँ प्रकृति की चीजों में दिखाई देती हैं, जैसे कि पर्वत, नदियाँ, और ग्रह, जबकि आध्यात्मिक विभूतियाँ भगवान की आंतरिक शक्तियों और गुणों में अभिव्यक्त होती हैं। |
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27. अर्जुन के प्रश्न क्या थे जो इस अध्याय में संबोधित हैं? ॐ: अर्जुन ने भगवान कृष्ण से उनकी दिव्य शक्तियों और विभूतियों के बारे में विस्तार से बताने का अनुरोध किया था। अर्जुन जानना चाहते थे कि वे किस प्रकार से विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। |
28. क्या विभूति योग का अध्ययन सामान्य जीवन में लाभदायक है? ॐ: हाँ, विभूति योग का अध्ययन जीवन के विभिन्न पहलुओं में लाभदायक है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि सभी प्राकृतिक तत्वों में और हमारे आसपास के सभी लोगों में भगवान की शक्ति निहित है। इससे हमें सबके प्रति सम्मान, प्रेम और दया का भाव विकसित करने में मदद मिलती है। |
29. विभूति योग का भक्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है?? ॐ: विभूति योग का अध्ययन और चिंतन भक्तों में ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा का संचार करता है। इसे जानने से भक्तों को यह बोध होता है कि भगवान हर जगह मौजूद हैं, जिससे उनकी भक्ति में और निष्ठा और विश्वास का संचार होता है। |
30. इस अध्याय का क्या महत्व है? ॐ: विभूति योग का महत्व इस बात में निहित है कि यह अध्याय भक्तों को यह सीख देता है कि वे भगवान की सर्वव्यापी उपस्थिति को पहचानें और हर चीज में उनकी महिमा का अनुभव करें। यह अध्याय भक्तों की आध्यात्मिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। |
31. भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में किसे सर्वश्रेष्ठ भक्त माना है? ॐ: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ भक्त माना है क्योंकि उन्होंने बिना किसी संदेह के भगवान की आज्ञा का पालन किया और उनकी महिमा को समझा। |
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32. श्रीमद भगवत गीता के अनुसार सबसे बड़ा योग कौन सा है? ॐ: श्रीमद भगवत गीता के अनुसार, भक्ति योग सबसे बड़ा योग है। इसके माध्यम से भक्त भगवान से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है और उन्हें अपनी श्रद्धा और समर्पण से प्रसन्न कर सकता है। |
33. गीता के 10वें अध्याय का सबसे शक्तिशाली श्लोक कौन सा है? ॐ: गीता के 10वें अध्याय का सबसे शक्तिशाली श्लोक (श्लोक 8) है, जिसमें भगवान कहते हैं, "अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते"। इसका अर्थ है कि मैं सभी का स्रोत हूँ और मुझसे ही सब कुछ प्रकट होता है। |
34. विभूति योग में कौन सी विशेषता महत्वपूर्ण है? ॐ: इस योग की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह हमें सिखाता है कि सभी महान विभूतियाँ और शक्तियाँ एक ही स्रोत से आती हैं – वो स्रोत है ईश्वर यानी स्वयं परमपिता परब्रह्म परमेश्वर। यह दृष्टिकोण हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को ईश्वरीय दृष्टि से देखने और समझने में मदद करता है। |
35. विभूति योग का आध्यात्मिक महत्व क्या है? ॐ: विभूति योग का आध्यात्मिक महत्व यह है कि यह हमें यह समझने में मदद करता है कि हर चीज़ में ईश्वरीय तत्व होता है। यह हमें अहंकार और स्वार्थ से परे देखने और सभी में ईश्वर की उपस्थिति का सम्मान करने की सीख देता है। |
36. इस अध्याय में भगवान ने कौन-कौन सी मनुष्यों की विभूतियों का उल्लेख किया है? ॐ: भगवान ने मनुष्यों की विभूतियों में महापुरुषों का उल्लेख किया है, जैसे कि भगवान राम, नरसिंह, और भीष्म जैसे महापुरुष। |
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37. श्रीकृष्ण ने कौन-कौन सी पौराणिक विभूतियों का उल्लेख किया है? ॐ: श्रीकृष्ण ने पौराणिक विभूतियों में नारद, अत्रि, कपिल, और अन्य ऋषियों का उल्लेख किया है, जो ज्ञान, भक्ति और सेवा के प्रतीक हैं। |
38. विभूति योग में वर्णित विभूतियों का आध्यात्मिक महत्व क्या है? ॐ: विभूति योग में वर्णित विभूतियों का आध्यात्मिक महत्व यह है कि वे हमें ईश्वर की महिमा और शक्तियों की याद दिलाती हैं। यह हमें प्रोत्साहित करती है कि हम अपने जीवन को आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलें और ईश्वर की सेवा में अपना जीवन समर्पित करें। |
39. विभूति योग में कौन सी शिक्षाएँ महत्वपूर्ण हैं? ॐ: विभूति योग में महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं, सभी में ईश्वर की उपस्थिति को पहचानना, अहंकार और स्वार्थ से मुक्त होना, भक्ति और समर्पण का पालन करना, और अपने कर्मों को ईश्वर के प्रति समर्पित करना। |
40. विभूति योग कैसे भक्तों के लिए लाभदायक है? ॐ: विभूति योग भक्तों के लिए लाभदायक है क्योंकि यह उन्हें हर चीज़ में ईश्वर के दर्शन करने में सहायता करता है। यह उनकी भक्ति को गहन और सशक्त बनाता है और उन्हें अहंकार से दूर रहने की प्रेरणा देता है। |
🚩🚩🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩🚩🚩
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